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This Article is From Sep 02, 2022

Santan Saptami 2022: इस दिन रखा जाएगा संतान सप्तमी व्रत, पूजा के बाद जरूर पढ़ें यह कथा, जानें महत्व

Santan Saptami 2022 Date: संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रखा जाता है. इस बार संतान सप्तमी का व्रत 3 सितंबर 2022 को रखा जाएगा. आइए जानते हैं संतान सप्तमी की तिथि और कथा के बारे में.

Santan Saptami 2022: इस दिन रखा जाएगा संतान सप्तमी व्रत, पूजा के बाद जरूर पढ़ें यह कथा, जानें महत्व
Santan Saptami 2022 Date: संतान सप्तमी के दिन व्रत कथा का खास महत्व है.

Santan Saptami 2022 Vrat Katha: भाद्रपद शुक्ल अष्टमी तिथि को हर साल संतान सप्तमी का व्रत (Santan Saptami Vrat kab hai) रखा जाता है. इस दिन महिलाएं संतान के सुख और उन्नति के लिए भगवान शिव और मां पार्वती से प्रार्थना करती हैं. इस बार संतान सप्तमी (Santan Saptami 2022 Date) का व्रत 03 सितंबर, शनिवार को रखा जाएगा. धार्मिक मान्यता है संतान सप्तमी के व्रत में कथा (Santan Saptami Vrat Katha) सुनने और सुनाने का खास महत्व है. यही कारण है कि व्रती संतान सप्तमी के दिन पूजा (Santan Saptami Puja) के बाद निश्चित रूप से व्रत कथा का पाठ करती हैं या सुनती हैं. मान्यता यह भी है कि कथा करने के बाद ही संतान सप्तमी का व्रत पूरा होता है. आइए जानते हैं कि संतान सप्तमी का व्रत (Santan Saptami Vrat Date) कब रखा जाएगा, संतान सप्तमी की व्रत कथा और उसका महत्व क्या है. 

संतान सप्तमी 2022 तिथि | Santan Saptami 2022 Date

भाद्रपद शुक्ल सप्तमी तिथि आरंभ - 2 सितंबर 2022 को दोपहर 01 बजकर 51 मिनट पर

भाद्रपद शुक्ल सप्तमी तिथि समाप्त - 3 सितंबर 2022 को दोपहर 12 बजकर 28 मिनट पर 

संतान सप्तमी व्रत कथा Santan Saptami Vrat katha

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि मथुरा में उनके माता-पिता लोमश ऋषि की बहुत सेवा की थी. माता देवकी और वसुदेव की भक्ति देखकर ऋषि बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने उनसे संतान सप्तमी का व्रत रखने के लिए कहा. इसके साथ ही ऋषि ने संतान सप्तमी की कथा बताई. 

कथा के अनुसार नहुष अयोध्यापुरी के राजा की पत्नी चंद्रमुखी और उसी राज्य में रह रहे विष्णुदत्त नाम के ब्राह्मण की पत्नी रूपवती सहेली थी. संयोग से एक दिन दोनों सरयू नदी में स्नान करने गईं. जहां दूसरी स्त्रियां पार्वती और शिव की प्रतिमा बनाकर पूजन कर रही थीं. दोनों ने महिलाओं से इस पूजन का महत्व और संतान प्राप्ति के लिए संतान सप्तमी व्रत को करने का संकल्प लेकर डोरा बांध लिया. हालांकि घर लौटने पर वे इस व्रत को करना भूल गईं.

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कथा के अनुसार, मृत्यु के बाद रानी वानरी और ब्राह्मणी ने मुर्गी के रूप में जन्म लिया. बाद में दोनों पशु योनि छोड़कर फिर से मानव योनि में आईं. इस जन्म में चंद्रमुखी मथुरा के राजा की रानी बनी जिसका नाम था ईश्वरी. वहीं ब्राह्मणी का नाम भूषणा था. भूषणा को पुर्नजन्म का व्रत याद था, इसलिए उसकी इस जन्म में आठ संतान हुई. लेकिन रानी व्रत भूलने के कारण इस जन्म में भी संतान सुख से वंचित रह गईं. 

कहते हैं कि एक दिन भूषणा पुत्रशोक में डूबी हुई थीं. रानी ईश्वरी को सांत्वना देने पहुंची, लेकिन उसे देखते ही रानी के मन में ईर्ष्या भाव पैदा हो गया. उसने उसके बच्चों को मारने का प्रयास किया लेकिन शिव-पार्वती और व्रत के प्रभाव से भूषणा के बच्चों को कोई नुकसान नहीं हुआ. उसने भूषणा को बुलाकर सारी बात बताईं और फिर क्षमा याचना करके उससे पूछा- आखिर तुम्हारे बच्चे मरे क्यों नहीं. भूषणा ने उसे पूर्वजन्म की बात याद दिलाई और कहा कि संतान सप्तमी व्रत के प्रभाव से मेरे पुत्रों का कुछ भी नहीं हुआ. जिसके बाद रानी ईश्वरी ने भी संतान सुख पाने वाले ये व्रत रखा और 9 माह बाद एक सुंदर बालक को जन्म दिया. मान्यता है कि तभी से संतान सुख और उसकी रक्षा के लिए संतान सप्तमी का व्रत रखा जाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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