मुरैना: गजक की मिठास के लिए प्रसिद्ध और बीहड़ों की भयावहता के लिए कुख्यात मध्य प्रदेश में स्थित मुरैना जिले में एक ऐतिहासिक मंदिर है इकोत्तरसो या इकंतेश्वर महादेव मंदिर। इस मंदिर को अब चौंसठ योगिनी मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस जिले के मितावली नामक स्थान पर बना यह ऐतिहासिक मंदिर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। लेकिन एएसआई द्वारा ध्यान न दिए जाने के कारण 9वीं शताब्दी के इस मंदिर की दीवारों और फर्श पर प्राकृत और वैदिक भाषा में उकेरे गए श्लोक और कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण जानकारियां पर्यटकों के पैरों के नीचे आने के कारण घिसकर कर नष्ट हो रही हैं।
इन लेखों को बचाने के लिए और इनका अर्थ पर्यटकों को समझाने के लिए एएसआई ने इन्हें बोर्ड पर अंकित नहीं किया है। यही नहीं एएसआई ने इसकी सुरक्षा के लिए आस-पास रेलिंग भी नहीं लगाई है।
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यह भी पढ़ें : मन्नत के लिए इस मंदिर में भगवान गणेश की पीठ पर श्रद्धालु बनाते हैं स्वस्तिक का उल्टा निशान
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संसद भवन की डिजाइन है इससे प्रेरित
मध्यकालीन शिल्पियों ने एक विशाल चट्टान पर गोल मंदिर का निर्माण कर यहां देवालयों का निर्माण किया था। पूर्णत: ग्रेनाईट पत्थर का बना यह मंदिर अपने आप में सौंदर्य का नायाब नमूना है। गोलाकार मंदिर के मध्य में बने मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे सन 1323 में महाराजा देवपाल ने स्थापित करवाया था।
यह मंदिर गोलाकार है, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे देवालय हैं, जिनमें शिवलिंग रखे हुए हैं। कहते हैं अंग्रेज़ आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर इस मंदिर की स्थापत्य और संरचना को देखकर अभिभूत हो गए थे। उन्होंने इसी मंदिर के आधार पर भारत के संसद भवन की डिजाइन की परिकल्पना प्रस्तुत की थी।
इस जिले के मितावली नामक स्थान पर बना यह ऐतिहासिक मंदिर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) द्वारा संरक्षित है। लेकिन एएसआई द्वारा ध्यान न दिए जाने के कारण 9वीं शताब्दी के इस मंदिर की दीवारों और फर्श पर प्राकृत और वैदिक भाषा में उकेरे गए श्लोक और कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण जानकारियां पर्यटकों के पैरों के नीचे आने के कारण घिसकर कर नष्ट हो रही हैं।
इन लेखों को बचाने के लिए और इनका अर्थ पर्यटकों को समझाने के लिए एएसआई ने इन्हें बोर्ड पर अंकित नहीं किया है। यही नहीं एएसआई ने इसकी सुरक्षा के लिए आस-पास रेलिंग भी नहीं लगाई है।
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संसद भवन की डिजाइन है इससे प्रेरित
मध्यकालीन शिल्पियों ने एक विशाल चट्टान पर गोल मंदिर का निर्माण कर यहां देवालयों का निर्माण किया था। पूर्णत: ग्रेनाईट पत्थर का बना यह मंदिर अपने आप में सौंदर्य का नायाब नमूना है। गोलाकार मंदिर के मध्य में बने मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसे सन 1323 में महाराजा देवपाल ने स्थापित करवाया था।
यह मंदिर गोलाकार है, जिसके चारों ओर छोटे-छोटे देवालय हैं, जिनमें शिवलिंग रखे हुए हैं। कहते हैं अंग्रेज़ आर्किटेक्ट सर हरबर्ट बेकर इस मंदिर की स्थापत्य और संरचना को देखकर अभिभूत हो गए थे। उन्होंने इसी मंदिर के आधार पर भारत के संसद भवन की डिजाइन की परिकल्पना प्रस्तुत की थी।
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