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इमरान इम्प्रेस नहीं कर पाए, क्लाईमेक्स पर करीना में जान दिखी, मां के रोल में रत्ना पाठक इम्प्रेसिव हैं... फिल्म का एंड ट्रेडिशनल बॉलीवुड सिनेमा से अलग है, लेकिन फिल्म एवरेज ही है...
बेसिक आइडिया, वर्ष 2008 की हॉलीवुड फिल्म 'वॉट हैपन्ड इन वेगास' (What happened in Vegas) का है, लेकिन उसकी बराबरी नहीं हो पाई... यहां अंदरूनी कहानी में भी बदलाव है... बहुत एवरेज स्टोरी है, जिसमें ज़िन्दादिल रियाना के साथ रहकर राहुल को पता चलता है कि खुशियां कितनी छोटी-छोटी चीज़ों में छिपी हैं और मां-बाप की इच्छा और अनुशासन के बोझ तले वह कितनी घुटन-भरी ज़िन्दगी जी रहा था, लेकिन इस पूरे प्रोसेस में हाई और लो वोल्टेज इमोशनल ड्रामा की भारी कमी है... न कैरेक्टर्स खुलकर हंसते हैं, न रोते हैं... फिल्म सीधी-सपाट, एक ही लेवल पर चलती रहती है... हालांकि आखिरी आधे घंटे में कहानी में एक मोड़ आता है, जब मेहमानों के सामने मां-बाप से बगावत करते राहुल के अच्छे सीन्स हैं... कुछ कॉमिक एलिमेंट्स भी हैं, लेकिन टुकड़ों-टुकड़ों में...
म्यूज़िक तो पहले ही एवरेज है... इमरान भी इम्प्रेस नहीं कर पाए... क्लाईमेक्स आते-आते करीना के किरदार में जान दिखती है... बेटे की बातों से ज़्यादा नेल पॉलिश दिखाने में दिलचस्पी रखने वाली मां के रोल में रत्ना पाठक इम्प्रेसिव हैं... फिल्म का एंड ट्रेडिशनल बॉलीवुड सिनेमा से अलग है, लेकिन डायरेक्टर शकुन बत्रा की 'एक मैं और एक तू' एवरेज फिल्म ही है, और इसके लिए मेरी रेटिंग है - 2.5 स्टार...
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