फिल्म 'जय गंगाजल' के एक सीन में प्रियंका चोपड़ा और प्रकाश झा
मुंबई:
प्रियंका चोपड़ा की 'जय गंगाजल' रिलीज हो चुकी है जिसका निर्देशन किया है प्रकाश झा ने। फिल्म मुख्य भूमिकाओं में प्रियंका चोपड़ा के अलावा मानव कौल, मुरली शर्मा, निनाद कामत, राहुल भट्ट और एक अहम किरदार में खुद प्रकाश झा भी हैं।
प्रकाश झा की मानें तो ये फ़िल्म 2003 में रिलीज़ हुई 'गंगाजल' का सीक्वल नहीं है सिर्फ़ इसका नाम 'जय गंगाजल' रखा गया है। ज़ाहिर है इस नाम से प्रकाश 'गंगाजल' की लोकप्रियता का फ़ायदा उठाना चाहते हैं।
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो प्रियंका चोपड़ा यानी एसपी आभा माथुर को बांकीपुर ज़िले का कार्यभार सौंपा जाता है ताकी वहां के एमएलए आने वाला चुनाव पुलिस और माफिया की मदद से जीत सकें और साथ ही वहां किसानों से ज़मीन लेकर एक पावर प्रॉजेक्ट को अंजाम दे सकें। राजनेता, माफ़िया और पुलिस की सांठ गांठ यहां के लोगों पर कहर बनकर बरस रही है और इस क्षेत्र के लोगों को इस मुश्किल से निकाल कर दोषियों को बेनक़ाब करने का बीड़ा उठाती है एसपी आभा माथुर। यही कहानी है 'जय गंगाजल' की जो 'गंगाजल' और 'सिंघम' जैसी फ़िल्मों से अलग नहीं है और यही है इस फ़िल्म की ख़ामी क्योंकि कहानी में आप वही देख रहे हैं जो पहले भी आप देख चुके हैं।
फ़िल्म आपको एक तय ढर्रे पर चलती नज़र आएगी जैसे की कोई फ़िक्सड फॉर्मूला हो। पहले भाग में फ़िल्म खिंचती है और दर्शक इंटरवल का इंतज़ार करते हैं और इसकी वजह से घटनाएं तो स्क्रीन पर घटती रहती हैं लेकिन कहानी आगे नहीं बढ़ती। फ़िल्म के किरदार काफ़ी कुछ वैसे ही हैं जैसे आप प्रकाश झा की फ़िल्मों में देखते आए हैं। एक और बात, 2003 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'गंगाजल' का नाम गंगाजल रखने के पीछे एक ख़ास कारण था। जिन्होंने फ़िल्म देखी है शायद उन्हें याद हो पर 'जय गंगाजल' का नाम उसी कारण को देखते हुए मुझे लगता है 'सुईसाइड' होना चाहिए था।
खै़र, बात खूबियों की करें तो इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबी है किरदारों की परफॉर्मेंस। प्रियंका चोपड़ा और प्रकाश झा दोनों ही कलाकारों के कांधों पर कहानी का बराबरी का भार है और दोनों ने ही बड़ी खूबी के साथ इस भार को उठाया है। प्रियंका अपने हाव भाव और सहज अभिनय से आपको प्रभावित करती हैं, वहीं प्रकाश झा, अभिनय की शुरुआती कोशिश में कामयाब रहे हैं।
ये बात अलग है कि कहीं कहीं मुझे उनमें नाना पाटेकर तो कहीं अजय देवगण नज़र आए पर प्रकाश अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखते हैं। मानव कौल भी अपने किरदार में फ़िट हैं। इंटरवल से पहले फ़िल्म के कुछ हिस्से को छोड़ दें तो स्क्रिन प्ले आपको पकड़ कर रखेगा। मेरे हिसाब से ये फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है। यहां शायद कहानी में आपको नया कुछ न देखने को मिले पर थोड़ा मनोरंजन शायद मिल जाए। मेरी तरफ़ से जय गंगाजल को 3 स्टार।
प्रकाश झा की मानें तो ये फ़िल्म 2003 में रिलीज़ हुई 'गंगाजल' का सीक्वल नहीं है सिर्फ़ इसका नाम 'जय गंगाजल' रखा गया है। ज़ाहिर है इस नाम से प्रकाश 'गंगाजल' की लोकप्रियता का फ़ायदा उठाना चाहते हैं।
फ़िल्म की कहानी की बात करें तो प्रियंका चोपड़ा यानी एसपी आभा माथुर को बांकीपुर ज़िले का कार्यभार सौंपा जाता है ताकी वहां के एमएलए आने वाला चुनाव पुलिस और माफिया की मदद से जीत सकें और साथ ही वहां किसानों से ज़मीन लेकर एक पावर प्रॉजेक्ट को अंजाम दे सकें। राजनेता, माफ़िया और पुलिस की सांठ गांठ यहां के लोगों पर कहर बनकर बरस रही है और इस क्षेत्र के लोगों को इस मुश्किल से निकाल कर दोषियों को बेनक़ाब करने का बीड़ा उठाती है एसपी आभा माथुर। यही कहानी है 'जय गंगाजल' की जो 'गंगाजल' और 'सिंघम' जैसी फ़िल्मों से अलग नहीं है और यही है इस फ़िल्म की ख़ामी क्योंकि कहानी में आप वही देख रहे हैं जो पहले भी आप देख चुके हैं।
फ़िल्म आपको एक तय ढर्रे पर चलती नज़र आएगी जैसे की कोई फ़िक्सड फॉर्मूला हो। पहले भाग में फ़िल्म खिंचती है और दर्शक इंटरवल का इंतज़ार करते हैं और इसकी वजह से घटनाएं तो स्क्रीन पर घटती रहती हैं लेकिन कहानी आगे नहीं बढ़ती। फ़िल्म के किरदार काफ़ी कुछ वैसे ही हैं जैसे आप प्रकाश झा की फ़िल्मों में देखते आए हैं। एक और बात, 2003 में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'गंगाजल' का नाम गंगाजल रखने के पीछे एक ख़ास कारण था। जिन्होंने फ़िल्म देखी है शायद उन्हें याद हो पर 'जय गंगाजल' का नाम उसी कारण को देखते हुए मुझे लगता है 'सुईसाइड' होना चाहिए था।
खै़र, बात खूबियों की करें तो इस फ़िल्म की सबसे बड़ी खूबी है किरदारों की परफॉर्मेंस। प्रियंका चोपड़ा और प्रकाश झा दोनों ही कलाकारों के कांधों पर कहानी का बराबरी का भार है और दोनों ने ही बड़ी खूबी के साथ इस भार को उठाया है। प्रियंका अपने हाव भाव और सहज अभिनय से आपको प्रभावित करती हैं, वहीं प्रकाश झा, अभिनय की शुरुआती कोशिश में कामयाब रहे हैं।
ये बात अलग है कि कहीं कहीं मुझे उनमें नाना पाटेकर तो कहीं अजय देवगण नज़र आए पर प्रकाश अपने अभिनय से दर्शकों को बांधे रखते हैं। मानव कौल भी अपने किरदार में फ़िट हैं। इंटरवल से पहले फ़िल्म के कुछ हिस्से को छोड़ दें तो स्क्रिन प्ले आपको पकड़ कर रखेगा। मेरे हिसाब से ये फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है। यहां शायद कहानी में आपको नया कुछ न देखने को मिले पर थोड़ा मनोरंजन शायद मिल जाए। मेरी तरफ़ से जय गंगाजल को 3 स्टार।
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