फोटो सौरव गांगुली के फेसबुक पेज से साभार
अक्खड़-तुनकमिजाज, बेहद आक्रामक, टीम का चहेता और दादा....। क्रिकेट जगत में टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली को इन सभी रूपों में जाना जाता है। किसी ने उन्हें बेहद रूखा और आत्मकेंद्रित खिलाड़ी बताया तो किसी ने उन्हें टीम इंडिया के तेवर बदलने वाला और जूनियर खिलाड़ियों का 'दादा' यानी बड़े भाई की तरह माना। आप सौरव से प्यार करें या नफरत, उनकी अनदेखी नहीं कर सकते।
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बल्लेबाज और मध्यम गति के गेंदबाज के रूप में टीम इंडिया को कई कामयाबियां दिलाने वाले गांगुली ने टीम इंडिया की कमान तब संभाली जब मैच फिक्सिंग की काली छाया ने क्रिकेट की छवि को गंदा कर दिया था। आरोपों के घनघोर बादलों के बीच भारतीय टीम का आत्मविश्वास निचले स्तर पर पहुंच चुका था। स्थापित प्लेयर्स के परिदृश्य से ओझल (मैच फिक्सिंग के कारण ) होने के चलते टीम पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रही थी सो अलग। चयनकर्ताओं ने जब सौरव गांगुली को कप्तानी सौंपी तो शायद किसी ने उनसे बड़ी उम्मीद नहीं की थी लेकिन आक्रामक तेवरों वाले सौरव ने सीनियर्स को भरोसे में लिया और युवा प्लेयर्स की हौसला अफजाई कर टीम इंडिया को ऐसी लड़ाकू इकाई में तब्दील कर दिया जिसकी क्षमता का लोहा हर टीम ने माना।
(एक मामला ऐसा भी जिसमें सर डॉन ब्रैडमैन की बराबरी पर हैं सौरव गांगुली...)
टीम को खेल के दौरान और मैदान में आक्रामक तेवर देना सौरव की सबसे बड़ी 'यूएसपी' रही। क्रिकेट के एक बड़े समीक्षक ने सौरव गांगुली की प्रशंसा करते हुए एक बार कहा था कि कप्तान के रूप में सौरव ने खिलाड़ियों को सिखाया कि जब विपक्षी खिलाड़ी आपको घूर रहा हो तो आप नजरें नीचे नहीं करें और आप भी उसे घूरते रहें। स्वाभाविक है कि आज क्रिकेट इतना अधिक प्रतिस्पर्धात्मक हो चुका है कि आपको मैदान पर हर समय आक्रामक बने रहना होता है। टीम इंडिया को यह आक्रामक तेवर सौरव गांगुली की ही देन रहे। यह आक्रामक तेवर मैदान पर सौरव गांगुली के व्यवहार में भी दिखता रहा।
नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल के दौरान इंग्लैंड के खिलाफ जीत के बाद 'क्रिकेट के मक्का' लॉर्डस की गैलरी से फुटबॉलर्स के अंदाज में टी-शर्ट घुमाकर एंड्रयू फ्लिंटॉफ को 'चिढ़ाने' का काम सौरव गांगुली जैसे कप्तान ही कर सकते थे। दरअसल, यह सौरव का पिछले वनडे मैच में भारत के खिलाफ इंग्लैंड की जीत के बाद दौड़ते हुए टीशर्ट लहराने वाले फ्लिंटॉफ को जवाब था। यह भी कहा जाता है कि बिंदास सौरव ने एक बार ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए मैदान पर इंतजार करने के लिए मजबूर कर दिया।
(INDvsPAK : 19 साल पहले टीम इंडिया से नहीं अकेले सौरव गांगुली से हार गई थी पाकिस्तान टीम)
