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भारतीय वास्तुशास्त्र में मकान बनवाने के लिए भूखंड यानी प्लॉट के चयन के लिए विस्तृत चर्चा की गई है और अनेक सुझाव दिए गए हैं. सहज वातावरण, भूमि का रंग, सुविधापूर्ण मार्ग, हरियाली और पानी की उपलब्धता आदि ऐसे अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिनकी व्यापक विवेचना वास्तुग्रंथों में की गई है. आइए जानते हैं, सही प्लॉट के चुनाव के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है.
- जिस प्लॉट में मकान बनवाना हो, उसकी भूमि की रंग काफी अहमियत रखती है. वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर भूमि सफेद, धूसर, हल्की पीली और लाल हो तो वहां बना घर रहने के लिए उत्तम है. गहरी काली, गंदी और दुर्गंधयुक्त भूमि को वर्ज्य बताया गया है.
- उपजाऊ भूमि रहने के लिए काफी अच्छी माना गई है. जिस जमीन पर आम, आंवला, पपीता, अनार, अमरूद, पलास आदि के पेड़ विकसित होते हैं, वह भूमि रहने के लिए श्रेष्ठ मानी गई है.
- उबड़-खाबड़, ऊंची-नीची, टेढ़ी-मेढ़ी, फिसलने वाली, श्मशान और कब्रिस्तान वाले प्लॉट का चयन अच्छा नहीं माना गया है.
- वास्तुग्रंथों में भूमि की ढ़ाल को भी महत्वपूर्ण बताया गया है. जिन प्लॉटों के पूर्व-उत्तर की भूमि ढलानदार होती है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में पहाड़ या ऊंची चट्टानें होती हैं, वह अच्छी मानी गई हैं. वैसे प्लॉट का ढाल अनुकूल नहीं होने पर उसे मिट्टी के उचित भराव से ठीक करा लेने का सुझाव वास्तुग्रंथों में उल्लिखित है.
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- वास्तुशास्त्र के अनुसार प्लॉट की खुदाई करते समय यदि कंकड़-पत्थर मिले तो यह अच्छा संकेत हैं. पकी हुई साबूत ईंट और खपरों का मिलना भी अच्छा माना गया है.
- जिस प्लॉट की खुदाई में सोने-चांदी आदि के सिक्के, बहुमूल्य धातुएं आदि प्राप्त होती हैं, उसे आर्थिक समृद्धि का संकेतक माना गया है.
- जिन प्लॉटों की खुदाई के वक्त मानव खोपड़ी, हड्डियां आदि प्राप्त होती हैं, वास्तुशास्त्र के अनुसार वह उचित भूखंड नहीं है.
- जिस प्लॉट पर दीमक, चींटी, सांप आदि कीटों और सरीसृपों बांबी या बिल होते हैं, वे भी निवास के लिए उचित नहीं माने गए हैं.
- नमीयुक्त और दलदली जमीन भी निवास के लिहाज से उत्तम नहीं माने गए है. वास्तुशास्त्र के अनुसार, यह विकास कार्यों में अवरोध उत्पन्न करता है.
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