Saphala Ekadashi 2022 Parana: सफला एकादशी व्रत का पारण करने से पहले जरूर पढ़ें ये कथा, जानें पारण का सही समय

Saphala Ekadashi 2022 End Date: सफला एकादशी व्रत के पारण में विशेष सावधानी रखी जाती है. मान्यता है विधि-विधान पूर्वक व्रत का पारण करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है. आइए जानते हैं कथा और पारण का समय.

Saphala Ekadashi 2022 Parana: सफला एकादशी व्रत का पारण करने से पहले जरूर पढ़ें ये कथा, जानें पारण का सही समय

Saphala Ekadashi 2022: आज सफला एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा.

Saphala Ekadashi 2022 Parana Time: हिंदू पंचांग के अनुसार आज पौष कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि है. ऐसे में आज सफला एकादशी व्रत का पारण किया जाएगा. व्रती आज पारण के शुभ मुहूर्त में पूजा-पाठ करने के पश्चात् ब्राह्मण भोजन और दान करके व्रत का समापन करेंगे. सफला एकादशी सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाली कही गई है. ऐसे में पंचांग के अनुसार जानते हैं कि सफला एकादशी व्रत-पारण के लिए शुभ मुहूर्त क्या है और इस दिन किस कथा का पाठ करना शुभ होता है.

सफला एकादशी पारण मुहूर्त | Saphala Ekadashi 2022 Parana Time

पंचांग के अनुसार सफला एकादशी व्रत का पारण 20 दिसंबर 2022 को सुबह 08 बजकर 05 से सुबह 09 बजकर 16 मिनट तक किया जाएगा. इस व्रत का पारण द्वादशी की तिथि में किया जाता है. मान्यता है कि इस तिथि में व्रत का पारण न करने से पाप लगता है. 

सफला एकादशी व्रत कथा | Saphala Ekadashi Vrat Katha

चंपावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. उसके चार पुत्र थे. उन सबमें लुम्पक नाम वाला बड़ा राजपुत्र महापापी था. वह पापी सदा परस्त्री और वेश्यागमन और दूसरे बुरे कामों में अपने पिता का धन नष्ट किया करता था. सदैव ही देवता, बाह्मण, वैष्णवों की निंदा किया करता था. जब राजा को अपने बड़े पुत्र के ऐसे कुकर्मों का पता चला तो उन्होंने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. तब वह विचारने लगा कि कहां जाऊं? क्या करूं?

अंत में उसने चोरी करने का निश्चय किया. दिन में वह वन में रहता और रात्रि को अपने पिता की नगरी में चोरी करता और प्रजा को तंग करने और उन्हें मारने का कुकर्म करता. कुछ समय पश्चात सारी नगरी भयभीत हो गई. वह वन में रहकर पशु आदि को मारकर खाने लगा. नागरिक और राज्य के कर्मचारी उसे पकड़ लेते किंतु राजा के भय से छोड़ देते.

वन में एक अतिप्राचीन विशाल पीपल का वृक्ष था. लोग उसकी भगवान के समान पूजा करते थे. उसी वृक्ष के नीचे वह महापापी लुम्पक रहा करता था. इस वन को लोग देवताओं की क्रीड़ास्थली मानते थे. कुछ समय पश्चात पौष कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह वस्त्रहीन होने के कारण शीत के चलते सारी रात्रि सो नहीं सका. उसके हाथ-पैर अकड़ गए.

सूर्योदय होते-होते वह मूर्छित हो गया. दूसरे दिन एकादशी को मध्याह्न के समय सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई. गिरता-पड़ता वह भोजन की तलाश में निकला. पशुओं को मारने में वह समर्थ नहीं था, इसलिए पेड़ों के नीचे गिर हुए फल उठाकर वापस उसी पीपल वृक्ष के नीचे आ गया. उस समय तक भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे. वृक्ष के नीचे फल रखकर कहने लगा- हे भगवन! अब आपके ही अर्पण है ये फल. आप ही तृप्त हो जाइए. उस रात्रि को दु:ख के कारण रात्रि को भी नींद नहीं आई.

उसके इस उपवास और जागरण से भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए और उसके सारे पाप नष्ट हो गए. दूसरे दिन सुबह एक अतिसुंदर घोड़ा अनेक सुंदर वस्तुअओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया.

उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजपुत्र! श्रीनारायण की कृपा से तेरे पाप नष्ट हो गए हैं. अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर. ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके भगवान आपकी जय हो! कहकर अपने पिता के पास गया. उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और स्वयं वन के रास्ते चल दिए.

अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगा. उसके स्त्री, पुत्र आदि सारा कुटुम्ब भगवान नारायण का परम भक्त हो गया। वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर वन में तपस्या करने चला गया और अंत समय में वैकुंठ को प्राप्त हुआ.

ऐसे में जो मनुष्य इस परम पवित्र सफला एकादशी का व्रत करता है उसे अंत में मुक्ति मिलती है. जो नहीं करते वे पूंछ और सींगों से रहित पशुओं के समान हैं. इस सफला एकादशी के माहात्म्य को पढ़ने से या सुनने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)