कार्तिक माह में पड़ने वाली पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन ही देव दीवाली भी मनाई जाती है. सालभर पड़ने वाली सभी पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन पृथ्वी पर देवताओं का आगमन होता है, जिनके स्वागत के लिए धरती पर दीप जलाए जाते हैं. दीपावली के ठीक 15 दिनों बाद कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima 2021) होती है. इस दिन को देव दीपावाली (Dev Deepawali) या देव दीवाली (Dev Diwali) कहा जाता है. वहीं, आज काशी में और गंगा घाटों पर इस पर्व का विशेष उत्सव देखने को मिलता है. इस बार देव दिवाली 19 नवंबर को शुक्रवार के दिन मनाई जा रही है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु जी और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर देवताओं को उनका स्वर्ग पुनः वापस लौटाया था, जिस खुशी में देवताओं ने दीवाली मनाई थी. तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीवाली मनाई जाती है. मान्यता है कि देव दीवाली के दिन मां लक्ष्मी को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता है. मान्यता है कि इस दिन देवता जागृत होते हैं, ऐसे में यदि नदी में दीपदान किया जाए तो व्यक्ति को लंबी आयु की प्राप्ति होती है. वहीं तुलसी पूजन करने से उसके कष्ट दूर होते हैं और सौभाग्य व समृद्धि आती है.
देव दीवाली का शुभ मुहूर्त
- पूर्णिमा तिथि आरंभ 18 नवंबर, गुरुवार दोपहर 12 बजे से.
- पूर्णिमा तिथि समाप्त- 19 नवंबर, शुक्रवार दोपहर 02 बजकर 26 मिनट पर.
देव दीवाली की परंपरा
हिंदू धर्म में दीवाली का त्योहार सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. हालांकि, इसका आयोजन कार्तिक मास की अमावस्या के दिन होता है. इस दिन आम जनमानस भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने की खुशी में त्योहार मनाते हैं, लेकिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि के दिन देवता स्वयं मां गंगा के तट पर आकर दीवाली मनाते हैं, ऐसी मान्यता है. पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से त्रिपुरासुर का वध किया था. त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्त होने की खुशी में देवता भगवान शिव का पूजन करते हैं और दीवाली मनाते हैं.
कैसे करते हैं दीपदान?
- किसी मिट्टी के दिये में तेल डालकर उससे मंदिर में ले जाकर जलाकर उसे वहां पर रख जाएं.
- दीपों की संख्या और बत्तियां खास समयानुसार और मनोकामना अनुसार तय होती है.
- आटे के छोटे से दीपक बनाकर उसमें थोड़ा सा तेल डालकर पतली सी रुई की बत्ती जलाकर, उसे पीपल या बढ़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है.
- देव मंदिर में दीपक को सीधा भूमि पर नहीं रखते हैं. उसे सप्तधान या चावल के ऊपर ही रखते हैं. भूमि पर रखने से भूमि को आघात लगता है.
देव दीवाली की पूजा विधि
- देव दीवाली के दिन गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व है.
- अगर आप गंगा नदी के तट पर स्नान के लिए नहीं कर सकते तो एक बाल्टी या टब में थोड़ा गंगाजल डालकर उसमें सामान्य पानी मिलाकर स्नान कर सकते हैं.
- सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें. इसके बाद गणपति, महादेव और नारायण का ध्यान करें. उन्हें रोली, चंदन, हल्दी, पुष्प, अक्षत, नैवेद्य, धूप और दीप आदि अर्पित करें.
- किसी भी शिव मंदिर में विधिवत षोडशोपचार पूजन करें. गौघृत दीप जलाएं. चंदन धूप कर अबीर चढ़ाएं. खीर-पूड़ी और गुलाब के फूल चढ़ाएं.
- चंदन से शिवलिंग पर त्रिपुंड बनाएं और बर्फी भोग लगाएं. इसके बाद 'ऊं देवदेवाय नम' मंत्र का जाप करें.
- शिव मंत्र और विष्णु भगवान के मंत्रों का जाप करें. शिव चालीसा पढ़ें, गीता का पाठ करें या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें.
- शाम के समय किसी नदी में दीप को प्रवाहित करें. अगर ऐसा नहीं कर सकते तो किसी मंदिर में दीपक जलाकर रखें.
- इसके अलावा अपने घर में और पूजा के स्थान पर भी 5, 7, 11, 21 या 51 दीपक जलाएं.
देव दीलाली पर दीपदान का महत्व
देव दीवाली के दिन विशेष कर गंगा नदी या दूसरी पवित्र नदियों में दीप दान करने का विधान है. मान्यता है कि इस दिन गंगा जी के घाटों पर स्वयं देवता दीवाली मनाते हैं. इस दिन गंगा नदी के घाटों पर दीप और दीपदान करना देवताओं के साथ दीवाली मनाने के तुल्य माना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था, इसलिए देव दीवाली पर दीपदान करने से बैकुंठ लोक के द्वार खुल जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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