दरअसल आक्रामकता शुरू से ही सौरव के स्वभाव में रही है। 11 जनवरी 1992 को बेंसन एंड हेजेज त्रिकोणीय सीरीज में उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे खेलकर इंटरनेशनल करियर का आगाज किया। पहले मैच में महज तीन रन बनाकर आउट हुए सौरव को इस नाकामी के बाद सीरीज में ज्यादा मौके नहीं मिले और वे लगभग 'बिसार' दिए गए। महज 20 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट में प्रवेश का प्रेशर उस समय सौरव के खेल में साफ दिख रहा था और उनके पैर नहीं चल रहे थे। बहरहाल, बाहर किये जाने को इस खब्बू खिलाड़ी ने चुनौती के रूप में लिया और 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में फिर टीम में जगह बना ली।
(सहवाग ने गांगुली से कहा, लार्ड्स में कमीज की तरह ही भारत का परचम लहराते रहें, जानिए किसने क्या कहा)
उस समय भी सौरव के सामने चुनौती कम नहीं थी। इंग्लैंड सीरीज के पहले सौरव के अक्खड़ स्वभाव की चर्चा मीडिया में होती रही और यह तक कहा गया कि पिता चंडी गांगुली के असर के कारण बेटे को टीम में जगह मिली है। सौरव ने शानदार बल्लेबाजी से आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। उन्होंने अपने शुरुआती दो टेस्ट में शतक जमाए और भारत के लिए इतने बेहतरीन तरीके से टेस्ट आगाज करने वाले बल्लेबाजों की जमात में खुद को शुमार कर लिया। बेशक 'शार्टपिच गेंदें'और 'रनिंग विटवीन द विकेट' सौरव की कमजोरी रही लेकिन उन्होंने अपनी कलात्मक बैटिंग से इसे अच्छी तरह छुपाया। ऑफ साइड पर सौरव के स्ट्रोक इतने नफासत भरे होते थे कि राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि 'ऑफ साइड पर पहले तो गॉड (भगवान) हैं और फिर सौरव गांगुली..'। सौरव की बल्लेबाजी के रॉयल अंदाज के कारण इंग्लैंड के महान बल्लेबाज ज्यॉफ बायकॉट ने उन्हें "प्रिंस ऑफ कोलकाता" का नाम दिया था।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सौरव ने अपनी 'नई पारी' खेल प्रशासक के रूप में शुरू की है। इस समय वे क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (कैब) के अध्यक्ष हैं। बीसीसीआई की ओर से नियुक्त की गई सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में भी वे भारतीय क्रिकेट को सेवाएं दे रहे हैं। टीम इंडिया के कोच चयन से जुड़े विवाद में रवि शास्त्री को 'मुंहतोड़' जवाब देकर सौरव ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। लगता है कि इस 'नई पारी में भी सौरव गांगुली के आक्रामक तेवर जारी रहेंगे...।
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बल्लेबाज और मध्यम गति के गेंदबाज के रूप में टीम इंडिया को कई कामयाबियां दिलाने वाले गांगुली ने टीम इंडिया की कमान तब संभाली जब मैच फिक्सिंग की काली छाया ने क्रिकेट की छवि को गंदा कर दिया था। आरोपों के घनघोर बादलों के बीच भारतीय टीम का आत्मविश्वास निचले स्तर पर पहुंच चुका था। स्थापित प्लेयर्स के परिदृश्य से ओझल (मैच फिक्सिंग के कारण ) होने के चलते टीम पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रही थी सो अलग। चयनकर्ताओं ने जब सौरव गांगुली को कप्तानी सौंपी तो शायद किसी ने उनसे बड़ी उम्मीद नहीं की थी लेकिन आक्रामक तेवरों वाले सौरव ने सीनियर्स को भरोसे में लिया और युवा प्लेयर्स की हौसला अफजाई कर टीम इंडिया को ऐसी लड़ाकू इकाई में तब्दील कर दिया जिसकी क्षमता का लोहा हर टीम ने माना।
(एक मामला ऐसा भी जिसमें सर डॉन ब्रैडमैन की बराबरी पर हैं सौरव गांगुली...)
