प्रतीकात्मक चित्र (साभार: dnaindia.com)
मंझगाम (जम्मू एवं कश्मीर):
दक्षिण कश्मीर घाटी में मंदिर और मस्जिद कई दशकों से साथ-साथ खड़े हैं। इनके बीच का सामुदायिक सौहार्द्र लगभग तीन दशकों के इस्लामिक संघर्ष के बावजूद अडिग है। श्रीनगर से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित मंझगाम अलगाववादी घुसैपठ के बावजूद शांतिपूर्ण क्षेत्र रहा है। घाटी में घुसपैठ 1990 के दशक में चरम पर थी, जिसकी वजह से भारी संख्या में पंडितों को घाटी छोड़नी पड़ी थी।
लेकिन इन सबके बावजूद इस गांव में शांति का माहौल है। स्थानीय नागरिकों ने इस शांति का श्रेय 600 वर्ष पुराने दो धर्मस्थलों को दिया है।
माता खीरभवानी को समर्पित है मंदिर...
इसमें एक माता खीरभवानी को समर्पित हिंदू मंदिर है। खीरभवानी हिंदू देवी है। वहीं, एक मुस्लिम दरगाह है, जिसका नामकरण 15वीं सदी के सूफी संत बाबा खय्यामुद्दीन के नाम पर रखा गया है, जिनकी शांति की शिक्षाओं का कश्मीरी अभी भी अनुसरण करते हैं।
प्रत्येक वर्ष मुसलमान और पंडित अपने-अपने धार्मिक देवी-देवताओं का वार्षिक उत्सव मनाते हैं। मुसलमान खीरभवानी के वार्षिक उत्सव के दिन देवी का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए खीर बनाते हैं और उसे हिदुओं को देते हैं। संत के सम्मान में हिंदू भी मुसलमानों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं।
सामुदायिक सौहार्द्र की सर्वश्रेष्ठ मिसाल है यहां...
दोनों ही उत्सव प्रतिवर्ष अलग-अलग तारीख को आयोजित होते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि वे कभी-कभी ही धार्मिक स्थलों का दौरा करते हैं।
कार्यकर्ता एवं वकील अरशद बाबा ने आईएएनएस को बताया, "यह गांव सामुदायिक सौहार्द्र का सर्वश्रेष्ठ मिसाल है। हालांकि, यहां मुसलमान बहुतायत संख्या में हैं, लेकिन हम अपने पंडित भाइयों को यह महसूस नहीं होने देते।"
बच्चों को धार्मिक मान्यताओं को समझने की छूट...
यहां सौहार्द्र समाप्त नहीं होता। कई ग्रामीण कहते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को एक-दूसरे की धार्मिक शिक्षाओं एवं मान्यताओं को समझने की छूट दी है।
इन धर्मस्थलों से एक किलोमीटर दूर अंग्रेजी माध्यमिक हाई स्कूल है, जिसका संचालन इस्लामिक समूह कर रहा है। इस स्कूल में दर्जनभर हिंदू विद्यार्थी सिर्फ विज्ञान, इतिहास और गणित ही नहीं, बल्कि इस्लाम की शिक्षा भी ग्रहण करते हैं।
“हम बहुत खुश हैं...”: स्थानीय निवासी
ग्रामीणों के मुताबिक, मोहमदिया सल्फिया संस्थान में 400 विद्यार्थी हैं और यह गांव में सामुदायिक सौहार्द्र का स्रोत रहा है। एक हिंदू ग्रामीण प्रदीप कुमार (78) ने बताया, "हम बहुत खुश हैं कि हमारे बच्चे बुनियादी विषयों के अलावा भी कुछ सीख रहे हैं।"
पेशे से सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी कुमार कहते हैं कि कुछ नया सीखने में कुछ बुरा नहीं है और यदि यह इस्लाम के बारे में हो तो बिल्कुल भी नहीं।
मुसलमानों ने मानव श्रृंखला बनाकर की हिन्दुओं की रक्षा...
कुमार कहते हैं कि जब 1990 के शुरुआती दशक में घाटी में आतंकवाद ने पैर पसारा था, उस समय पंडितों को घाटी में अपने घरों को छोड़कर जाना पड़ा था। उस हालात में भी आधा दर्जन हिंदू परिवारों ने अपने घरों में ही रहने का फैसला किया था। उन्होंने कहा कि यह उनके मुसलमान पड़ोसियों की वजह से संभव हुआ, जिन्होंने उनके घरों के आसपास मानव श्रृंखला बनाकर उनकी रक्षा की।
उन्होंने कहा कि इस संसार में दूसरों के लिए अपने जीवन को खतरे में डालने वाले लोग आपको कहां मिलेंगे?
