मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी का व्रत करने से मनुष्यों के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. यही नहीं इस व्रत के प्रभाव से पितरों को भी मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि यह व्रत मनुष्य के मृतक पूर्वजों के लिए स्वर्ग के द्वार खोलने में मदद करता है. जो भी व्यक्ति मोक्ष पाने की इच्छा रखता है उसे इस एकादशी (Ekadashi) पर व्रत रखना चाहिए. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के मुख से पवित्र श्रीमदभगवद् गीता (Srimad Bhagavad Gita) का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन गीता जयंती (Gita Jayanti) भी मनाई जाती है. भारत की सनातन संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है. यह दुनिया का इकलौता ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है.
मोक्षदा एकादशी कब है?
मोक्षदा एकादशी हिंदू चंद्र पंचांग के अनुसार 11वें दिन यानी चंद्र मार्गशीर्ष (अग्रहायण) के महीने में चांद (शुक्ल पक्ष) के दौरान मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मोक्षदा एकादशी नवंबर या दिसंबर के महीने में आती है. साल 2019 में यह गुरुवार 8 दिसंबर को मनाई जाएगी.
मोक्षदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
मोक्षदा एकादशी की तिथि: 8 दिसंबर 2019
एकादशी तिथि प्रारंभ: 7 दिसंबर 2019 को सुबह 6 बजकर 34 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 8 नवंबर 2019 को सुबह 8 बजकर 29 मिनट तक
पारण यानी व्रत खोलने का समय: 9 दिसंबर 2019 को सुबह 7 बजकर 6 मिनट से सुबह 9 बजकर 9 मिनट तक
मोक्षदा एकादशी का महत्व
विष्णु पुराण के अनुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत हिंदू वर्ष की अन्य 23 एकादशियों पर उपवास रखने के बराबर है. इस एकादशी का पुण्य पितरों को अर्पण करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. वे नरक की यातनाओं से मुक्त होकर स्वर्गलोक प्राप्त करते हैं. मान्यता के अनुसार जो मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जीवन-मरण के बंधन से मु्क्ति मिल जाती है. यानी कि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजा विधि
- इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए पूरे घर में गंगाजल छिड़कें.
- पूजन सामग्री में तुलसी की मंजरी, धूप-दीप, फल-फूल, रोली, कुमकुम, चंदन, अक्षत, पंचामृत रखें.
- विघ्नहर्ता भगवान गणेश, भगवान श्रीकृष्ण और महर्षि वेदव्यास की मूर्ति या तस्वीर सामने रखें. श्रीमदभगवद् गीता की पुस्तक भी रखें.
- सबसे पहले भगवान गणेश को तुलसी की मंजरियां अर्पित करें.
- इसके बाद विष्णु जी को धूप-दीप दिखाकर रोली और अक्षत चढ़ाएं.
- पूजा पाठ करने के बाद व्रत-कथा सुननी चाहिए. इसके बाद आरती कर प्रसाद बांटें.
- व्रत एकदाशी के अलग दिन सूर्योदय के बाद खोलना चाहिए.
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
मोक्षदा एकादशी का व्रत मनुष्यों के पाप दूर कर उनका उद्धार करने वाले श्री हरि के नाम से रखा जाता है. एक कथा के अनुसार चंपा नगरी में एक प्रतापी राजा वैखानस रहा करते थे. चारों वेदों के ज्ञाता राजा वैखानस बहुत प्रतापी और धार्मिक राजा थे. उनकी प्रजा खुशहाल और संपन्न थी. एक दिन राजा ने सपना देखा, जिसमें उनके पिता नरक में यातनाएं झेलते दिखाई दिए. सपना देखने के बाद राजा बेचैन हो उठे और सुबह होते ही उन्होंने पत्नी को सबकुछ बता दिया. राजा ने यह भी कहा, 'इस दुख के कारण मेरा चित्त कहीं नहीं लग रहा है, मैं इस धरती पर सम्पूर्ण ऐशो-आराम में हूं और मेरे पिता कष्ट में हैं.' पत्नी ने कहा महाराज आपको आश्रम में जाना चाहिए.
राजा आश्रम गए. वहां पर कई सिद्ध गुरु थे, जो तपस्या में लीन थे. राजा पर्वत मुनि के पास गए और उन्हें प्रणाम कर उनके पास बैठ गए. पर्वत मुनि ने मुस्कुराकर आने का कारण पूछा. राजा अत्यंत दुखी थे और रोने लगे. तब पर्वत मुनि ने अपनी दिव्य दृष्टि से सब कुछ जान लिया और राजा के सिर पर हाथ रखकर बोले, 'तुम एक पुण्य आत्मा हो, जो अपने पिता के दुख से इतने दुखी हो. तुम्हारे पिता को उनके कर्मों का फल मिल रहा है. उन्होंने तुम्हारी माता को तुम्हारी सौतेली माता के कारण बहुत यातनाएं दीं. इसी कारण वे इस पाप के भागी बने और अब नरक भोग रहे हैं.' राजा ने पर्वत मुनि से इसका हल पूछा इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी का व्रत का पालन करने और इसका फल अपने पिता को देने के लिए कहा. राजा ने विधि पूर्वक व्रत किया और व्रत का पुण्य अपने पिता को अर्पण कर दिया. व्रत के प्रभाव से राजा के पिता के सभी कष्ट दूर हो गए. उन्हें नरक के कष्टों से मुक्ति मिल गई. स्वर्ग को जाते उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद भी दिया.
मोक्षदा एकादशी आरती
ॐ जय एकादशी माता, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
पापमोचनी फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला पापमोचनी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
चैत्र शुक्ल में नाम पापमोचनी, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥
॥ॐ जय एकादशी...॥
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥
॥ ॐ जय एकादशी...॥
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