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कहानी कुछ नया तो नहीं कहती, लेकिन बांधे रखती है... फिल्म के सभी कलाकार रंगमंच से हैं, सो, अभिनय में वैसी झलक भी है... इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3 स्टार...
फिल्म की कहानी आपको ले जाएगी प्राचीन भारत में, जहां छुआछूत जैसी प्रथाओं से शूद्र समाज आहत था... जहां ज़मींदारों के अन्याय के खिलाफ शूद्र समाज के कुछ लोग हथियार उठाते हैं और ज़मींदारों के गुस्से की आग में झुलसता है पूरा शूद्र समाज... कहानी को पर्दे पर बखूबी उतारा गया है, फिर चाहे वह पानी के लिए जद्दोजहद हो, मंत्रों के जाप पर रोक हो या फिर शूद्र समाज की महिलाओं के साथ ज़ोर-जबरदस्ती...
शूद्र समाज पर अत्याचार की कहानियां हमने बहुत सुनी हैं, इसलिए कहानी कुछ नया तो नहीं कहती, लेकिन बांधे रखती है... फिल्म के सभी कलाकार नए हैं, परन्तु चूंकि रंगमंच से हैं, इसीलिए फिल्म में कहीं-कहीं उनके अभिनय में स्टेज की झलक भी ज़रूर दिखती है... बैकग्राउंड म्यूज़िक और उसके बोल खासतौर पर प्रभाव डालते हैं...
बस, इस फिल्म में दो ही बातों की कमी महसूस हुई - पहला, फिल्म का सुर, जो एक ही लेवल पर चलता है... दूसरा, इसके डायलॉग, जो बेहतर लिखे जा सकते थे... वैसे कुल मिलाकर एक अच्छी नीयत से बनाई गई है यह फिल्म, जो समाज को एक संदेश देती है और साबित करती है कि कम बजट और कम सुविधाओं के साथ भी बड़ा संदेश दिया जा सकता है... इस फिल्म के लिए मेरी रेटिंग है - 3 स्टार...
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