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This Article is From Nov 22, 2014

ग्राउंड रिपोर्ट : जम्मू-कश्मीर चुनाव में किसे मिलेगा कश्मीरी पंडितों का साथ?

ग्राउंड रिपोर्ट : जम्मू-कश्मीर चुनाव में किसे मिलेगा कश्मीरी पंडितों का साथ?

घाटी में सैलाब के असर से उबरते लोगों के सामने अब चुनाव हैं, लेकिन उनके मुताबिक चुनने को कुछ नहीं। घाटी के कश्मीरी पंडितों को बीजेपी अपने साथ मान रही है, लेकिन हकीकत यह है कि वे भी बंटे हुए हैं।

देश के कई शहरों में कश्मीरी पंडित बसे हुए हैं। हर बार चुनावों से पहले उनकी याद हर पार्टी को आती है। यह वे भी जानते हैं, लेकिन इस बार जिस तरह बीजेपी उसे लुभा रही है, उसकी तुलना किसी पार्टी से नहीं की जा सकती, यह वे खुद भी मान रहे हैं।

पार्टी ने अनुच्छेद 370 के बारे में ज्यादा बात नहीं करने का फैसला किया है। बस चुपचाप से ग्राउन्ड पर कश्मीरी पंडितों तक पहुंचकर यह आश्वासन दे रही है कि सिर्फ वो ही उनके हालात बदल पाएगी। बावजूद इसके जितने भी कश्मीरी पंडितों से एनडीटीवी ने बात की, तो उन्होंने साफ कहा कि यह जरूरी नहीं है कि हर कश्मीरी पंडित बीजेपी को ही वोट देगा।

जब हम हबाकदल पहुंचे, तो वहां हमें कश्मीर यूनिवर्सिटी में कभी अंग्रेजी पढ़ाने वाले मोतीलाल कौल एक शेर गुनगुनाते हुए मिले, "ये देखो वो जला घर किसी का, वो टूटे किसी के सितारे, वो फूटी किस्मत..." उनसे बात करके पता चला कि दरअसल ये शेर उस तबाही को बयान करता है, जो उनकी आपबीती है।

इस शेर का असली मतलब उनके घर को देखकर भी पता चला। घर बैठने लायक नहीं बचा है, इसलिए वह बाहर बैठे रहते हैं। इस बेघरी में वो किसको चुनें किसको नहीं। उनके लिए बीजेपी या पीडीपी में कोई फर्क नहीं। यहां आपको ऐसे लोग मिलेंगे, जो घर से अगर बीजेपी को वोट देने निकले, लेकिन रास्ते में किसी ने बिरयानी खिला दी, तो वह अपना मन बदल भी सकता है, क्योंकि पेट में दाना नहीं है।

मोतीलाल ने साफ-साफ कहा कि बीजेपी को पंडितों के वोटों का आसरा है, लेकिन ऐसा नहीं कि पंडितों में बीजेपी की लहर है। एक अहम तबका कांग्रेस की तरफ अब भी खड़ा है। गुलाम नबी आजाद अच्छे आदमी हैं, जितना उन्होंने हमारी मदद की, किसी ने नहीं की, यह शेखपुरा विनोद का कहना है। जबकि हबाकदल के किरणजी ने बताया कि यह जरूरी नहीं है कि बीजेपी ही वोट लेगी, दूसरी पार्टियां भी हैं।

उधर, बीजेपी की कोशिश एक-एक कश्मीरी पंडित तक पहुंचने की है। पार्टी की अल्पसंख्यक सेल का अंदाजा है कि देशभर में करीब 90,000 प्रवासी कश्मीरी पंडितों के रजिस्टर्ड वोट हैं। इनमें से 60,000 जम्मू में और 30,000 दिल्ली और बाकी शहरों में हैं।  लेकिन घाटी में सिर्फ 2500 कश्मीरी पंडितों के वोट हैं।

मुश्किल यह है कि प्रवासी कश्मीरी ज्यादा वोट नहीं करते। बीजेपी इस बार उन्हें मतदान केंद्रों तक लाने का इरादा रखती है। श्रीनगर में बीजेपी प्रवक्ता खालिद जहांगीर ने एनडीटीवी से कहा, हमारे लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वोटिंग आसानी से हो जाए ओर ज्यादा लोग वोट कर सकें।

उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया है कि बीजेपी कई कश्मीरी पंडितों के नए वोट भी बनवा रही है। उधर महबूबा मुफ्ती का कहना है कि कश्मीरी पंडित बीजेपी की जागीर नहीं है, वह हमारे समाज के हिस्सा हैं।

बीजेपी की मुश्किलें और भी हैं। पार्टी यहां बनने से पहले ही बिखर रही है। सीटों के बंटवारे को लेकर नाराजगी साफ है। अशोक बट्ट ने हबाकदल में बहुत काम किया, लेकिन अब वह इस बात से दुखी हैं कि पार्टी ने उन्हें हबाकदल की सीट न देकर खनयार से उतारा। जबकि हबाकदल की सीट मुंबई में रहने वाले एक डॉक्टर को दे दी। अशोक बट्ट कहते हैं, मैं क्या जानूं, उन्होंने मुझे हबाकदल क्यों नहीं दिया।

दरअसल, बीजेपी हबाकदल के अलावा सोपोर और त्राल को अपने लिए सुरक्षित सीट मान रही है, लेकिन अब हबाकदल में ही सबसे ज्यादा मुश्किलें खड़ी हो रही हैं।

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