फोटो: रविंदर विरमानी
नई दिल्ली:
दिवंगत निरंकारी संत बाबा हरदेव सिंहजी की सहधर्मिणी माता सविंदर कौर संत निरंकारी मिशन की पहली महिला गुरु के तौर पर मिशन के कामकाज का नेतृत्व करेंगी। वे आधिकारिक रूप से इस गुरु-पद के लिए चुनी गईं हैं।
हालांकि गुरुपद के लिए उनकी बेटी सुदीक्षा को भी संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन संत निरंकारी मिशन मंडल ने निर्णायक रूप से माताजी के नाम की घोषणा की।
संत निरंकारी मिशन मंडल के प्रमुख जेआरडी सत्यार्थी ने उन्हें सद्गुरु के शक्तियों का प्रतीक एक सफेद दुपट्टा अर्पित कर इस महती कार्य के निर्वहन का दायित्व उनके कंधे पर डाला। जानिए उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें:
-- मिशन के अनुयायी उन्हें माताजी के नाम से संबोधित करते हैं। वे उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मी और पली हैं। वे मसूरी के जीसस एंड मैरी स्कूल की एलुमिनाई हैं।
-- माता सविंदर कौर का विवाह संत बाबा हरदेव सिंहजी के साथ सन 1975 में हुआ था। इसके बाद से वे सदैव बाबाजी के साथ रहीं और सत्संगों और समागमों में उनके बगल में विराजमान दिखती रहीं।
-- निरंकारी मिशन के अनुयायियों के अनुसार, माताजी कभी भी अपने आपको बाबाजी की पत्नी नहीं कहती थीं। वे कहती हैं कि ‘वे बाबा की शिष्या हैं और बाबा उनके गुरु हैं’।
-- अनुयायियों के अनुसार, वे माताजी बेहद शांत स्वभाव की हैं और उन्हें किसी बात का गर्व या घमंड नहीं है।
गौरतलब है कि जबसे संत निरंकारी मिशन की स्थापना (सन 1929) हुई है, इस संस्था के इतिहास में पहली बार गुरु की गद्दी किसी महिला को सौंपने का निर्णय लिया गया है। दिवंगत बाबा हरदेव सिंहजी महाराज की तीन बेटियां हैं। उनके कोई बेटा नहीं है, इसलिए निरंकारी मंडल ने गद्दी माताजी को सौंपने का फैसला लिया गया है।
हालांकि गुरुपद के लिए उनकी बेटी सुदीक्षा को भी संभावित उम्मीदवार माना जा रहा था, लेकिन संत निरंकारी मिशन मंडल ने निर्णायक रूप से माताजी के नाम की घोषणा की।
संत निरंकारी मिशन मंडल के प्रमुख जेआरडी सत्यार्थी ने उन्हें सद्गुरु के शक्तियों का प्रतीक एक सफेद दुपट्टा अर्पित कर इस महती कार्य के निर्वहन का दायित्व उनके कंधे पर डाला। जानिए उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें:
-- मिशन के अनुयायी उन्हें माताजी के नाम से संबोधित करते हैं। वे उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में जन्मी और पली हैं। वे मसूरी के जीसस एंड मैरी स्कूल की एलुमिनाई हैं।
-- माता सविंदर कौर का विवाह संत बाबा हरदेव सिंहजी के साथ सन 1975 में हुआ था। इसके बाद से वे सदैव बाबाजी के साथ रहीं और सत्संगों और समागमों में उनके बगल में विराजमान दिखती रहीं।
-- निरंकारी मिशन के अनुयायियों के अनुसार, माताजी कभी भी अपने आपको बाबाजी की पत्नी नहीं कहती थीं। वे कहती हैं कि ‘वे बाबा की शिष्या हैं और बाबा उनके गुरु हैं’।
-- अनुयायियों के अनुसार, वे माताजी बेहद शांत स्वभाव की हैं और उन्हें किसी बात का गर्व या घमंड नहीं है।
गौरतलब है कि जबसे संत निरंकारी मिशन की स्थापना (सन 1929) हुई है, इस संस्था के इतिहास में पहली बार गुरु की गद्दी किसी महिला को सौंपने का निर्णय लिया गया है। दिवंगत बाबा हरदेव सिंहजी महाराज की तीन बेटियां हैं। उनके कोई बेटा नहीं है, इसलिए निरंकारी मंडल ने गद्दी माताजी को सौंपने का फैसला लिया गया है।
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