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This Article is From Aug 11, 2020

Krishna Janmashtami 2020: जानें जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और श्रीकृष्ण की जन्म कथा

Happy Janmashtami 2020: मथुरा (Mathura) में जन्माष्टमी (Janmashtami) 12 अगस्त को मनाई जा रही है. वहीं नंदलाल के गांव ब्रज में 11 अगस्त को धूमधाम से जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. 

Krishna Janmashtami 2020: जानें जन्माष्टमी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और श्रीकृष्ण की जन्म कथा
Happy Krishna Janmashtami 2020 11 और 12 अगस्त को मनाई जा रही है जन्माष्टमी.
नई दिल्ली:

Krishna Janmashtami 2020: जन्माष्टमी (Janmashtami) हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार को देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक, सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु (Lord Vishnu) के आठवें अवतार श्रीकृष्ण (Lord Krishna) के जन्मदिन को श्रीकृष्ण जयंती या फिर जन्माष्टमी (Janmashtami 2020) के रूप में मनाया जाता है. हालांकि, पिछले साल की तरह इस साल भी लोगों इस उलझन में हैं कि जन्माष्टमी 11 अगस्त को मनाई जाएगी या फिर 12 अगस्त को मनाई जाएगी. 

दरअसल, माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. ऐसे में अगर कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देखा जाए तो जन्माष्टमी 11 अगस्त की होनी चाहिए, लेकिन अगर रोहिणी नक्षत्र की मानें तो फिर 12 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जानी चाहिए. बता दें कि कुछ लोगों के लिए अष्टमी तिथि का महत्व अधिक होता है तो वहीं कुछ अन्यों के लिए रोहिणी नक्षत्र का महत्व होता है. 

ऐसे में मथुरा में जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जा रही है. वहीं नंदलाल के गांव ब्रज में 11 अगस्त को धूमधाम से जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा. 

कब मनाई जाएगी जन्माष्टमी?
हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि कि आठवें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल अगस्य या फिर सितंबर के महीने में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. तिथि के मुताबिक जन्माष्टमी का त्योहार 11 अगस्त को मनाया जाएगा. वहीं रोहिणी नक्षत्र को अधिक महत्व देने वाले लोग 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे. 

जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त 
जन्‍माष्‍टमी की तिथि: 11 अगस्‍त और 12 अगस्‍त.
अष्‍टमी तिथि प्रारंभ: 11 अगस्‍त 2020 को सुबह 09 बजकर 06 मिनट से.
अष्‍टमी तिथि समाप्‍त: 12 अगस्‍त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 13 अगस्‍त 2020 की सुबह 03 बजकर 27 मिनट से.
रोहिणी नक्षत्र समाप्‍त: 14 अगस्‍त 2020 को सुबह 05 बजकर 22 मिनट तक.

जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का देशभर में विशेष महत्व है. यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. भगवान श्रीकृष्ण को हरि विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है. देश के सभी राज्यों में इस त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं. वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं.

कैसें रखें जन्माष्टमी का व्रत?
जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालु दिन भर व्रत रखतें हैं और अपने आराध्य का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं. जन्माष्टमी का व्रत इस तरह से रखने का विधान है:
- जो लोग जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें जन्माष्टमी से एक दिन पहले केवल एक वक्त का भोजन करना चाहिए.
- जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोलते हैं.

जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन भगावन श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है. अगर आप भी जन्माष्टमी का व्रत रख रहे हैं तो इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें:
- सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या फिर ठाकुर जी की मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराएं.
- इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के घोल से स्नान कराएं.
- अब शुद्ध जल से स्नान कराएं.
- रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना करें और फिर आरती करें.
- अब घर के सभी सदस्यों को प्रसाद दें.
- अगर आप व्रत रख रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें.

भगवान श्रीकृष्ण की जन्म कथा
त्रेता युग के अंत और द्वापर युग के प्रारंभ काल में पापी कंस उत्पन्न हुआ. द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज करते थे. उसके बेटे कंस ने उन्हें गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया. कंस की बहन देवकी का विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था. एक बार कंस, अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था और तभी रास्ते में अचानक आकाशवाणी हुई- ''हे कंस, जिस देवकी को तू प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी की गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा''. 

आकाशवाणी सुनकर कंस अपने बहनोई वसुदेव को जान से मारने के लिए तैयार हो गया. तभी देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- ''मेरी गर्भ में जो संतान होगी, मैं उसे तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ होगा?'' यह सुनकर कंस देवकी को वापस मथुरा ले गया और उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में बंद कर दिया. काल कोठरी में देवकी की कोख से सात बच्चों ने जन्म लिया लेकिन कंस ने उनके पैदा होते ही उन्हें मार दिया. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे थे. उसी बीच नंद क पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था. 

जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ, जो और कुछ नहीं सिर्फ 'माया' थी. जिस कोठरी में देवकी-वसुदेव कैद थे, उसमें अचानक प्रकाश हुआ और उनके सामने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए चतुर्भुज भगवान प्रकट हुए. दोनों भगवान के चरणों में गिर पड़े. तब भगवान ने उनसे कहा- 'अब मैं पुनः नवजात शिशु का रूप धारण कर लेता हूं. तुम मुझे इसी समय अपने मित्र नंद के घर वृंदावन में भेज आओ और उनके यहां जो कन्या जन्मी है, उसे लाकर कंस के हवाले कर दो. इस समय वातावरण अनुकूल नहीं है. फिर भी तुम चिंता न करो. जागते हुए पहरेदार सो जाएंगे, कारागृह के फाटक अपने आप खुल जाएंगे और उफनती अथाह यमुना तुमको पार जाने का मार्ग दे देगी.' 

