भारतीय क्रिकेट एक और बड़ी अंगड़ाई लेने के मुहाने पर खड़ी है! आज बस एक कदम और! दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ फाइनल में खिताबी जीत आई, तो 42 साल पहले जैसी 'क्रांति' भले न आए, लेकिन इसका असर बहुत ही गहरा पड़ने जा रहा है. बड़ी हो रही बच्चियों और किशोरियों पर! इनके अभिवावकों और परिवार की मनोदशा पर, समाज की सोच पर! यूं तो इसके लक्षण पिछले कुछ हालिया सालों में देखने को मिले हैं, लेकिन गुजरे वीरवार को जिस अंदाज में जेमिमा रॉड्रिगेज ने भारत माता के गले में विजयश्री का हार डाला, उससे एक ही दिन में भारत में वीमेंस क्रिकेट की लोकप्रियता और इसका असर अगले स्तर पर पहुंच गया. इस करिश्माई जीत का असर इतना प्रचंड रहा कि आज के पलों में, चर्चाओं में बच्चियां, किशोरी, महिलाएं और पुरुषों सहित हर वर्ग रोहित शर्मा और विराट से इतर हरमनप्रीत और जेमिमा रॉड्रिगेज की बातें कर रहा है. यह खेल में एक और वैकल्पिक दिशा के और बड़ा आकार लेने जैसा है.

इसमें एक और सुनहरा अध्याय और जुड़ना भर बाकी है, कौन जानता है कि बड़ी हो रही बच्चियां माता-पिता से गुड़िया-गुड्डों की जगह बैट-बॉल की जिद करने लगें! बड़ी तादाद में बॉलीवुड अभिनेत्रियों के पोस्टर हरमनप्रीत कौर, जेमिमा रॉड्रिगेज और रिचा घोष में न बदल जाएं! ठीक वैसे ही, जब 1983 विश्व कप कप खिताबी जीत के बाद हर दूसरे घर की दीवारों पर कपिल देव, सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ की तस्वीरें चस्पां हो गई थीं. ठीक वैसे ही, जब साल 2007 में टी20 विश्व कप और साल 2011 विश्व कप जीतने के बाद अगली पीढ़ी के मोबाइल के फोल्डरों और सोशल मीडिया प्रोफाइल में धोनी और युवराज सिंह की तस्वीरों ने ली थीं. अब जब टीम बड़े इतिहास के मुहाने पर खड़ी है, तो एक विजय रूपी 'ताबूत में आखिरी कील' के न जाने क्या-क्या असर देखने को मिलेंगे.
भारतीय क्रिकेट में करीब 42 साल पहले क्रांति आई थी. कपिल देव की कप्तानी में साल 1983 में भारत ने विश्व चैंपियन विंडीज को हराकर विश्व कप जीता, तो पूरे हिंदुस्तान के गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले, गांव-गांव में क्रिकेट ने किसी सुनामी से पैर पसार लिए. खाली खेत-खलिहान और देश भर के मैदान हाथ में बल्ला-बोल लिए बच्चों से भर गए! मानो देश में एक क्रांति सी आ गई! तब से लेकर अब तक पिछले 42 सालों की यात्रा में बहुत कुछ बदल चुका है. उदारीकरण, एसटीडी, इंटरनेट क्रांति, स्टार्ट-अप का तूफान, देश की राजनीति, AI.... और अब एक और तस्वीर का आयाम मुनाने पर खड़ा है! देश की वीमेंस क्रिकेट की तस्वीर! वक्त बदल चुका है, शहरों से मैदान गायब हो चुके हैं. मेट्रो की बात छोड़ दीजिए, टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में इन मैदानों की जगह फलती-फूलती अकादमियों ने ली है. और यह खिताबी जीत यहां भीड़ कई गुना ज्यादा बढ़ाने जा जा रही हैं. बस एक और विजय, फिर सबकुछ बदल जाएगा! लेकिन इस मुहाने तक पहुंचना बहुत ही दुर्गम यात्रा रही है!

विदेशी दौरों में प्रवासी भारतीयों के घर रुकना, निजी खर्च से यात्रा करना, कभी पूरी टीम के पास सिर्फ तीन बल्ले होना, ट्रेन के अनारक्षित डिब्बों में सफ करना, एक डोरमेट्री में 20 खिलाड़ियों का ठहरना, विश्व कप में पुरुष टीम के नामों के पीछे स्टिकर लगाकर उनकी किट पहनना, नाम मात्र की फीस होना, आदि. इन तमाम बातों से समझा जा सकता है कि महिला क्रिकेट किन 'दुर्गम रास्तों ' से निकलकर आज इतिहास रचने के मुकाम पर पहुंची है. कई पीढ़ियों के त्याग ने महिला खिलाड़ियों को आज उस मुकाम पर ला खड़ा किया है, जहां वे पहले से ही स्टार का दर्जा पा चुकी हैं, करोड़ों रुपये कमा रही हैं, लेकिन यह फाइनल से पहले तक भर की बात है. फाइनल जीतने दीजिए, फिर देखिए होता है क्या! जीत देखिए, जीत की धार देखिए! जोर से बोलिए, मिलकर बोलिए, आज बेटियों की जय हो !
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