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This Article is From Feb 08, 2022

Bhishma Ashtami: आज है भीष्म अष्टमी, जानिए मुहूर्त, धार्मिक महत्व और पूजा विधि

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी मनाई जाता है. आज के दिन इस व्रत करने का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सुसंस्कारी संतान की प्राप्ति होती है. इस बार यह व्रत 8 फरवरी (मंगलवार) यानि आज रखा जा रहा है. आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी का मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि.

Bhishma Ashtami: आज है भीष्म अष्टमी, जानिए मुहूर्त, धार्मिक महत्व और पूजा विधि
Bhishma Ashtami: आज है भीष्म अष्टमी, यह है व्रत का महत्व और विधि
नई दिल्ली:

माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी कहते हैं. यह भीष्म पितामाह की पुण्यतिथि है. धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे. मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सुसंस्कारी संतान की प्राप्ति होती है. इस बार यह व्रत 8 फरवरी (मंगलवार) यानि आज रखा जा रहा है. कहते हैं इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए. इस दिन पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इस दिन को पितृदोष निवारण के लिए भी उत्तम माना जाता है. 

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महाभारत (Mahabharat) के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़ते हुए पितामह भीष्म ने वीरगति को प्राप्त किया था. जब उनको बाण लगे थे, तब सूर्य दक्षिणायन थे. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं, उनको जीवन-मृत्यु के चक्र से छुटकारा मिल जाता है, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं. आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी का मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि.

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भीष्म अष्टमी तिथि और मुहूर्त | Bhishma Ashtami Tithi And Muhurat

  • अष्टमी तिथि आरंभ- 08 फरवरी, मंगलवार, प्रात: 06: 15 मिनट से,
  • अष्टमी तिथि समाप्त- 09 फरवरी, बुधवार। प्रातः 08:30 मिनट पर.
  • मध्याहन का समय- सुबह 11 बजकर 27 मिनट से लेकर दोपहर 01 बजकर 43 मिनट तक.
  • अवधि- 2 घंटे 16 मिनट.

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भीष्म अष्टमी का महत्व | Bhishma Ashtami Significance

भीष्म अष्टमी के दिन भीष्म पितामह का तर्पण जल, कुश और तिल से किया जाता है. मान्यता के अनुसार, भीम अष्टमी का व्रत जो व्यक्ति करता है उसके सभी पाप दूर हो जाते हैं. श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया है कि किस तरह अर्जुन के तीरों से घायल होकर महाभारत के युद्ध में जख्मी होने के बावजूद भीष्म पितामह 18 दिनों तक मृत्यु शैय्या पर लेटे थे. पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था. उनके प्राण तब तक नहीं निकल सकते थे, जब तक कि उनकी अपनी इच्छा न हो. उन्होंने अपने प्राण त्यागने के लिए उत्तरायण के बाद माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की प्रतीक्षा की. उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को चुना और मोक्ष प्राप्त किया. कहते हैं पितामह भीष्म अपने पिता के योग्य पुत्र थे, इसलिए लोग योग्य पुत्र के लिए भीष्म अष्टमी का व्रत भी रखते हैं.

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भीष्म अष्टमी व्रत विधि | Bhishma Ashtami Puja Vidhi

  • भीष्म अष्टमी के दिन पवित्र नदी में स्नान करने के बाद बिना सिले वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • स्नान के बाद दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें. यदि आप जनेऊ धारण नहीं कर सकते तो दाहिने कंधे पर गमछा जरूर रखें.
  • इसके बाद हाथ में तिल और जल लें और दक्षिण की ओर मुख कर लें.
  • इसके बाद इस मंत्र का जाप करें- "वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतिप्रवराय च. गंगापुत्राय भीष्माय, प्रदास्येहं तिलोदकम् अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे"
  • मंत्र जाप के बाद तिल और जल के अंगूठे और तर्जनी उंगली के मध्य भाग से होते हुए पात्र में छोड़ें.
  • जनेऊ या गमछे को बाएं कंधे पर डाल लें और गंगापुत्र भीष्म को अर्घ्य दें.
  • भीष्म पितामह का नाम लेते हुए सूर्य को जल दे सकते हैं या दक्षिण मुखी होकर भी आप किसी वट वृक्ष को जल दे सकते हैं.
  • तर्पण वाले जल को किसी पवित्र वृक्ष या बरगद के पेड़ पर चढ़ा दें.
  • अंत में हाथ जोड़कर भीष्म पितामह को प्रणाम करें और अपने पितरों को भी प्रणाम करें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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