पटना के गांधी मैदान में 'रावण वध' की परंपरा बहुत पुरानी
नई दिल्ली:
Dussehra 2018: पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में इस दशहारा भी असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक 'रावण वध' किया जाएगा. वैसे, यह कोई पहला मौका नहीं है कि गांधी मैदान में 'दशहरा महोत्सव' के दौरान रावण के पुतले को जलाया जाएगा.
गांधी मैदान में दशहरा के मौके पर पहली बार वर्ष 1955 में 'रावण वध' कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसके बाद अपरिहार्य कारणों के कारण तीन वर्ष छोड़ दें तो प्रतिवर्ष यह आयोजन होता आ रहा है.
गांधी मैदान में आयोजित होने वाले 'दशहरा महोत्सव' की आयोजक 'श्री दशहरा महोत्सव समिति' के अध्यक्ष कमल नोपानी ने बताया कि यह पुरानी परंपरा है, जिसमें सभी लोगों का सहयोग मिलता है.
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उन्होंने कहा कि पहली बार इस ऐतिहासिक गांधी मैदान में वर्ष 1955 में दशहरा के मौके पर रावण के वध करने के प्रतीक रावण का पुतला बनाकर उसे जलाया गया था. उसके बाद यह परंपरा बन गई हैं.
वैसे दशहरा महोत्सव समिति के एक अन्य अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 1965 और 1971 में चीन और पाकिस्तान युद्ध के कारण यह आयोजन नहीं किया गया था, जबकि वर्ष 1975 में पटना में आई भयंकर बाढ़ के कारण इस आयोजन को स्थगित कर जमा राशि को आपदा कोष में दे दिया गया था.
नेपानी बताते हैं कि प्राचीन काल और इस दौर के खर्च में भी काफी अंतर आया है. बख्शी राम गांधी, मोहन राम गांधी, राधाकृष्ण मल्होत्रा जैसे लोगों की पहल पर गांधी मैदान में शुरू किए गए रावण वध समारोह में मात्र 500 रुपये खर्च आए थे, जबकि आज यह राशि 25 लाख रुपये के करीब पहुंच गई है.
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उन्होंने कहा कि आज इस आयोजन को लेकर लोगों में रुझान बढ़ा है और सभी लोग इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तैयार रहते हैं.
इस वर्ष 19 अक्टूबर को दशहरा के मौके पर रावण बंधुओं के पुतले जलाए जाएंगे. दशहरा महोत्सव समिति के अध्यक्ष नोपानी ने बताया कि इस वर्ष रावण का पुतला 70 फीट, कुंभकर्ण का 65 फीट और मेघनाद का पुतला 60 फीट ऊंचा बनाया गया है. पुतलों में करीब 400 पटाखे भरे गए हैं.
उन्होंने कहा कि 450 मीटर कपड़े में लिपटे रावण बंधुओं के पुतलों को बनाने में बड़ी मात्रा में कागज, सुतली लगे हैं. राम-लक्ष्मण के वाण लगते ही तीनों पुतले धू-धू कर जल उठेंगे. पुतला दहन के बाद लोगों को शानदार आतिशबाजी के नजारे दिखेंगे.
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कार्यक्रम के दौरान गांधी मैदान की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रहेगी. इसको लेकर पटना पुलिस सतर्क है. पटना के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि गांधी मैदान की त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है. पुलिस के जवानों को पूरे मैदान के अंदर और बाहर तैनात किया जा रहा है.
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इनपुट - आईएएनएस
गांधी मैदान में दशहरा के मौके पर पहली बार वर्ष 1955 में 'रावण वध' कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इसके बाद अपरिहार्य कारणों के कारण तीन वर्ष छोड़ दें तो प्रतिवर्ष यह आयोजन होता आ रहा है.
गांधी मैदान में आयोजित होने वाले 'दशहरा महोत्सव' की आयोजक 'श्री दशहरा महोत्सव समिति' के अध्यक्ष कमल नोपानी ने बताया कि यह पुरानी परंपरा है, जिसमें सभी लोगों का सहयोग मिलता है.
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उन्होंने कहा कि पहली बार इस ऐतिहासिक गांधी मैदान में वर्ष 1955 में दशहरा के मौके पर रावण के वध करने के प्रतीक रावण का पुतला बनाकर उसे जलाया गया था. उसके बाद यह परंपरा बन गई हैं.
वैसे दशहरा महोत्सव समिति के एक अन्य अधिकारी बताते हैं कि वर्ष 1965 और 1971 में चीन और पाकिस्तान युद्ध के कारण यह आयोजन नहीं किया गया था, जबकि वर्ष 1975 में पटना में आई भयंकर बाढ़ के कारण इस आयोजन को स्थगित कर जमा राशि को आपदा कोष में दे दिया गया था.
नेपानी बताते हैं कि प्राचीन काल और इस दौर के खर्च में भी काफी अंतर आया है. बख्शी राम गांधी, मोहन राम गांधी, राधाकृष्ण मल्होत्रा जैसे लोगों की पहल पर गांधी मैदान में शुरू किए गए रावण वध समारोह में मात्र 500 रुपये खर्च आए थे, जबकि आज यह राशि 25 लाख रुपये के करीब पहुंच गई है.
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उन्होंने कहा कि आज इस आयोजन को लेकर लोगों में रुझान बढ़ा है और सभी लोग इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तैयार रहते हैं.
इस वर्ष 19 अक्टूबर को दशहरा के मौके पर रावण बंधुओं के पुतले जलाए जाएंगे. दशहरा महोत्सव समिति के अध्यक्ष नोपानी ने बताया कि इस वर्ष रावण का पुतला 70 फीट, कुंभकर्ण का 65 फीट और मेघनाद का पुतला 60 फीट ऊंचा बनाया गया है. पुतलों में करीब 400 पटाखे भरे गए हैं.
उन्होंने कहा कि 450 मीटर कपड़े में लिपटे रावण बंधुओं के पुतलों को बनाने में बड़ी मात्रा में कागज, सुतली लगे हैं. राम-लक्ष्मण के वाण लगते ही तीनों पुतले धू-धू कर जल उठेंगे. पुतला दहन के बाद लोगों को शानदार आतिशबाजी के नजारे दिखेंगे.
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इनपुट - आईएएनएस
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