
कानपुर रैली मे आम आदमी पार्टी की तरफ से बहुत साफ संकेत मिले कि अगर बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वाराणसी से लोकसभा चुनाव लड़ते हैं तो अरविंद केजरीवाल भी वाराणसी से मैदान में होंगे। खुद केजरीवाल ने कहा कि उनको पहले लगता था कि देश में मोदी नाम की लहर है, लेकिन रोड शो के दौरान जिस तरह का जनसमर्थन मिला, उससे उनका मिथक टूट गया है और अब वह 5 मार्च से 8 मार्च तक गुजरात जाकर देखेंगे कि 'राम राज्य' आया कहां है?
लेकिन इससे भी बड़ी बात केजरीवाल ने इस सभा में यह कही कि उनकी पार्टी इन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस से ज्यादा सीटें लेकर आएगी। उन्होंने यह दावा भी कर दिया कि केंद्र में अगली सरकार आम आदमी पार्टी के समर्थन के बिना नहीं बनेगी।
अब जरा गौर से देखें कि केजरीवाल के इन दो दावों के पीछे मंशा क्या है? जब उनकी पार्टी केजरीवाल को मोदी से लड़ाने की बात कहती है या वे दावा करते हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस से ज्यादा सीटें लाएगी तो उनका इरादा क्या होता है?
दरअसल केजरीवाल की कोशिश यह धारणा बनाने की है कि इन चुनावों में बीजेपी के मुकाबले उनकी ही पार्टी है, कांग्रेस नहीं। दूसरे, वह यह जताना चाहते हैं कि आम आदमी पार्टी इन लोकसभा चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरने वाली है, इस उम्मीद में कि इससे शायद उन वर्गों और तबकों का समर्थन उन्हें मिल जाए, जो बीजेपी या नरेंद्र मोदी को सत्ता में आते देखने को तैयार नहीं हैं।
लेकिन यह फैसला दोधारी तलवार से कम नहीं है, क्योंकि संदेश यह भी जा सकता है कि केजरीवाल का केवल एक ही एजेंडा है और वह है मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकना, इससे यह आरोप लगने और तेज हो सकते हैं कि केजरीवाल और कांग्रेस मोदी को रोकने के लिए मिल गए हैं।
आपको याद दिला दूं कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में बहुत सारे लोग ऐसे थे, जो कहते थे कि वह दिल्ली में केजरीवाल को वोट देंगे, लेकिन बाकी देश के लिए मोदी को- यानी केजरीवाल को वे दिल्ली का मुख्यमंत्री देखना चाहते थे और मोदी को देश का प्रधानमंत्री... ऐसे में केजरीवाल का यह दांव कितना फायदेमंद होगा इसका आकलन फिलहाल पार्टी भी करने में लगी हुई और इसलिए अभी वह इस बात का इंतजार कर रही है कि मोदी कहां से चुनाव लड़ते हैं।
केजरीवाल का यह दावा भी ध्यान देने लायक है कि अगली सरकार आप के बिना नहीं बनेगी। जबकि यह वह पार्टी है, जो अभी तक खुद को किसी तरह की गठबंधन राजनीति के खिलाफ बताती रही है। कहती रही है कि वह न समर्थन लेगी और न समर्थन देगी। यह बात पार्टी अपने जन्म से लेकर अब तक कहती थी।
अब जरा इस समर्थन की बात को थोड़ा खोलने की कोशिश करें तो नजर आता है कि आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी है। ऐसे में चुनाव के बाद क्या जरूरत पड़ने पर वह कांग्रेस को समर्थन देकर या लेकर सरकार बना या बनवा सकती है?
इस अटकल को इस बात से भी हवा मिलेगी कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहली सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही बनी थी। तो फिर यह पार्टी कांग्रेस-विरोधी वोट कैसे हासिल करेगी?
इस पार्टी का असली जनाधार ही कांग्रेस विरोध था, क्योंकि दिल्ली और देश में कांग्रेस की ही सरकार थी, जिसका विरोध लोकपाल बिल को लेकर एक आंदोलन के रूप में सामने आया और बाद में एक राजनीतिक दल में तब्दील हो गया और दिल्ली में कांग्रेस का सफाया हो गया। ऐसे में केजरीवाल का मौजूदा प्लान, उनका बयान और इरादा उनकी राजनीति के लिए खतरनाक दिखते हैं, लेकिन ध्यान रखना होगा कि राजनीति में बड़ी तेजी से वक्त बदलता है और उसी हिसाब से फैसले और रणनीति बनती है।
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