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This Article is From Nov 09, 2012

खेल संस्कृति विकसित करने के लिए ठोस कदम जरूरी : द्रविड़

भुवनेश्वर: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने देश में खेल संस्कृति तैयार करने के लिए ठोस कदम उठाने की पैरवी की। द्रविड़ ने कहा, हम सिर्फ नतीजे चाहते हैं और दोयम दर्जे के नतीजों से भी खुश हो जाते हैं। शीर्ष खिलाड़ियों के लिए नतीजे एक प्रक्रिया और खुद को परिपक्व बनाने की कोशिशों का हिस्सा भर होते हैं।

उन्होंने कहा, खेलों में नतीजे हासिल करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका नतीजों पर से फोकस हटाना है। खेलों में नतीजे कभी भी किसी एक के हाथ में नहीं होते, जबकि तैयारी और प्रदर्शन की प्रक्रिया हमारे हाथ में होती है। द्रविड़ ने कहा, दुनिया की आबादी का 30 प्रतिशत भारत में है, लेकिन पिछले छह दशक में खेलों में हमारी उपलब्धियां बहुत कम हैं। वहीं छोटे देशों में जहां इक्के-दुक्के स्टेडियम हैं, वहां से चैंपियन फर्राटा धावक, मैराथन धावक और तैराक निकले हैं।

उन्होंने कहा कि खेलों में अत्यधिक जोखिम और कई बार बहुत कम पारितोषिक होता है। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि अधिकांश लोग शिक्षा को सुरक्षित विकल्प मानते हैं। उन्होंने कहा, आज के जमाने में बहुत कम साहसी माता-पिता होते हैं, जो बच्चों को हाई स्कूल के बाद खेलों में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

अमेरिकी कॉलेज खेल प्रणाली का उदाहरण देते हुए द्रविड़ ने कहा कि वहां विश्व स्तरीय अभ्यास और शिक्षण सुविधाएं साथ में मुहैया कराई जाती हैं, जबकि दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट स्कूलों में टेस्ट खिलाड़ियों को शीर्ष डिग्रियां दी जाती हैं। उन्होंने कहा, यदि हम वाकई खेलों की चिंता करते हैं, तो विकसित देश होने की दहलीज पर खड़े भारत को चाहिए कि सर्वश्रेष्ठ युवा प्रतिभाओं को एक साथ खेल और पढ़ाई की सहूलियत मुहैया कराए।

द्रविड़ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में ही प्रतिभाओं की पहचान हो सकती है। बड़े खेल आयोजनों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि खेल प्रशासकों को खिलाड़ियों और खेलप्रेमियों पर अपनी सारी ऊर्जा लगानी चाहिए, क्योंकि इनमें से एक के बिना दूसरा बेमानी हो जाता है। उन्होंने कहा, मेरे हिसाब से खेल महासंघों का काम सही प्रतिभाओं को तलाशना, उन्हें सीखने और फलने-फूलने का सर्वश्रेष्ठ मंच देना और आखिर में उन्हें खेलप्रेमियों से जोड़ना है।

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