नहीं लगेगी मंदिर उत्सव 'त्रिशूर पुरम' की आतिशबाजी पर रोक, जानें केरल के इस मशहूर उत्सव की ख़ास बातें

नहीं लगेगी मंदिर उत्सव 'त्रिशूर पुरम' की आतिशबाजी पर रोक, जानें केरल के इस मशहूर उत्सव की ख़ास बातें

फाइल फोटो

'गॉड्स ओन कंट्री' कहे जाने वाले केरल में स्थित कोल्लम के पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजियों के कारण हुई हृदय-विदारक दुर्घटना के बावजूद केरल की चांडी सरकार ने निर्णय लिया है कि त्रिशूर नगर के वार्षिक मंदिर उत्सव 'त्रिशूर पुरम' में आतिशबाजी का खेल पर रोक नहीं लगेगी।

आखिर ऐसी क्या बात है इस उत्सव में, आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ ख़ास बातें।
 
मंदिरों के बीच होता है मुकाबला
-- त्रिशूर पुरम केरल के नगर त्रिशूर का एक सामाजिक और धार्मिक उत्सव है, जो आठ दिनों तक चलता है। यह वार्षिक उत्सव यहां के हिन्दू समुदाय द्वारा प्रथम मलयालम महीना मेड़म (अप्रैल) में मनाया जाता है। पूरम का अर्थ होता है: उत्सव।
 
-- त्रिशूर पुरम की शुरुआत पूर्व कोच्चि राज्य के महाराज सकथान थामपुरन ने की थी। आज यह उत्सव आस्था के साथ-साथ आतिशबाजियों के लिए जाना जाता है। वास्तव में यह एक भव्य रंगीन मंदिर उत्सव है, जो नगर के एक प्राचीन वडक्कुमनाथ मन्दिर के प्रांगण में आयोजित किया जाता है।
 
-- इस उत्सव में त्रिसूर के त्रिरूवामबाड़ी कृष्ण मंदिर, पारामेकावु देवी मंदिर, वड़ाकुंठा मंदिर साहित आस-पास के अन्य छह मंदिर भाग लेते हैं।
 
हाथियों का मनमोहक प्रदर्शन
-- केरल के पारंपरिक गीत-संगीत और नृत्य के साथ सुसज्जित हाथियों का प्रदर्शन इस उत्सव के विशेष आकर्षण हैं। प्रत्येक मंदिर समूह को 15 हाथियों को प्रदर्शित करने की अनुमति होती है। हर समूह इस जुगत में रहता है कि उसे दक्षिण भारत में सबसे बेहतरीन हाथी और छतरी रखने की प्रशस्ति मिले।
 
-- मंदिरों द्वारा प्रदर्शन की सारी तैयारियां गुप्त तरीके से अंजाम दी जाती हैं, कि एक समूह को दूसरे की गतिविधियों की भनक तक न लग सके।
 
-- त्रिशूर के ही त्रिरूवामबाड़ी कृष्ण मंदिर और पारामेकावु देवी मंदिर इस विशेष उत्सव के आयोजन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं। वास्तव में त्रिशूर पुरम की रोचकता इन्हीं दो मंदिरों के बीच के कम्पीटिशन के कारण बढ़ जाती है।
 
आतिशबाजियों की होड़...
-- पूरम उत्सव के अंत में ये दोनों समूह वडक्कुमनाथ मन्दिर के पश्चिमी द्वार से अंदर आते हैं और दक्षिणी द्वार से बाहर जाते हैं, लेकिन इस दौरान वे जिस भाव-भंगिमा से एक-दूसरे की आंखों में आंखें डाल कर देखते हैं, वह काबिलेगौर होता है, इससे दोनों समूहों के बीच के कम्पीटिशन का पता साफ़-साफ़ लग जाता है।
 
-- यह कम्पीटिशन न केवल हाथियों की साजसज्जा, कलियारपट्टू नृत्य और कुडमट्टम प्रतियोगिता के रूप में दिखता है, बल्कि दोनों समूहों के बीच आतिशबाजियों की टक्कर के रूप में भी होती है।
 
-- आतिशबाजियों का कम्पीटिशन एक तरह से यहां का 'ग्रांड फिनाले' है, जो सुबह के तीन-साढ़े तीन बजे से शुरू हो जाती है। भांति-भांति की आतिशबाजियों की आकर्षक और चौंधिया देनेवाली रौशनी से त्रिशूर का आसमान जगमगा उठता है। निस्संदेह यह इस उत्सव का एक विशेष आकर्षण है।
 
उल्लेखनीय है कि इस साल यह उत्सव 17 अप्रैल से शुरू होगा, जो अगले आठ दिनों तक चलेगा। इस उत्सव के अंतिम दो दिन काफी रोचक और देखने लायक होते हैं।

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