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This Article is From May 22, 2018

Ramzan 2018: रोज़े क्‍यों रखते हैं मुसलमान?

इस्लाम धर्म के मुताबिक रमज़ान के महीने को नेकियों, आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना माना जाता है.

Ramzan 2018: रोज़े क्‍यों रखते हैं मुसलमान?
रमज़ान (Ramzan) में क्यों रखें जाते हैं रोज़े?
नई दिल्ली: रमज़ान का पाक महीना चल रहा है. इस महीने के पूरे 30 दिन हर मुसलमान रोज़े रखता है. रोज़े के दौरान सभी तय वक्त पर सुबह को सहरी और शाम को इफ्तार खाते हैं. सदियों से मुसलमान हर साल रमज़ान के पूरे एक महीने भूखे-प्यासे रहकर रोज़े रख रहे हैं. लेकिन सवाल है कि आखिर पूरे महीने बिना पानी और खाने के क्यों? यहां जानें इस सवाल का जवाब कि आखिर क्यों हर मुसलमान पूरे 30 दिनों तक भूखा रहता है. 

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मुसलमान रोज़े क्यों रखते हैं?
इस्लाम धर्म के मुताबिक रमज़ान के महीने को नेकियों, आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना माना जाता है. मान्यता है कि इस दौरान रोज़े रख भूखे रहने से दुनियाभर के गरीब लोगों की भूख और दर्द को समझा जाता है. क्योंकि तेज़ी से आगे बढ़ते दौर में लोग नेकी और दूसरों के दुख-दर्द को भूलते जा रहे हैं. रमज़ान में इसी दर्द को महसूस किया जाता है. सिर्फ भूखे रहकर दूसरों के दर्द को समझने के अलावा इस महीने के रोज़े को कान, आंख, नाक और जुबान का रोज़ा भी माना जाता है. मान्यता है कि रोज़े के दौरान ना बुरा सुना जाता है, ना बुरा देखा जाता है, ना बुरा अहसास किया जाता है और ना ही बुरा बोला जाता है. यह पूरा महीना आत्मनियंत्रण और खुद पर संयम रखने का महीना होता है. इसी वजह से हर मुसलमान रोज़ा रख खुद को बाहरी और अंदरूनी हर तरफ से पाक रखता है. यानी खुद की इच्छाओं पर संयम रख बुरी आदतों को छोड़ने की ओर प्रयास करता है. 

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आपको बता दें रमज़ान के महीने को तीन भागों में बांटा जाता है. 10 दिन के पहले भाग को 'रहमतों का दौर' बताया गया है. 10 दिन के दूसरे भाग को 'माफी का दौर' कहा जाता है और 10 दिन के आखिरी हिस्से को 'जहन्नुम से बचाने का दौर' पुकारा जाता है.

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