सीलिंग का विरोध करते दिल्ली के व्यापारी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने राजधानी में सीलिंग अभियान के खिलाफ हड़ताल और धरनों पर नाराजगी व्यक्त करते हुये सोमवार को कहा कि दिल्ली में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा दिल्ली में कानून व्यवस्था का पूरी तरह ब्रेक डाउन हो चुका है. 2006 तक अवैध निर्माण को संरक्षण मिला था, एक्ट के तहत, उसके बाद अवैध निर्माण को संरक्षण कैसे मिल रहा है? कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण और अतिक्रमण को 2020 तक सरंक्षण देने के लिए कानून लाए जाने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा ये दिक्कत गंभीर है, जनता परेशान है और केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है. मास्टर प्लान में संशोधन की प्रक्रिया 2001 में शुरू हुई और 2005 तक चली, इस बीच सरकार ने कोई एक्शन नहीं लिया.
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने कानून लाकर 1 जनवरी 2006 तक हुए अवैध निर्माण को संरक्षित किया. ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने के लिए किया गया. अदालत ने पूछा कि 19 मई 2007 में ये बिल लाकर सरंक्षण दिया लेकिन उसके बाद जो अवैध निर्माण हुआ और अवैध कालोनियां बनी, उनको क्यों नहीं तोड़ा गया.'
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अपना काम करने में विफल रहने के लिये केंद्र और दूसरे प्राधिकारों को आड़े हाथ लिया और कहा कि इसकी वजह से ही ऐसी स्थिति पैदा हुई है. पीठ ने इसे शासन के लिये बहुत ही गंभीर मुद्दा बताया. पीठ ने राजधानी में अनधिकृत निर्माण को सीलिंग से बचाने के लिये दिल्ली (विशेष प्रावधान) कानून, 2006 और इसके बाद बने कानूनों को लेकर केन्द्र ने अनेक सवाल किये.
पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी से कहा, ‘‘आप दिल्ली को बर्बाद नहीं कर सकते. इसकी कुछ तो वजह होनी चाहिए.’’ पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह अनधिकृत निर्माणों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनों का समर्थन करने के प्रति अपने रुख को न्यायोचित ठहराये. पीठ ने कहा, ‘‘हमसे कहिए कि दिल्ली में कोई धरना नहीं होगा. दिल्ली में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.’’
नाडकर्णी ने कहा कि दिल्ली में लाखों प्रवासी हैं जिसकी वजह से मांग और आपूर्ति के बीच अंतर है और यहां करीब 1,400 अनधिकृत कालोनियां हैं जिनमें करीब छह लाख परिवार रहते हैं. हालांकि, पीठ ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा कि ऐसी बस्तियों और अनधिकृत निर्माण में रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या के बारे में रिकार्ड पर कोई भी अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘सरकार और उनके प्राधिकार अपना काम नहीं कर रहे हैं. यह आपकी विफलता की स्वीकारोक्ति है कि मैं अपना काम करने में विफल हो गया, अत: हमारी मदद कीजिये.’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर मसला है. यह शासन का मामला है और दिल्ली की जनता इसका खामियाजा भुगत रही है क्योंकि आप अपना काम नहीं कर रहे हैं.’’
न्यायालय ने बार-बार अस्थाई कानून का मुद्दा भी उठाया और जानना चाहा कि क्या यह इस तरह से किया जा सकता है. हर बार आप संसद से कहते हैं कि यह अवधि एक साल बढ़ा दी जाये. क्या आप ऐसे ही करते रहेंगे? इस पर गौर कीजिये, अन्यथा आप संसद को भी अंधेरे में रख रहे हैं.’’ न्यायालय ने सरकार से जानना चाहा कि उसने उन अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जिन्हें इस कानून के तहत कोई संरक्षण नहीं प्राप्त है. पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप आज यह बयान दे सकते हैं कि एक जनवरी, 2006 के बाद हुये अनधिकृत निर्माण सील किये जाएंगे. इसके बाद के सालों में ऐसी सैकड़ों बस्तियां अस्तित्व में आ गई हैं.
VIDEO: सीलिंग पर केजरीवाल ने कहा, ‘MCD दिल्ली सरकार के अंदर नहीं’
पीठ ने कहा, ‘‘आप कानून पर अमल नहीं करते हैं और जब हम ऐसा करने के लिये कहते हैं तो हड़ताल होती है.’’ केन्द्र ने आवश्यक आंकड़े पेश करने का भरोसा दिलाते हुये कहा कि यहां आबादी में जबर्दस्त वृद्धि हुई है और दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 में संशोधन करने का उसका प्रस्ताव है. केन्द्र ने कहा कि आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया जारी है. इस पर पीठ ने कहा कि 2006 से अब 2018 हो गया और आप अभी भी आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया में ही हैं. आपके पास आंकड़े तक नहीं हैं. इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या अनाधिकृत कॉलोनियों में सीवर, गंदे पानी की निकासी, पार्किंग, हरित क्षेत्र, और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधायें हैं और क्या वहां के निवासी करों का भुगतान करते हैं. पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह इन मुद्दों से निबटने के प्रस्ताव बतायें और संबंधित दस्तावेज दिखायें. पीठ ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई मंगलवार के लिये स्थगित कर दी.
