महाराष्ट्र के विश्व प्रसिद्ध शनि शिंगणापुर धाम से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है रेणुका दरबार, जहां रेणुका देवी का नयनाभिराम मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूर्णतया कांच के टुकड़ों से सजा है, जिसे राजस्थान के कुशल कलाकारों ने सजाया है। यही कारण है कि इसे कांच का मंदिर (ग्लास टेम्पल) भी कहा जाता है।
मच्छिद्रनाथजी ने यहां फेंकी थी सोने की एक ईंट...
यह मंदिर जिस गांव में स्थापित है, उसे सोनई कहा जाता है। यहां के लोग बताते हैं, प्राचीन काल में उनके गांव का नाम स्वर्णमयी था। लोगों का मानना है कि यहां सिद्ध संत मच्छिद्रनाथजी ने सोने की एक ईंट फेंकी थी, वह ईंट जहां गिरी थी, वह यही सोनई गांव है।
मंदिर में स्थापित है ॐकार यंत्र...
यहां के लोग बताते हैं कि वर्तमान मंदिर की स्थापना सन 1854 में हुई थी। लोगों का मानना है कि यहां आदिशक्ति भगवती श्री रेणुका देवी के रूप में स्वयंभू प्रकट हुई थी। इस मंदिर में एक ‘ॐकार यंत्र’ स्थापित है, जिसकी विधिवत पूजा की जाती है। यहां के एक पुजारी का दावा है कि यह दुनियां का एकमात्र ॐकार शक्तिपीठ है।
प्रवेशद्वार पर है देवी दुर्गा की 8 फीट की मूर्ति...
इस मंदिर में परिसर में ही हिन्दू धर्म के अन्य देवी-देवताओं के देवालय भी बने हैं। इनमें मुख्य हैं: श्री सप्तयोगिनी, श्री दत्तात्रय, कालभैरव, जलदेवता, नाग देवता, औदुंबर, छाया, वेताल आदि। मंदिर के प्रवेशद्वार पर श्री दुर्गा माता की 8 फीट की मूर्ति स्थापित है।
एक साल में मनाए जाते हैं 63 उत्सव-त्यौहार...
मंदिर पुजारी के अनुसार, मंदिर में सालभर में 63 उत्सव और त्यौहार मनाए जाते है। यहां प्रातकाल से लेकर मध्य रात्रि तक अनवरत भजन, पूजन, आरती नामस्मरण उपासना चलती रहती है। साथ ही शतचंडी, पंचकुंडी यज्ञ, विष्णुयज्ञ, गीता यज्ञ, शिव यज्ञ, गायत्री यज्ञ, गणेशचंडी यज्ञ, यजुर्वेद संहिता, पंचयतन यज्ञ, चातुर्मास यज्ञ, सहस्त्रचंडी यज्ञ, श्री दत्त यज्ञ, लक्ष्मीचंडी यज्ञ, अतिरुद्र स्वाहाकार, भागवत सप्ताह आदि आयोजित होते रहते हैं।
मच्छिद्रनाथजी ने यहां फेंकी थी सोने की एक ईंट...
यह मंदिर जिस गांव में स्थापित है, उसे सोनई कहा जाता है। यहां के लोग बताते हैं, प्राचीन काल में उनके गांव का नाम स्वर्णमयी था। लोगों का मानना है कि यहां सिद्ध संत मच्छिद्रनाथजी ने सोने की एक ईंट फेंकी थी, वह ईंट जहां गिरी थी, वह यही सोनई गांव है।
मंदिर में स्थापित है ॐकार यंत्र...
यहां के लोग बताते हैं कि वर्तमान मंदिर की स्थापना सन 1854 में हुई थी। लोगों का मानना है कि यहां आदिशक्ति भगवती श्री रेणुका देवी के रूप में स्वयंभू प्रकट हुई थी। इस मंदिर में एक ‘ॐकार यंत्र’ स्थापित है, जिसकी विधिवत पूजा की जाती है। यहां के एक पुजारी का दावा है कि यह दुनियां का एकमात्र ॐकार शक्तिपीठ है।
प्रवेशद्वार पर है देवी दुर्गा की 8 फीट की मूर्ति...
इस मंदिर में परिसर में ही हिन्दू धर्म के अन्य देवी-देवताओं के देवालय भी बने हैं। इनमें मुख्य हैं: श्री सप्तयोगिनी, श्री दत्तात्रय, कालभैरव, जलदेवता, नाग देवता, औदुंबर, छाया, वेताल आदि। मंदिर के प्रवेशद्वार पर श्री दुर्गा माता की 8 फीट की मूर्ति स्थापित है।
एक साल में मनाए जाते हैं 63 उत्सव-त्यौहार...
मंदिर पुजारी के अनुसार, मंदिर में सालभर में 63 उत्सव और त्यौहार मनाए जाते है। यहां प्रातकाल से लेकर मध्य रात्रि तक अनवरत भजन, पूजन, आरती नामस्मरण उपासना चलती रहती है। साथ ही शतचंडी, पंचकुंडी यज्ञ, विष्णुयज्ञ, गीता यज्ञ, शिव यज्ञ, गायत्री यज्ञ, गणेशचंडी यज्ञ, यजुर्वेद संहिता, पंचयतन यज्ञ, चातुर्मास यज्ञ, सहस्त्रचंडी यज्ञ, श्री दत्त यज्ञ, लक्ष्मीचंडी यज्ञ, अतिरुद्र स्वाहाकार, भागवत सप्ताह आदि आयोजित होते रहते हैं।
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