भारत में भिन्न- भिन्न प्रकार की जाति के लोग रहते हैं. जहां यहां हिंदू धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाते हैं, वहीं सिख यहां प्रकाश पर्व बेहद जोरशोर से सेलिब्रेट करते हैं. इन सब की तरह ही मुसलान भी यहा अपनी ईद को बेहद खुशियों के साथ मनाते हैं. अब बकरीद आने वाली है. यह रमजान महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है.
यह मुसलमानों का एक प्रमुख त्योहार है. जिसे वह बेहद धूमधाम से मनाते हैं. इसे त्योहार को ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि बकरीद पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है. इसलिए इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है. बकरीद की मुबारक बाद देती महिलाएं
हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे, वह अपने बेटे की ये हालत देख नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने कुबार्नी के समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. जैसे ही वह कुर्बानी देने लगे, बेटे की बजाए उनके सामने एक जानवर आ गया. जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई, तो अपने बेटे को जीवित देख वह काफी खुश हो गए. उल्लाह को उनकी ये बात इतनी पसंद आई की उन्होंने इब्राहिम के पुत्र को जीवनदान दे दिया. तब से इस घटना की याद में यह त्योहार मनाया जाता है.
कहा जाता है कि इस्लाम धर्म में पांच फर्ज माने गए हैं, जिनमें से हज आखिरी फर्ज माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना बेहद जरूरी होता है. हज होने की खुशी में ही ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है.
बकरीद के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे ऊंट, बकरा, भेड़, आदि की कुर्बानी देते हैं. इस कुर्बानी के गोश्त को तीन भागों में बांटा जाता है. जिसमें से पहला हिस्सा खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए रखा जाता है.
बकरीद के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं. नमाज के लिए मस्जिद जाते हैं और नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. शाही पकवान बनाए जाते हैं. और जोश और उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है. बकरीद पर नमाज पढ़ता व्यक्ति
यह मुसलमानों का एक प्रमुख त्योहार है. जिसे वह बेहद धूमधाम से मनाते हैं. इसे त्योहार को ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि बकरीद पर कुर्बानी देना शबाब का काम माना जाता है. इसलिए इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है.
हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे, वह अपने बेटे की ये हालत देख नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने कुबार्नी के समय अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. जैसे ही वह कुर्बानी देने लगे, बेटे की बजाए उनके सामने एक जानवर आ गया. जब उन्होंने अपनी आंखों से पट्टी हटाई, तो अपने बेटे को जीवित देख वह काफी खुश हो गए. उल्लाह को उनकी ये बात इतनी पसंद आई की उन्होंने इब्राहिम के पुत्र को जीवनदान दे दिया. तब से इस घटना की याद में यह त्योहार मनाया जाता है.
कहा जाता है कि इस्लाम धर्म में पांच फर्ज माने गए हैं, जिनमें से हज आखिरी फर्ज माना जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि मुसलमानों के लिए जीवन में एक बार हज करना बेहद जरूरी होता है. हज होने की खुशी में ही ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है.
बकरीद के दिन मुसलमान किसी जानवर जैसे ऊंट, बकरा, भेड़, आदि की कुर्बानी देते हैं. इस कुर्बानी के गोश्त को तीन भागों में बांटा जाता है. जिसमें से पहला हिस्सा खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरा गरीबों के लिए रखा जाता है.
बकरीद के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं. नमाज के लिए मस्जिद जाते हैं और नमाज पढ़ने के बाद कुर्बानी की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है. शाही पकवान बनाए जाते हैं. और जोश और उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है.
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