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने कानून लाकर 1 जनवरी 2006 तक हुए अवैध निर्माण को संरक्षित किया. ये सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निरस्त करने के लिए किया गया. अदालत ने पूछा कि 19 मई 2007 में ये बिल लाकर सरंक्षण दिया लेकिन उसके बाद जो अवैध निर्माण हुआ और अवैध कालोनियां बनी, उनको क्यों नहीं तोड़ा गया.'
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने अपना काम करने में विफल रहने के लिये केंद्र और दूसरे प्राधिकारों को आड़े हाथ लिया और कहा कि इसकी वजह से ही ऐसी स्थिति पैदा हुई है. पीठ ने इसे शासन के लिये बहुत ही गंभीर मुद्दा बताया. पीठ ने राजधानी में अनधिकृत निर्माण को सीलिंग से बचाने के लिये दिल्ली (विशेष प्रावधान) कानून, 2006 और इसके बाद बने कानूनों को लेकर केन्द्र ने अनेक सवाल किये.
पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी से कहा, ‘‘आप दिल्ली को बर्बाद नहीं कर सकते. इसकी कुछ तो वजह होनी चाहिए.’’ पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह अनधिकृत निर्माणों को संरक्षण प्रदान करने वाले कानूनों का समर्थन करने के प्रति अपने रुख को न्यायोचित ठहराये. पीठ ने कहा, ‘‘हमसे कहिए कि दिल्ली में कोई धरना नहीं होगा. दिल्ली में कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.’’
नाडकर्णी ने कहा कि दिल्ली में लाखों प्रवासी हैं जिसकी वजह से मांग और आपूर्ति के बीच अंतर है और यहां करीब 1,400 अनधिकृत कालोनियां हैं जिनमें करीब छह लाख परिवार रहते हैं. हालांकि, पीठ ने इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा कि ऐसी बस्तियों और अनधिकृत निर्माण में रहने वाले ऐसे लोगों की संख्या के बारे में रिकार्ड पर कोई भी अधिकृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
पीठ ने कहा, ‘‘सरकार और उनके प्राधिकार अपना काम नहीं कर रहे हैं. यह आपकी विफलता की स्वीकारोक्ति है कि मैं अपना काम करने में विफल हो गया, अत: हमारी मदद कीजिये.’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर मसला है. यह शासन का मामला है और दिल्ली की जनता इसका खामियाजा भुगत रही है क्योंकि आप अपना काम नहीं कर रहे हैं.’’
न्यायालय ने बार-बार अस्थाई कानून का मुद्दा भी उठाया और जानना चाहा कि क्या यह इस तरह से किया जा सकता है. हर बार आप संसद से कहते हैं कि यह अवधि एक साल बढ़ा दी जाये. क्या आप ऐसे ही करते रहेंगे? इस पर गौर कीजिये, अन्यथा आप संसद को भी अंधेरे में रख रहे हैं.’’ न्यायालय ने सरकार से जानना चाहा कि उसने उन अनधिकृत निर्माणों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जिन्हें इस कानून के तहत कोई संरक्षण नहीं प्राप्त है. पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप आज यह बयान दे सकते हैं कि एक जनवरी, 2006 के बाद हुये अनधिकृत निर्माण सील किये जाएंगे. इसके बाद के सालों में ऐसी सैकड़ों बस्तियां अस्तित्व में आ गई हैं.
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पीठ ने कहा, ‘‘आप कानून पर अमल नहीं करते हैं और जब हम ऐसा करने के लिये कहते हैं तो हड़ताल होती है.’’ केन्द्र ने आवश्यक आंकड़े पेश करने का भरोसा दिलाते हुये कहा कि यहां आबादी में जबर्दस्त वृद्धि हुई है और दिल्ली के मास्टर प्लान-2021 में संशोधन करने का उसका प्रस्ताव है. केन्द्र ने कहा कि आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया जारी है. इस पर पीठ ने कहा कि 2006 से अब 2018 हो गया और आप अभी भी आंकड़े एकत्र करने की प्रक्रिया में ही हैं. आपके पास आंकड़े तक नहीं हैं. इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने जानना चाहा कि क्या अनाधिकृत कॉलोनियों में सीवर, गंदे पानी की निकासी, पार्किंग, हरित क्षेत्र, और स्कूल जैसी बुनियादी सुविधायें हैं और क्या वहां के निवासी करों का भुगतान करते हैं. पीठ ने केन्द्र से कहा कि वह इन मुद्दों से निबटने के प्रस्ताव बतायें और संबंधित दस्तावेज दिखायें. पीठ ने इसके साथ ही इस मामले की सुनवाई मंगलवार के लिये स्थगित कर दी.
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