कांगड़ा स्थित शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी मंदिर (फाईल फोटो)
प्राय: मंदिर में चढ़ाए गए प्रसाद को खाया जाता है, लेकिन इस परंपरा के विपरीत हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी मंदिर में आयोजित होने वाले एक खास पर्व के बाद मिले प्रसाद को खाने का रिवाज नहीं है.
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दरअसल माघ महीने में इस शक्तिपीठ में घृत मंडल पर्व का आयोजन होता है. परंपरा के अनुसार इस पर्व के मौके पर 101 किलोग्राम शुद्ध देसी घी और लगभग 18 क्विंटल मक्खन चढ़ाया जाता है. चढ़ाए गए घी और मक्खन को बतौर प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है.
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लेकिन भक्तगण उस घी को खाते नहीं बल्कि अपने शरीर में लगाते हैं. इस शक्तिपीठ में श्रद्धा रखने वाले लोगों का मानना है ऐसा करने से चर्म रोगों और जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है. शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी मंदिर में घृत मंडल पर्व मकर संक्रांति से शुरू होता है, जो सात दिनों तक चलता है. इस पर्व के दौरान देवी की पिंडी पर घी और मक्खन का लेप किया जाता है. सातवें दिन घी और मक्खन को पिंडी से उतारकर श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है.
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देवी की पिंडी पर घी और मक्खन चढ़ाने और चढ़ावे को वितरित करने के लिए मंदिर प्रशासन पुजारियों की एक कमिटी गठित करता है. पुजारियों की यह कमेटी मक्खन की पिन्नियां बनाती हैं और मकर संक्रांति की शाम से पिंडी पर उन्हें चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. गौरतलब है कि चढ़ावे की सारी सामग्रियां इस शक्तिपीठ में दान स्वरूप आती हैं.
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दरअसल माघ महीने में इस शक्तिपीठ में घृत मंडल पर्व का आयोजन होता है. परंपरा के अनुसार इस पर्व के मौके पर 101 किलोग्राम शुद्ध देसी घी और लगभग 18 क्विंटल मक्खन चढ़ाया जाता है. चढ़ाए गए घी और मक्खन को बतौर प्रसाद श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है.
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लेकिन भक्तगण उस घी को खाते नहीं बल्कि अपने शरीर में लगाते हैं. इस शक्तिपीठ में श्रद्धा रखने वाले लोगों का मानना है ऐसा करने से चर्म रोगों और जोड़ों का दर्द ठीक हो जाता है. शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी मंदिर में घृत मंडल पर्व मकर संक्रांति से शुरू होता है, जो सात दिनों तक चलता है. इस पर्व के दौरान देवी की पिंडी पर घी और मक्खन का लेप किया जाता है. सातवें दिन घी और मक्खन को पिंडी से उतारकर श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है.
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देवी की पिंडी पर घी और मक्खन चढ़ाने और चढ़ावे को वितरित करने के लिए मंदिर प्रशासन पुजारियों की एक कमिटी गठित करता है. पुजारियों की यह कमेटी मक्खन की पिन्नियां बनाती हैं और मकर संक्रांति की शाम से पिंडी पर उन्हें चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. गौरतलब है कि चढ़ावे की सारी सामग्रियां इस शक्तिपीठ में दान स्वरूप आती हैं.
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