अपनी मृत्यु के डर से घबराकर कंस ने पूतना को बुलाकर कृष्ण को मारने का आदेश दिया. कंस की आज्ञा का पालन करते हुए पूतना ने सुंदरी का रूप धारण किया और नंद बाबा के घर पहुंच गई. उसने मौका देखभर कृष्ण को अपनी गोद में उठा लिया और अपना दूध पिलाने लगी. स्तपान करते हुए कृष्ण ने उसके प्राण भी हर लिए. पूतना की मृत्यु की खबर सुन कंस और भी चिंतित हो गया. इस बार उसने केशी नामक अश्व दैत्य को कृष्ण को मारने के लिए भेजा. कृष्ण ने उसे भी यमलोक पहुंचा दिया. इसके बाद कंस ने अरिष्ट नामक दैत्य को बैल के रूप में भेजा. कृष्ण अपने बाल रूप में क्रीडा कर रहे थे. खेलते-खेलते ही उन्होंने उस दैत्य रूपी बैल के सींगों को क्षण भर में तोड़ कर उसे मार डाला. कंस ने फिर काल नामक दैत्य को कौवे रूप में भेजा. वह जैसी ही कृष्ण को मारने के लिए उनके पास पहुंचा. श्रीकृष्ण ने कौवे को पकड़कर उसके गले को दबोचकर मसल दिया और पंखों को अपने हाथों से उखाड़ दिया, जिससे काल नाम के असुर की मौत हो गई. 

एक दिन श्रीकृष्ण यमुना नदी के तट पर खेल रहे थे तभी उनसे गेंद नदी में जा गिरी और वे गेंद लाने के लिए नदी में कूद पड़े. इधर, यशोदा को जैसे ही खबर मिली वह भागती हुई यमुना नदी के तट पर पहुंची और विलाप करने लगी. श्री कृष्ण जब नीचे पहुंचे तो नागराज की पत्नी ने कहा- 'हे भद्र! यहां पर किस स्थान से और किस प्रयोजन से आए हो? यदि मेरे पति नागराज कालिया जग गए तो वे तुम्हें भक्षण कर जायेंगे.' तब कृष्ण ने कहा, 'मैं कालिया नाग का काल हूं और उसे मार कर इस यमुना नदी को पवित्र करने के लिए यहां आया हूं.' ऐसा सुनते हीं कालिया नाग सोते से उठा और श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगा. जब कालिया नाग पूरी तरह मरनासन्न हो गया तभी उसकी पत्नी वहां पर आई और अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिये कृष्ण की स्तुति करने लगी, 'हे भगवन! मैं आप भुवनेश्वर कृष्‍ण को नहीं पहचान पाई. हे जनाद! मैं मंत्रों से रहित, क्रियाओं से रहित और भक्ति भाव से रहित हूं. मेरी रक्षा करना. हे देव! हे हरे! प्रसाद रूप में मेरे स्वामी को मुझे दे दो अर्थात् मेरे पति की रक्षा करो.'  तब श्री कृष्ण ने कहा कि तुम अपने पूरे बंधु-बांधवों के साथ इस यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चले जाओ. इसके बाद कालिया नाग ने कृष्ण को प्रणाम कर यमुना नदी को छोड़ कर कहीं और चला गया. कृष्ण भी अपनी गेंद लेकर यमुना नदी से बाहर आ गए.

इधर, कंस को जब कोई उपाय नहीं सूझा तब उसने अक्रूर को बुला कर कहा कि नंदगांव जाकर कृष्ण और बलराम को मथुरा बुला लाओ. मथुरा आने पर कंस के पहलवान चाणुर और मुष्टिक के साथ मल्ल युद्ध की घोषणा की. अखाड़े के द्वार पर हीं कंस ने कुवलय नामक हाथी को रख छोड़ा था, ताकि वो कृष्‍ण को कुचल सके. लेकिन श्रीकृष्ण ने उस हाथी को भी मार डाला. उसके बाद श्रीकृष्ण ने चाणुर के गले में अपना पैर फंसा कर युद्ध में उसे मार डाला और बलदेव ने मुष्टिक को मार गिराया. इसके बाद कंस के भाई केशी को भी केशव ने मार डाला. बलदेव ने मूसल और हल से और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से दैत्यों को माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मार डाला. श्री कृष्ण ने कहा- 'हे दुष्ट कंस! उठो, मैं इसी स्थल पर तुम्हें मारकर इस पृथ्वी को तुम्हारे भार से मुक्त करूंगा.' यह कहते हुए कृष्‍ण ने कंस के बालों को पकड़ा और घुमाकर पृथ्वी पर पटक दिया जिससे वह मार गया. कंस के मरने पर देवताओं ने आकाश से कृष्ण और बलदेव पर पुष्प की वर्षा की. फिर कृष्ण ने माता देवकी और वसुदेव को कारागृह से मुक्त कराया और उग्रसेन को मथुरा की गद्दी सौंप दी.

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