“यह जमीन हम दोनों की है...”: ग्राम पंचायत सदस्य
ग्राम पंचायत के सदस्य अब्दुल राशिद लावे ने कहा, "हम घाटी छोड़कर जा चुके लोगों से यहां वापस आने का आग्रह करते हैं। यह जमीन हम दोनों की है।"
लावे ने कहा, "उत्सवों के दौरान वे यहां आते हैं और माता खीरभवानी मंदिर के परिसर में रहने के बजाए हमारे साथ रहना पसंद करते हैं। हम उन्हें यहां स्थाई रूप से रहने देना चाहते हैं।"
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
लेकिन इन सबके बावजूद इस गांव में शांति का माहौल है। स्थानीय नागरिकों ने इस शांति का श्रेय 600 वर्ष पुराने दो धर्मस्थलों को दिया है।
माता खीरभवानी को समर्पित है मंदिर...
इसमें एक माता खीरभवानी को समर्पित हिंदू मंदिर है। खीरभवानी हिंदू देवी है। वहीं, एक मुस्लिम दरगाह है, जिसका नामकरण 15वीं सदी के सूफी संत बाबा खय्यामुद्दीन के नाम पर रखा गया है, जिनकी शांति की शिक्षाओं का कश्मीरी अभी भी अनुसरण करते हैं।
प्रत्येक वर्ष मुसलमान और पंडित अपने-अपने धार्मिक देवी-देवताओं का वार्षिक उत्सव मनाते हैं। मुसलमान खीरभवानी के वार्षिक उत्सव के दिन देवी का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए खीर बनाते हैं और उसे हिदुओं को देते हैं। संत के सम्मान में हिंदू भी मुसलमानों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं।
सामुदायिक सौहार्द्र की सर्वश्रेष्ठ मिसाल है यहां...
दोनों ही उत्सव प्रतिवर्ष अलग-अलग तारीख को आयोजित होते हैं, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि वे कभी-कभी ही धार्मिक स्थलों का दौरा करते हैं।
कार्यकर्ता एवं वकील अरशद बाबा ने आईएएनएस को बताया, "यह गांव सामुदायिक सौहार्द्र का सर्वश्रेष्ठ मिसाल है। हालांकि, यहां मुसलमान बहुतायत संख्या में हैं, लेकिन हम अपने पंडित भाइयों को यह महसूस नहीं होने देते।"
बच्चों को धार्मिक मान्यताओं को समझने की छूट...
यहां सौहार्द्र समाप्त नहीं होता। कई ग्रामीण कहते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों को एक-दूसरे की धार्मिक शिक्षाओं एवं मान्यताओं को समझने की छूट दी है।
इन धर्मस्थलों से एक किलोमीटर दूर अंग्रेजी माध्यमिक हाई स्कूल है, जिसका संचालन इस्लामिक समूह कर रहा है। इस स्कूल में दर्जनभर हिंदू विद्यार्थी सिर्फ विज्ञान, इतिहास और गणित ही नहीं, बल्कि इस्लाम की शिक्षा भी ग्रहण करते हैं।
“हम बहुत खुश हैं...”: स्थानीय निवासी
ग्रामीणों के मुताबिक, मोहमदिया सल्फिया संस्थान में 400 विद्यार्थी हैं और यह गांव में सामुदायिक सौहार्द्र का स्रोत रहा है। एक हिंदू ग्रामीण प्रदीप कुमार (78) ने बताया, "हम बहुत खुश हैं कि हमारे बच्चे बुनियादी विषयों के अलावा भी कुछ सीख रहे हैं।"
पेशे से सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी कुमार कहते हैं कि कुछ नया सीखने में कुछ बुरा नहीं है और यदि यह इस्लाम के बारे में हो तो बिल्कुल भी नहीं।
मुसलमानों ने मानव श्रृंखला बनाकर की हिन्दुओं की रक्षा...
कुमार कहते हैं कि जब 1990 के शुरुआती दशक में घाटी में आतंकवाद ने पैर पसारा था, उस समय पंडितों को घाटी में अपने घरों को छोड़कर जाना पड़ा था। उस हालात में भी आधा दर्जन हिंदू परिवारों ने अपने घरों में ही रहने का फैसला किया था। उन्होंने कहा कि यह उनके मुसलमान पड़ोसियों की वजह से संभव हुआ, जिन्होंने उनके घरों के आसपास मानव श्रृंखला बनाकर उनकी रक्षा की।
उन्होंने कहा कि इस संसार में दूसरों के लिए अपने जीवन को खतरे में डालने वाले लोग आपको कहां मिलेंगे?
“यह जमीन हम दोनों की है...”: ग्राम पंचायत सदस्य
ग्राम पंचायत के सदस्य अब्दुल राशिद लावे ने कहा, "हम घाटी छोड़कर जा चुके लोगों से यहां वापस आने का आग्रह करते हैं। यह जमीन हम दोनों की है।"
लावे ने कहा, "उत्सवों के दौरान वे यहां आते हैं और माता खीरभवानी मंदिर के परिसर में रहने के बजाए हमारे साथ रहना पसंद करते हैं। हम उन्हें यहां स्थाई रूप से रहने देना चाहते हैं।"
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
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