
कंगना रनोट
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
कंगना ने खुलकर की बातें
मुंबई के घर को ही मानती हैं अपना घर
अपने मन की सुनती हैं.
जब दादा से उलझ गई थीं कंगना
हालांकि जब उनसे पूछा गया कि मंडी से आई लड़की को मुंबई में कैसा महसूस होता है तो उन्होंने कहा, “मैंने अपनी जिंदगी कभी ऐसे नहीं जी कि मैं मंडी से हूं या मुंबई से. मैं आजादी से जीने में यकीन करती हूं.” उन्होंने बताया कि वे राजपूत परिवार से है, जहां घूंघट पर बहुत ध्यान दिया जाता है. वे बोलीं, “आपका सीना पूरा नंगा दिखे लेकिन घूंघट नहीं हटना चाहिए. मेरे दादाजी बहुत ही फ्यूडल मेंटेलिटी के हैं. आदमियों के पहले औरतें खाना नहीं खा सकती थीं. एक किस्सा मैं बताती हूं. मैं 13-14 साल की थी. पिताजी करीब के शहर गए हुए थे. मैंने उनस कुछ मुंगवाया था. मेरे दादाजी आइएएस ऑफिसर थे. वे पिताजी से फोन पर बात कर रहे थे. मैंने कहा पहले आप बात कर लो फिर मैं कर लूंगी. उन्होंने तुरंत फोन काट दिया. मैंने उनसे ऊंची आवाज में कहा तो उन्होंने मुझे जोर का झापड़ा मारा और मैं दीवार से टकराई. मैं भी उनकी ओर लपकी...वे इससे झेंप गए और मम्मी से बोले तुम्हारी लड़की बदतमीज है. मुझे उस माहौल में घुटन महसूस होती थी.”
भाई को तवज्जो देते थे पिता
उन्होंने बताया, “मेरे पिता छोटे भाई के लिए गन लेकर आते थे. उसे कमांडो बनने के लिए कहते थे. जब मैं पूछती थी कि मैं बड़ी होकर क्या बनूंगी तो वे मुझ से कहते, तुम्हारी शादी हो जाएगी. तुम्हारा पति जो बोलेगा वो बनेगी. वे पढ़ाई के खिलाफ नहीं थे. लेकिन वे मुझे पैकेज मानते थे जिसे पढ़ाई करके कहीं डिलिवर करना है. मुझे कभी भी वह अपने घर जैसा नहीं लगा. मुंबई का मेरा घर ही मुझे अपने घर जैसा लगता है.”
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं