नमस्कार मैं रवीश कुमार.... 2014 के चुनाव में एक दिलचस्प राजनीतिक और वैचारिक दावेदारी अंगड़ाई ले रही है। पिछड़े और दलित जनाधार के नेतृत्व को समाजवादी मोर्चे से निकालकर हिंदुत्व या राष्ट्रवादी जद में लाने की कवायद तेज हो गई है। विकास की सान पर जाति की धार तेज की जा रही है। शुरुआत बीजेपी के नेताओं ने मोदी को पिछड़ा बता कर की और अब खुद मोदी बिहार- यूपी की रैलियों में खुद को पिछड़ा बताने लगे हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस चुनाव में विकास नहीं है। बिल्कुल विकास है। मगर वह सिर्फ विकास नहीं है। वह विकास यादव है, विकास पासवान है, विकास सिन्हा है, विकास पांडे है, विकास प्रसाद है, विकास झा है, विकास जाटव है, विकास जाधव है, विकास मांझी, विकास सांगवान है। एक तरफ भारत महान दूसरी, तरफ जाति की दुकान। बाकी त जो है सो हइये है।
इस त्वरित टिप्पणी में एक अति त्वरित उप−टिप्पणी। जो जातिवादी राजनीति को हेय नजर से देखते हैं, उन्हें इस बात का इल्म होना चाहिए कि जातिवादी समाजवादी उभार न होता तो भारतीय लोकतंत्र का विस्तार नहीं होता। इसी जातिवादी राजनीति ने सत्ता पर नियंत्रण का चक्र घुमा दिया। इस प्रक्रिया में पिछड़ी दलित जातियों में सत्ताधारी वर्ग भी बना। अब यह चक्र नहीं पठार बन गया है। बीजेपी इसी पठार पर विकास और मोदी की जाति के दम पर दावेदारी कर रही है।
आखिर नरेंद्र मोदी पिछड़ी जाति की पहचान पर क्यों जोर दे रहे हैं। केरल जाकर अपने राजनीतिक विरोध को दलितों के साथ हुए छुआछूत से क्यों जोड़ देते हैं। लखनऊ की रैली में कहा कि बीजेपी ने एक−एक पिछड़ी जाति के उम्मीदवार को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया है।
मुजफ्फरपुर में पासवान के साथ पहली रैली करते हुए कहते हैं कि आने वाला दशक पिछड़ी और दलित जाति के विकास का होगा। बीजेपी को ब्राह्मण, बनियों की पार्टी कहते थे, पिछड़े को पीएम का उम्मीदवार घोषित कर दिया। मोदी, सपा, बसपा की राजनीति के विनाश का एलान करते हैं, दूसरी तरफ खुद को पिछड़ा बताते हैं। क्यों?
दूसरी तरफ इलाहाबाद की रैली में मुलायम अपने मंत्री मनोज पांडे के पांडे होने पर खास जोर देने लगे। मायावती और मुलायम दोनों ब्राह्मण सम्मेलन करते हैं। तो दावेदारी दोनों तरफ से हो रही है। उदित राज बीजेपी में आकर कहते हैं कि बीजेपी दलित विरोधी नहीं हैं। सोशल ऑडिट होना चाहिए कि बीएसपी ने दलितों के लिए क्या किया?
एक मोर्चा और है हिंदुत्व का। महाराष्ट्र में राज ठाकरे की पार्टी मनसे पर बीजेपी चुनाव न लड़ने का दबाव डाल रही है, ताकि कांग्रेस विरोध मत का बिखराव न हो। ये और बात है कि शिवसेना नाराज हो गई है और एनसीपी नेता आरआर पाटिल ने हमला बोल दिया है कि राज ठाकरे से मदद मांगने वाली बीजेपी यूपी-बिहार में क्या मुंह दिखाएगी।
नितिन गडकरी का राज ठाकरे से मिलना बता रहा है कि मोदी आत्मविश्वास से भरे हैं। वह पासवान को मिला लेते हैं, तो प्रवासियों के खिलाफ 'भैया भगाओ अभियान' चलाने वाले राज ठाकरे को भी साधने लग जाते हैं। बिहार में बीजेपी के नेता पासवान से हाथ मिलाने के बाद इस घटना को भी करीब से देख ही रहे होंगे। नीतीश लालू की भी नजर तो होगी ही। वैसे पासवान से तालमेल पर नाराज होकर मोदी की रैली में नहीं जाने वाले सी पी ठाकुर, अश्विनी चौबे और गिरिराज सिंह जैसे बड़े नेता नमो चाय चर्चा में शामिल होने के लिए भेज दिए गए हैं।
बीजेपी ने पहले भी सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग किया था, जब पार्टी हिंदुत्व के उभार के साथ अपना विस्तार कर रही थी। गीविंदाचार्य, उमा भारती, कल्याण सिंह जैसे नेता इसका चेहरा थे। तब भी अटल जी और आडवाणी ने प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के वक्त न तो अपनी जाति बताई, न जात के नाम पर वोट मांगा। लेकिन मोदी ने पिछड़ा कार्ड खेलकर पिछड़ों को पहले से बड़ा सपना दिखा दिया है कि इस बार पिछड़ा प्रधानमंत्री होने जा रहा है। यही नहीं पिछड़ा नेतृत्व समाजवादी जमीन से ही उभरेगा यह राजनीति का अंतिम सिद्धांत नहीं है।
यही काम कांग्रेस भी कर रही है। जाटों को आरक्षण देकर जाट-पिछड़ा राजनीतिक संबंधों में अपनी जगह तलाश रही है, तो बिहार में लालू यादव से हाथ मिलाकर यादव और मुस्लिम वोट का गणित सेट कर रही है। नीतीश या मुलायम दोनों ने जिस अति पिछड़ा समीकरण की खोज की थी, मोदी ने वहां भी हाथ रख दिए हैं।
यह सब लिख ही रहा था कि अचानक टीवी पर आकर मायावती नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला करने लगीं। ऐसा लगा कि दलित पिछड़े पर मोदी की दावेदारी का जवाब देने आर्इं हैं। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी देश में पिछड़ों को लुभाने के लिए इस बात का भी जगह-जगह काफी प्रचार कर रहे हैं कि वह पिछड़ा वर्ग का आदमी है। लेकिन इस मामले में भी श्री नरेंद्र मोदी ने कभी यह नहीं बताया कि वह पिछड़े वर्ग में किस जाति से ताल्लुक रखते हैं। इस प्रकार इन सब बातों से हमे यही प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी जो भी कहता है उसमें अधिकांश झूठ, धोखा एवं छल-कपट आदि भरा होता है।
मोदी के दलित पिछड़े वर्ग की दावेदारी पर मायावती ने सीधी टक्कर ली है। इसीलिए आज प्राइम टाइम में चर्चा है कि क्या अगला पिछड़ा नेतृत्व बीजेपी की हिंदुत्व राष्ट्रवादी जमीन से निकलेगा? क्या मोदी का यह पिछड़़ा कार्ड पिछड़ों को नीतीश, मुलायम, लालू जैसे नेताओं से अलग कर देगा। अगर यह हुआ या यह हो रहा है तो राजनीति टीवी में नहीं जमीन पर देखिए जहां ये हो रहा है। प्राइम टाइम तो बस टाइम पास है।
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