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This Article is From Oct 02, 2014

फिल्म रिव्यू : कतई निराश नहीं करती 'हैदर'...

फिल्म रिव्यू : कतई निराश नहीं करती 'हैदर'...
मुंबई:

आज वह फिल्म रिलीज़ हुई है, जिसका इंतज़ार लंबे वक्त से चल रहा था... विलियम शेक्सपियर के मशहूर नाटक 'हैमलेट' पर आधारित विशाल भारद्वाज की फिल्म 'हैदर' आ गई है, जिसमें शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर, इरफान खान, तब्बू, आशीष विद्यार्थी और केके मेनन मुख्य भूमिकाओं में हैं...

'हैदर' की कहानी वर्ष 1995 के कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है, जहां एक तरफ आतंकवादियों का आतंक है और दूसरी ओर सेना का डर... यहां 'हैदर' अपने माता-पिता के साथ रहता है... 'हैदर' के पिता डॉक्टर हैं, और उसकी मां का किरदार निभाया है तब्बू ने... 'हैदर' के चाचा बने हैं केके मेनन, जो पेशे से वकील दिखाए गए हैं...

सरहद पार का आतंकवादी साया कहीं 'हैदर' को न घेर ले, इसलिए उसके माता-पिता उसे पढ़ने के लिए अलीगढ़ भेज देते हैं, लेकिन जब वह वहां से लौटता है तो देखता है कि उसका घर तबाह हो चुका है, पिता लापता हैं, और मां उसके चाचा से निकाह की तैयारी में है... इसके आगे की कहानी आपको पैसे खर्च करके देखनी पड़ेगी...

अब बात करते हैं, फिल्म की खामियों और खूबियों की... विशाल भारद्वाज ने बहुत खूबसूरती के साथ 'हैमलेट' को फिल्म का रूप दिया है... नाटक से परे यह फिल्म एक असली कहानी की तरह पर्दे पर उभरती है... कश्मीर की हालत 'हैदर' की कहानी के जरिये जिस तरह विशाल ने बयान की है, वह आपको हैरान कर सकता है, क्योंकि यह फिल्म दृश्यों के अलावा मनःस्थिति के साथ ज़्यादा खेलती है... हालांकि किरदारों के चेहरों से ज़्यादा उनके अंदर झांकने पर शायद आप मजबूर हो जाएं, क्योंकि फिल्म के हर लम्हे को विशाल भारद्वाज ने बड़ी बारीकी के साथ अंजाम दिया है...

फिल्म की गति आपको धीमी लग सकती है, क्योंकि यहां कई सीन्स में किरदारों की शारीरिक कम, मानसिक गतिविधियां ज़्यादा हैं... हालांकि मुझे लगता है कि विशाल इस तरह के सीन्स को कुछ यूं गढ़ सकते थे, ताकि दर्शक बेहतर ढंग से जुड़ पाते, क्योंकि कुछ वक्त बाद फिल्म लंबी लगने लगती है... फिल्म में शाहिद कपूर और श्रद्धा कपूर के बीच फिल्माया गया एक गाना है, जो फिल्म के एक खास भाग में आपको बेमतलब लग सकता है...

अभिनेता इरफान खान मेहमान भूमिका में हैं, लेकिन उनकी एंट्री और एक्टिंग धमाकेदार है... इरफान का किरदार रूहानी है, और यह सोचने पर भी मजबूर कर देता है कि उनके दर्जे की एक्टिंग करना शायद ही किसी के बस में हो... शाहिद के पिता के किरदार में नरेंद्र झा प्रभावशाली हैं... तब्बू की परफॉरमेंस तो कमाल की है ही, शाहिद ने भी कमाल का अभिनय किया है...

अब बात करते हैं, फिल्म के गानों की... यूं तो गुलज़ार ने सारे ही गाने बेहतरीन लिखे हैं, लेकिन खासतौर पर 'बिस्मिल...' बेहद प्रभावशाली लगा... इस गीत को जितना अच्छा गुलज़ार ने लिखा है, उतनी ही खूबसूरती से सुखविंदर ने इसे गाया है, और सुदेश ने इस पर कमाल की कोरियोग्राफी की है... शाहिद कपूर तो वैसे ही कमाल के डांसर हैं, लेकिन इस गाने में मुझे उनका डांस अब तक का बेहतरीन परफॉरमेंस लगा, क्योंकि वह मूड और स्टेप्स के तालमेल में कहीं नहीं चूकते... श्रद्धा कपूर भी इन सभी के बीच अपने किरदार के साथ न्याय करती हैं, लेकिन आशीष विद्यार्थी जैसे एक्टर को फिल्म में ज़्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया... केके मेनन ठीक-ठाक हैं, हालांकि उनके हावभाव उनकी हर फिल्म की तरह इसमे भी एक जैसे ही लगे...

दर्शकों को यह बताना मुझे बेहद ज़रूरी लग रहा है कि अगर आपको 'हैदर' से मसालेदार एंटरटेनिंग फिल्म जैसी उम्मीदें है, तो आप निराश हो सकते हैं, क्योंकि यह फिल्म उनके लिए है, जिन्हें ठहराव और ईमानदारी से कही जाने वाली कहानियां पसंद आती हैं... मेरी ओर से इस फिल्म की रेटिंग है - 3.5 स्टार...

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