टीम को खेल के दौरान और मैदान में आक्रामक तेवर देना सौरव की सबसे बड़ी 'यूएसपी' रही। क्रिकेट के एक बड़े समीक्षक ने सौरव गांगुली की प्रशंसा करते हुए एक बार कहा था कि कप्तान के रूप में सौरव ने खिलाड़ियों को सिखाया कि जब विपक्षी खिलाड़ी आपको घूर रहा हो तो आप नजरें नीचे नहीं करें और आप भी उसे घूरते रहें। स्वाभाविक है कि आज क्रिकेट इतना अधिक प्रतिस्पर्धात्मक हो चुका है कि आपको मैदान पर हर समय आक्रामक बने रहना होता है। टीम इंडिया को यह आक्रामक तेवर सौरव गांगुली की ही देन रहे। यह आक्रामक तेवर मैदान पर सौरव गांगुली के व्यवहार में भी दिखता रहा।
नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल के दौरान इंग्लैंड के खिलाफ जीत के बाद 'क्रिकेट के मक्का' लॉर्डस की गैलरी से फुटबॉलर्स के अंदाज में टी-शर्ट घुमाकर एंड्रयू फ्लिंटॉफ को 'चिढ़ाने' का काम सौरव गांगुली जैसे कप्तान ही कर सकते थे। दरअसल, यह सौरव का पिछले वनडे मैच में भारत के खिलाफ इंग्लैंड की जीत के बाद दौड़ते हुए टीशर्ट लहराने वाले फ्लिंटॉफ को जवाब था। यह भी कहा जाता है कि बिंदास सौरव ने एक बार ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन कप्तान स्टीव वॉ को टॉस के लिए मैदान पर इंतजार करने के लिए मजबूर कर दिया।
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दरअसल आक्रामकता शुरू से ही सौरव के स्वभाव में रही है। 11 जनवरी 1992 को बेंसन एंड हेजेज त्रिकोणीय सीरीज में उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे खेलकर इंटरनेशनल करियर का आगाज किया। पहले मैच में महज तीन रन बनाकर आउट हुए सौरव को इस नाकामी के बाद सीरीज में ज्यादा मौके नहीं मिले और वे लगभग 'बिसार' दिए गए। महज 20 साल की उम्र में इंटरनेशनल क्रिकेट में प्रवेश का प्रेशर उस समय सौरव के खेल में साफ दिख रहा था और उनके पैर नहीं चल रहे थे। बहरहाल, बाहर किये जाने को इस खब्बू खिलाड़ी ने चुनौती के रूप में लिया और 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में फिर टीम में जगह बना ली।
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उस समय भी सौरव के सामने चुनौती कम नहीं थी। इंग्लैंड सीरीज के पहले सौरव के अक्खड़ स्वभाव की चर्चा मीडिया में होती रही और यह तक कहा गया कि पिता चंडी गांगुली के असर के कारण बेटे को टीम में जगह मिली है। सौरव ने शानदार बल्लेबाजी से आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। उन्होंने अपने शुरुआती दो टेस्ट में शतक जमाए और भारत के लिए इतने बेहतरीन तरीके से टेस्ट आगाज करने वाले बल्लेबाजों की जमात में खुद को शुमार कर लिया। बेशक 'शार्टपिच गेंदें'और 'रनिंग विटवीन द विकेट' सौरव की कमजोरी रही लेकिन उन्होंने अपनी कलात्मक बैटिंग से इसे अच्छी तरह छुपाया। ऑफ साइड पर सौरव के स्ट्रोक इतने नफासत भरे होते थे कि राहुल द्रविड़ ने एक बार कहा था कि 'ऑफ साइड पर पहले तो गॉड (भगवान) हैं और फिर सौरव गांगुली..'। सौरव की बल्लेबाजी के रॉयल अंदाज के कारण इंग्लैंड के महान बल्लेबाज ज्यॉफ बायकॉट ने उन्हें "प्रिंस ऑफ कोलकाता" का नाम दिया था।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सौरव ने अपनी 'नई पारी' खेल प्रशासक के रूप में शुरू की है। इस समय वे क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (कैब) के अध्यक्ष हैं। बीसीसीआई की ओर से नियुक्त की गई सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में भी वे भारतीय क्रिकेट को सेवाएं दे रहे हैं। टीम इंडिया के कोच चयन से जुड़े विवाद में रवि शास्त्री को 'मुंहतोड़' जवाब देकर सौरव ने अपने तेवर दिखा दिए हैं। लगता है कि इस 'नई पारी में भी सौरव गांगुली के आक्रामक तेवर जारी रहेंगे...।
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