नागा साधू (फोटो साभार: simhasthujjain.in)
देश में जब-जब कुंभ मेला लगता है, तब-तब साधू-संतों की खूब बातें होती हैं। इनमें भी नागा साधुओं की चर्चा सबसे अधिक होती है, क्योंकि सदियों से नागा साधुओं को आस्था के साथ-साथ हैरत और रहस्य की दृष्टि से देखा जाता रहा है।
इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता के लिए ये कुतूहल का विषय हैं, क्योंकि इनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि आदि सब अजरज भरी होती है। ये किस पल खुश हो जाएंगे और कब खफा ये कोई नहीं जानता।
एक योद्धा की तरह प्रशिक्षित होते हैं नागा साधू
कहते हैं प्राचीन काल में मंदिरों और मठों की सुरक्षा के लिए नागा साधुओं को योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। उन्होंने धर्मस्थलों की रक्षा के लिए कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं।
लेकिन किसी व्यक्ति का एक नागा साधू बनना आसान नहीं है, क्योंकि इनकी ट्रेनिंग कमांडों की ट्रेनिंग से कम कठिन नहीं होती है। केवल यही नहीं बल्कि परंपरा के अनुसार, उन्हें नागा साधू की दीक्षा लेने से पहले स्वयं का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण खुद करना पड़ता है।
ये हैं नागा साधुओं से जुड़ी कुछ और ख़ास बातें
-- आजीवन ब्रह्मचर्य की शपथ नागा साधू बनने की पहली शर्त है। इसके लिए साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है। स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को अनेकानेक तरह से परखा जाता है। पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त होने वाले साधक ही नागा साधू बन पाते हैं।
-- वस्त्रों का त्याग नागा साधू बनने दूसरी शर्त है। हालांकि कुछ नागा गेरुआ वस्त्र भी पहनते हैं, जो कि अखाड़ों के नियम से तय होता है। लेकिन, वह भी सिर्फ एक गेरुआ वस्त्र, इससे अधिक वस्त्र नागा साधु को धारण करने की मनाही है। वस्त्र का त्याग जीवन के प्रति उनकी निस्सारता का प्रतीक है।
-- अधिकांश नागा साधू केवल भस्म को अपना वस्त्र मानते हैं। उन्हें शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। वे या तो अपने सम्पूर्ण बालों का त्याग करते हैं या फिर उन्हें सिर पर संपूर्ण जटा धारण करना होता है, जिसे वे कभी कटा-छंटा नहीं सकते।
-- केवल वस्त्र और केश नहीं, बल्कि उन्हें भोजन भी भिक्षा मांग कर करना होता है। परंपरानुसार, वे एक दिन में अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा ले सकते हैं।
-- सबसे विकट यह कि मौसम कोई भी हो, वे केवल धरती पर ही सो सकते हैं। वे पलंग, खाट, चौकी आदि का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वे सोने के लिए मोटे बिस्तर यानी गादी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। वर्षों के प्रशिक्षण से उनका शरीर ऐसा हो जाता है कि उन्हें इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है।
-- नागा साधू एक सन्यासी को छोड़कर अन्य किसी को प्रणाम नहीं करते हैं। लिंग-भंग भी नागा साधुओं की एक रहस्यमय प्रथा है, जिसका प्रयोजन पूर्ण ब्रह्मचर्य है।
इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता के लिए ये कुतूहल का विषय हैं, क्योंकि इनकी वेशभूषा, क्रियाकलाप, साधना-विधि आदि सब अजरज भरी होती है। ये किस पल खुश हो जाएंगे और कब खफा ये कोई नहीं जानता।
एक योद्धा की तरह प्रशिक्षित होते हैं नागा साधू
कहते हैं प्राचीन काल में मंदिरों और मठों की सुरक्षा के लिए नागा साधुओं को योद्धा की तरह तैयार किया जाता था। उन्होंने धर्मस्थलों की रक्षा के लिए कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं।
लेकिन किसी व्यक्ति का एक नागा साधू बनना आसान नहीं है, क्योंकि इनकी ट्रेनिंग कमांडों की ट्रेनिंग से कम कठिन नहीं होती है। केवल यही नहीं बल्कि परंपरा के अनुसार, उन्हें नागा साधू की दीक्षा लेने से पहले स्वयं का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण खुद करना पड़ता है।
ये हैं नागा साधुओं से जुड़ी कुछ और ख़ास बातें
-- आजीवन ब्रह्मचर्य की शपथ नागा साधू बनने की पहली शर्त है। इसके लिए साधक को ब्रह्मचर्य का पालन करवाया जाता है। स्वयं पर नियंत्रण की स्थिति को अनेकानेक तरह से परखा जाता है। पूरी तरह से वासना और इच्छाओं से मुक्त होने वाले साधक ही नागा साधू बन पाते हैं।
-- वस्त्रों का त्याग नागा साधू बनने दूसरी शर्त है। हालांकि कुछ नागा गेरुआ वस्त्र भी पहनते हैं, जो कि अखाड़ों के नियम से तय होता है। लेकिन, वह भी सिर्फ एक गेरुआ वस्त्र, इससे अधिक वस्त्र नागा साधु को धारण करने की मनाही है। वस्त्र का त्याग जीवन के प्रति उनकी निस्सारता का प्रतीक है।
-- अधिकांश नागा साधू केवल भस्म को अपना वस्त्र मानते हैं। उन्हें शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। वे या तो अपने सम्पूर्ण बालों का त्याग करते हैं या फिर उन्हें सिर पर संपूर्ण जटा धारण करना होता है, जिसे वे कभी कटा-छंटा नहीं सकते।
-- केवल वस्त्र और केश नहीं, बल्कि उन्हें भोजन भी भिक्षा मांग कर करना होता है। परंपरानुसार, वे एक दिन में अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा ले सकते हैं।
-- सबसे विकट यह कि मौसम कोई भी हो, वे केवल धरती पर ही सो सकते हैं। वे पलंग, खाट, चौकी आदि का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वे सोने के लिए मोटे बिस्तर यानी गादी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। वर्षों के प्रशिक्षण से उनका शरीर ऐसा हो जाता है कि उन्हें इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है।
-- नागा साधू एक सन्यासी को छोड़कर अन्य किसी को प्रणाम नहीं करते हैं। लिंग-भंग भी नागा साधुओं की एक रहस्यमय प्रथा है, जिसका प्रयोजन पूर्ण ब्रह्मचर्य है।
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