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This Article is From Feb 10, 2012

रिव्यू : औसत है 'एक मैं और एक तू'

मुंबई: लास वेगास में आर्किटेक्ट राहुल कपूर, यानि इमरान खान और हेयर स्टाइलिस्ट रियाना ब्रिगेंज़ा, यानि करीना कपूर इत्तफाक से मिलते हैं... एक तरफ जहां राहुल की ज़िन्दगी में उसके करियर से लेकर हेयरस्टाइल तक उसके मां-बाप तय करते आए हैं, वहीं रियाना एकदम आज़ाद माहौल में पली-बढ़ी है... वेगास में कहीं भी किसी भी हालत में शादी हो सकती है, यह जानकर नशे में धुत्त राहुल और रियाना एक रात शादी कर लेते हैं, लेकिन सुबह उठते ही गलती का अहसास होता है और शादी कैंसिल कराने की बात ठान लेते हैं...

बेसिक आइडिया, वर्ष 2008 की हॉलीवुड फिल्म 'वॉट हैपन्ड इन वेगास' (What happened in Vegas) का है, लेकिन उसकी बराबरी नहीं हो पाई... यहां अंदरूनी कहानी में भी बदलाव है... बहुत एवरेज स्टोरी है, जिसमें ज़िन्दादिल रियाना के साथ रहकर राहुल को पता चलता है कि खुशियां कितनी छोटी-छोटी चीज़ों में छिपी हैं और मां-बाप की इच्छा और अनुशासन के बोझ तले वह कितनी घुटन-भरी ज़िन्दगी जी रहा था, लेकिन इस पूरे प्रोसेस में हाई और लो वोल्टेज इमोशनल ड्रामा की भारी कमी है... न कैरेक्टर्स खुलकर हंसते हैं, न रोते हैं... फिल्म सीधी-सपाट, एक ही लेवल पर चलती रहती है... हालांकि आखिरी आधे घंटे में कहानी में एक मोड़ आता है, जब मेहमानों के सामने मां-बाप से बगावत करते राहुल के अच्छे सीन्स हैं... कुछ कॉमिक एलिमेंट्स भी हैं, लेकिन टुकड़ों-टुकड़ों में...

म्यूज़िक तो पहले ही एवरेज है... इमरान भी इम्प्रेस नहीं कर पाए... क्लाईमेक्स आते-आते करीना के किरदार में जान दिखती है... बेटे की बातों से ज़्यादा नेल पॉलिश दिखाने में दिलचस्पी रखने वाली मां के रोल में रत्ना पाठक इम्प्रेसिव हैं... फिल्म का एंड ट्रेडिशनल बॉलीवुड सिनेमा से अलग है, लेकिन डायरेक्टर शकुन बत्रा की 'एक मैं और एक तू' एवरेज फिल्म ही है, और इसके लिए मेरी रेटिंग है - 2.5 स्टार...

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