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This Article is From Mar 12, 2014

चुनाव डायरी : नरेंद्र मोदी को हिलाने चले खुद न हिल जाएं अरविंद केजरीवाल

चुनाव डायरी : नरेंद्र मोदी को हिलाने चले खुद न हिल जाएं अरविंद केजरीवाल
फाइल फोटो
नई दिल्ली:

पिछले तीन हफ्तों से ऐसा लगता है कि अरविंद केजरीवाल और पूरी आम आदमी पार्टी का अब एक ही एजेंडा है और वह है मोदी।
पहले आम आदमी पार्टी के पास कुछ मुद्दे थे, लेकिन अब तो एक ही मुद्दा और एक ही एजेंडा है 'मोदी'। रोहतक और कानपुर रैली के बाद मोदी के गढ़ गुजरात में घुसकर केजरीवाल ने कोशिश की कि गुजरात के विकास के दावे की हवा निकालकर उन्हें हिला दें।
केजरीवाल मोदी को हिलाकर और खुद को उनके खिलाफ सबसे बड़ी ताकत बताकर केजरीवाल मोदी विरोधी और बीजेपी विरोधी वोट में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं। मोदी हिले नहीं हिले  हिलेंगे या नहीं पता नहीं, लेकिन कहीं ऐसा ना हो कि केजरीवाल इस चक्कर में खुद हिल जाएं।

असल में दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव के बाद जिस तेजी से राजनीतिक घटनाक्रम बदला केजरीवाल को सरकार बनानी और गिरानी पड़ी और फिर लोकसभा चुनाव चुनाव में उतरना पड़ा इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पार्टी बहुत कम समय में बहुत कुछ पाना चाहती है, लेकिन इस चक्कर में पार्टी में इन दिनों एक तरह का असंतोष देखा जा रहा है।

यह असंतोष नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं सबमें दिख रहा है। आए दिन खबर तो आ ही जाती है कि फलां फलां जोकि पार्टी के संस्थापक सदस्य थे उन्होंने पार्टी से किसी न किसी वजह से इस्तीफ़ा दे दिया। हो सकता है कि पार्टी चुनाव के लिए टिकट न दे रही हो इसलिए वे पार्टी से नाराज़ होकर पार्टी छोड़ रहे हों ये आम बात है, लेकिन जब आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास और शाज़िया इल्मी भी पार्टी से नाराज़ दिखें तो क्या कहा जाए।

कुमार विश्वास की दिक्कत यह है कि पार्टी में किसी को भी लाकर बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है और क्योंकि वो पार्टी के संस्थापक और बड़े नेता हैं, इसलिए उनकी नाराज़गी समझी जा सकती है, लेकिन सवाल ये है कि इस स्वाभाविक नाराज़गी पर कोई तवज्जो देने को भी तैयार है या नहीं।

शाज़िया इल्मी से पार्टी चाहती थी कि वे सोनिया गांधी के खिलाफ़ रायबरेली से चुनाव लड़ें, लेकिन शाज़िया दिल्ली से चुनाव लड़ना चाहती थीं। लेकिन दिल्ली की सारी सीटों पर उम्मीदवार घोषित हो गए और शाज़िया को पार्टी ने दिल्ली से टिकट नहीं दिया। वैसे तो कुमार विश्वास की तरह शाज़िया की नाराज़गी भी स्वाभाविक है।

लेकिन ये तो सभी पार्टियों में होता है तो इस पार्टी में क्या अलग है। ये पार्टी तो दावा करती है कि वो मौजूदा राजनीति को बदलने के लिए और देशसेवा करने के लिए राजनीति में आए हैं तो फिर जब देश सेवा के लिए आए हैं तो इसमें नाराज़गी क्यों।

असल में जो बात पार्टी के कार्यकर्तओं और नेताओं को बेचैन कर रही है, वो है कि पुराने लोगों को नज़रअंदाज़ करके नए लोगों को पार्टी टिकट क्यों और कैसे दे रही है संगठन में किसको लाया जा रहा है, क्यों लाया जा रहा है और कैसे लाया जा रहा है।

एक बात और है जिसकी भनक मुझे लग रही है, लेकिन अभी पूरी तरह से वो पुख्ता नहीं हो पाई वो ये कि कांग्रेस विरोध से जन्म लेने वाली पार्टी और दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ करने वाली पार्टी इस तरह अचानक मोदी विरोध के अलावा कुछ सोच ही नहीं रही पार्टी में इस बात पर कुछ असहमति है।

और जनता भी तो पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेता से ये सवाल करती है न कि भैया सरकार में तो कांग्रेस है, बजाय उसका विरोध करने के आप विपक्ष में रही बीजेपी पर इस तरह हमला कर रहे हो जैसे अभी तक उनका ही राज था और आज की हर समस्या के लिए वे ही जिम्मेदार हैं।  

बेशक केजरीवाल कहते हैं कि अगर किसी को पार्टी छोड़कर कल जाना है तो आज चला जाए, लेकिन अगर इस तरह लोग पार्टी में बेचैन होंगे, नाराज़ होंगे या पार्टी को सलाम नमस्ते कहकर निकलते रहेंगे तो जनता और पार्टी समथर्कों के मन में शक तो ज़रूर पैदा होता है। वो सोचते हैं कि कुछ तो वजह होगी यूं ही कोई बेवफा नहीं होता।

यानी अगर आपके अपने लोग आपको छोड़ते रहे और उसकी वजह से आपका जनता में मौजूद समर्थन खिसकता चला गया तो फिर आप राजनीति किसकी करेंगे इसलिए मुझे लगता है कि भूकंप लाकर दूसरे की ज़मीन हिलाने से पहले ज़रूरी है कि जिस जमीन पर आपका घर है उसको मज़बूत करके हिलने से बचाएं।

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