फिल्म 'हाइवे' की कहानी शुरू होती है, आलिया भट्ट यानी वीरा के घर से, जिसकी शादी की तैयारी चल रही है। रात के अंधेरे में छुपकर वीरा घर से निकलती है और अपने मंगेतर के साथ सड़क पर घूमने निकल जाती है। पेट्रोल पंप पर इनकी गाड़ी रुकती है और जैसे ही वीरा गाड़ी से बाहर निकलती है, कुछ अपहरणकर्ता उसे अगवा कर लेते हैं। उन्हीं अपहरणकर्ताओं में से एक हैं, रणदीप हुड्डा यानी महावीर भाटी।
जैसे ही गैंग को पता चलता है कि वीरा अमीर बाप की बेटी है, पूरा गिरोह घबरा जाता है, मगर महावीर बिना डरे वीरा को अपने ट्रक में डालकर एक जगह से दूसरी जगह हाइवे पर दौड़ता रहता है। जल्द ही वीरा को यह सफर इतना अच्छा लगने लगता है कि अब वह वापस घर जाना नहीं चाहती, लेकिन असल वजह क्या है, वीरा के घर न जाने की इसके लिए 'हाइवे' देखनी पड़ेगी।
यह फिल्म देश के छह राज्यों की सुंदरता को खूबसूरती से कैद करते हुए गुजरती है। आलिया भट्ट ने अच्छा अभिनय किया है। हरियाणा के जाट के रोल में रणदीप हुड्डा भी जमे हैं, मगर फिल्म की कहानी और स्क्रीन प्ले बेहद कमजोर है। निर्देशक इम्तियाज अली फिल्म में क्या दिखाना चाहते हैं या क्या बताना चाहते हैं, समझ से परे है। भागते हुए ट्रक की पुलिस तलाशी लेती है और वीरा के पास बचने का अच्छा मौका है, फिर भी वह छुपती है और पुलिस की नजरों से बचती है। फिल्म के एक सीन में वीरा और महावीर अपने बचपन का राज खोलते हैं। इस राज में पता चलता है कि बचपन में वीरा शारीरिक शोषण का शिकार हुई थी, वह भी अपने ही एक परिवार के सदस्य से।
डायरेक्टर इम्तियाज अली कई कामयाब फिल्में बना चुके हैं। बतौर निर्देशक अपना बड़ा मुकाम भी बना चुके हैं, मगर 'हाइवे' की कहानी में वह चूक गए। हो सकता है कि अपनी कहानी से वह यह बताना चाहते हों कि बुरे काम सिर्फ सड़कों पर ही या छोटे लोग ही नहीं करते, बल्कि अमीरों के घरों में भी बुरे काम होते हैं। खासतौर से लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं। अगर कुछ इस सोच के साथ इम्तियाज ने फिल्म बनाई है तो सोच तो अच्छी है, मगर अफसोस की इसकी कहानी का ताना-बाना वह ठीक तरीके से नहीं बुन पाए। 'हाइवे' के लिए मेरी रेटिंग है, 2 स्टार।
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