दीपिका के बाद अब रितिक रोशन ने 'डिप्रेशन' और उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी के बारे में राय रखी

दीपिका के बाद अब रितिक रोशन ने 'डिप्रेशन' और उतार-चढ़ाव भरी जिंदगी के बारे में राय रखी

खास बातें

  • कहा- मैं भी भ्रम की स्थिति का शिकार रहा
  • इसको सहजता से लेते हुए छिपाना नहीं चाहिए
  • निजी जीवन में कई अनुभव मिले
मुंबई:

दीपिका पादुकोण के बाद एक्‍टर रितिक रोशन (42) ने भी डिप्रेशन के मसले पर अपने विचार रखे हैं. उन्‍होंने कहा कि अपनी निजी जिंदगी में उन्‍होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं और इस सबके दौरान अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार भी रहे हैं. साथ ही यह भी कहा कि इसको छिपाना नहीं चाहिए. मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में लोगों से सहजता से कहना चाहिए और ये ऐसी चीज नहीं है जिसका इलाज नहीं हो सकता.

उन्‍होंने मुंबई में पत्रकारों से कहा, ''मैं कई उतार-चढ़ाव से गुजरा हूं. मैंने भी डिप्रेशन का अनुभव किया है. मैं भ्रम की स्थिति का शिकार भी रहा हूं जैसे कि बाकी रहते हैं. यह बेहद सामान्‍य चीज है. हमें इस पर बेहद सहजता से बात करनी चाहिए.''  

उन्‍होंने कहा, ''अपने निजी जीवन में मैंने कई अनुभवों का सामना किया है. हम सभी उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरते हैं. ये दोनों ही हमारे लिए अहम हैं क्‍योंकि आप इन अनुभवों से ही निखरते हैं. जब आप उतार के दौर से गुजरते हैं तो उस वक्‍त सबसे अहम चीज आपके विचारों की सुस्‍पष्‍टता होती है. कभी-कभी आप पर नकारात्‍मकता हावी हो जाती है और आप गैर-जरूरी विचारों की गिरफ्त में होते हैं. ऐसे वक्‍त पर आपको सुस्‍पष्‍ट और वस्‍तुनिष्‍ट होने की जरूरत होती है क्‍योंकि तभी कोई दूसरा या तीसरा आदमी आपको बताता है कि देखो यह आपके साथ क्‍या हो रहा है.''

सन 2000 में 'कहो न प्‍यार है फिल्‍म' से करियर शुरू करने वाले रितिक ने साथ ही कहा कि उन्‍होंने अपने कई मित्रों को खामोशी से डिप्रेशन और अन्‍य मानसिक समस्‍याओं से लड़ते हुए देखा है. इस वजह से ही वह इस मुद्दे की गहराई में जाने को विवश हुए.

उन्‍होंने कहा, ''ये ऐसी चीज है जोकि वर्षों से मेरे दिमाग में रही है. मैंने हमेशा इस पर सवालिया निशान खड़े किए हैं. मैंने कई अपने मित्रों को खामोशी के साथ डिप्रेशन से लड़ते हुए देखा है और इसने मुझे इस स्‍तर तक परेशान किया कि मैंने सवाल खड़े करने शुरू कर दिए...जब हम किडनी या पेट की समस्‍याओं से जूझते हैं तो इसे बेहद सहजता से लेते हैं और लोगों से साझा करते हैं. लेकिन जब मामला हमारे ही एक अंग मस्तिष्‍क (मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य) से जुड़ा होता है तो हम डर जाते हैं और इसमें खुद का ही दोष खोजते हुए लोगों से इसे छिपाने की जरूरत महसूस करते हैं. हर आदमी जीवन के किसी न किसी मोड़ पर इस समस्‍या से गुजरता ही है.''


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