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This Article is From Feb 18, 2011

कच्चा लिंबू : शंभू की कहानी

मुंबई: कच्चा लिंबू 10वीं क्लास के छात्र शंभू पर है। मोटे और वजनी शंभू को क्लास के लड़के अपने से दूर रखते हैं… उसे डराते हैं। पढ़ाई में कमज़ोर शंभू स्कूल टीचर्स से झिड़कियां खाता है। न मां और न सौतेले पिता की समझाइश शंभू को समझ में आती है। शंभू अपनी दुनिया में मस्त है जहां उसे क्लास में अपनी जगह बनानी है और गलर्फ्रेंड के दिल में प्यार। इंटरवेल तक फिल्म बहुत अच्छी है जहां किशोंरों के सपने उनकी हताशा और स्कूली ज़िंदगी से आप खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेंगे। लेकिन इंटरवेल के बाद फिल्म पूरी तरह भटक जाती है। कॉन्वेन्ट स्कूल का शंभू गंदी बस्ती में दादागिरी करने वाले बच्चों के बीच नज़र आने लगता है और यह ट्रैक बेहद उबाऊ है। लंबे मराठी डायलॉग्स हैं जो हिंदीभाषियों की समझ से परे हैं। सबटाइटल्स भी नहीं हैं। 'भेजा फ्राय' जैसी फिल्म बना चुके डायरेक्टर सागर बल्लारी की कच्चा लिंबू बताती है कि कैसे असाधारण परिस्थितियों में एक डरपोक बच्चा साहसी बन जाता है। लेकिन उन्होंने कहानी काफी घुमा-फिरा के कही जिससे फोकस खत्म हो गया। शंभू के रोल में ताहीर सुत्तरवाला समेत सभी बच्चों की अच्छी एक्टिंग। विनय पाठक का बहुत छोटा रोल। मां-बाप के रोल में सारिका और अतुल कुलकर्णी ठीक। म्यूज़िक एवरेज। कच्चा लीबू के लिए मेरी रेटिंग है 2 स्टार।कलाकार : ताहीर सुत्तरवाला, सारिका, विनय पाठक, अतुल कुलकर्णी

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कच्चा लिंबू, शंभू
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