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This Article is From Jan 28, 2022

रवि प्रदोष के दिन इस कथा को पढ़ने या सुनने से मिलता है प्रदोष व्रत का फल

प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है. इस दिन भगवान शिव और सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इसी तरह रविवार का दिन भगवान सूर्य नारायण को समर्पित होता है. कहते हैं इस दिन व्रत पूजन करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है. माना जाता है कि इस दिन रवि प्रदोष व्रत की कथा को पढ़ने या सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

रवि प्रदोष के दिन इस कथा को पढ़ने या सुनने से मिलता है प्रदोष व्रत का फल
रवि प्रदोष के दिन जरूर सुनें यह व्रत कथा
नई दिल्ली:

माघ माह (Magh Month) के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी ति​थि को रवि प्रदोष व्रत रखा जाता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की उपासना और पूजा का विधान है. यह व्रत 30 जनवरी दिन रविवार को है. प्रदोष व्रत भगवान शंकर को समर्पित होता है. इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) और सूर्य देव की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इसी तरह रविवार का दिन भगवान सूर्य नारायण को समर्पित होता है. कहते हैं इस दिन व्रत पूजन करने से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे आपको मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है. प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है.

बता दें कि माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है. एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में, इस तरह से साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं. प्रदोष व्रत कई कष्टों को दूर करने वाला व्रत बताया गया है. मान्यता है कि रवि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा करने से सुख और आरोग्य की प्राप्ति होती है. माना जाता है कि इस दिन रवि प्रदोष व्रत की कथा को पढ़ने या सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

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रवि प्रदोष व्रत कथा | Ravi Pradosh Vrat Katha

पौराणिक कथा के मुताबिक, एक गांव में गरीब ब्राह्मण परिवार निवास करता था. उस ब्रह्मण की पत्नी विधि विधान से प्रदोष व्रत का पालन करती थी. एक समय की बात है, जब ब्रह्मण का बेटा गांव से बाहर जा रहा था, तो कुछ चोरों ने उसे पकड़ लिया. इस दौरान चोरों ने उसका सामान (पोटली) छीन लिया और उससे अपने घर के गुप्त धन के बारे में पूछने लगे. बालक ने बताया कि पोटली में सिवाय रोटी के कुछ भी नहीं है. मेरा परिवार भी बेहद गरीब है और हमारे पास कोई गुप्त धन नहीं है. ये सुनते ही चोरों ने उसे छोड़ दिया. रास्ते में आगे जाकर थका बालक एक बरगद के पेड़ की नीचे छाए में सो गया. उसी समय राजा के सिपाही चोरों को खोजते हुए वहां पहुंचे और बालक को चोर समझ पकड़ कर ले गए व जेल में डाल दिया.

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सूर्यास्त के बाद भी जब बालक घर नहीं पहुंचा तो उसकी मां परेशान हो गई. बताते हैं कि उस दिन बालक की मां का प्रदोष व्रत था. पूजा के समय बेटे की चिंता से परेशान ब्रह्मण की पत्नी ने भगवान शिव से पुत्र की कुशलता और उसकी रक्षा की प्रार्थना की. भगवान भोलेनाथ ने ब्रह्मण की पत्नी की प्रार्थना सुन ली. इसके बाद भगवान शिव ने राजा को स्वप्न में बालक को जेल से मुक्त करने का आदेश दिया और कहा वह बालक निर्दोष है, उसे बंदी बनाकर रखोगे, तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा.

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अगले ही दिन सुबह राजा ने उस बालक को रिहा करने का आदेश दिया. इस दौरान बालक राज दरबार में आया और उसने पूरी घटना राजा को बताई. इस पर राजा ने उसे माता पिता को दरबार में बुलाया. ब्रह्माण परिवार के राज दरबार में आने का बाद राजा ने उनसे कहा कि आपका पुत्र निर्दोष है, उसे मुक्त कर दिया गया है. राजा ने ब्राह्मण परिवार की जीविका के लिए पांच गांव दान कर दिए. इस तरह भगवान शिव की कृपा से वह ब्राह्मण परिवार सुखीपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा. इस प्रकार से प्रदोष व्रत की महिमा का बखान किया गया है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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