
नई दिल्ली:
आज के दौर में जिस तरह से क्रिकेट का खेल, खेल कम तमाशा ज्यादा होता जा रहा है, उस समय में भी जब आपको क्रिकेट का रोमांच महसूस होने लगे तो यकीन मानिए ये एहसास मजबूत होता है कि असली क्रिकेट के रोमांच का दूसरा विकल्प नहीं हो सकता।
अब इंग्लैंड और न्यूज़लैंड के बीच पांच मैचों की वनडे सीरीज़ को लीजिए। इसमें एक ओर मेजबान इंग्लैंड की टीम थी, जिसके सामने वर्ल्ड कप के पहले ही दौर में बाहर हो जाने का अपमान से उबरने की चुनौती थी तो दूसरी ओर पिछले कुछ महीनों में जोरदार क्रिकेट का प्रदर्शन कर रही कीवी टीम के युवा धुरंधर थे।
इंग्लैंड की टीम के मनोबल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि टीम इससे पहले अपने घरेलू मैदान पर लगातार पांच वनडे सीरीज़ जीतने में नाकाम रही थी। पिछले साल भारत और श्रीलंका के हाथों जबकि 2013 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराया था। 2012 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज ड्रॉ रही थी।
लेकिन इंग्लैंड की युवा टीम ने इस सीरीज़ के पांचों मैच में जोरदार प्रदर्शन करने के साथ ये सीरीज 3-2 से जीत ली।
ओइन मोर्गन की कप्तानी में बदली हुई इस टीम ने पहले ही मैच में 408 रन ठोककर अपने इरादे जतला दिए, कि ये इंग्लैंड की नई टीम है। इतना ही नहीं सीरीज के पहले चार मैच में इंग्लैंड ने 300 से ज्यादा रन का स्कोर बनाकर ये दिखाया कि पहले वनडे में 408 रन कोई तुक्के में नहीं बने थे। सीरीज के चौथे मैच में तो जीत के लिए दूसरी पारी में टीम ने 350 रन बना दिए।
टीम में इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह खुद कप्तान ओइन मोर्गन ही रहे। उन्होंने पांच मैचों में एक शतक और तीन शतक की मदद से 322 रन ठोके। उन्हें युवा आलराउंडर जोए रूट का बखूबी साथ मिला, जिन्होंने दो शतक और एक अर्धशतक जमाते हुए टूर्नामेंट में 274 रन बनाए।
इन दोनों के अलावा सलामी बल्लेबाज़ एलेक्स हेल्स और विकेटकीपर बल्लेबाज़ जोस बटलर ने इंग्लैंड की बल्लेबाज़ी को मजबूती दी। वहीं बेन स्टोक्स और आदिल राशिद के तौर पर टीम में दो उपयोगी ऑलराउंडर ने अपनी जगह मज़बूत की। स्टोक्स ने सीरीज में 142 रन बनाने के साथ इंग्लैंड की ओर से सबसे ज्यादा 9 विकेट चटकाए। जबकि आदिल राशिद के रुप में टीम को भरोसेमंद ऑलराउंडर मिला है।
युवा खिलाड़ियों के बीच इस वक्त अपनी काबिलियत दर्शाने की भूख ऐसी है कि जॉनी बैरिस्टो को एक मैच में मौका मिला और वे सुपरस्टार बन गए। सीरीज़ के दौरान ये भी साफ दिखा कि टीम किसी सुपर स्टार पर निर्भर नहीं है, बल्कि जरूरत के मुताबिक टीम की जिम्मेदारी संभालने के लिए खिलाड़ी सामने आ जाते हैं।
इस पूरे टूर्नामेंट में इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों ने पहले 15 ओवरों में तेजी से रन बटोरे और बाद में रन गति को कायम रखा। यही वजह है कि वनडे क्रिकेट इतिहास में पहली बार किसी सीरीज़ के दौरान प्रति ओवर रनों का औसत 7 के पार पहुंच गया।
ये वनडे में इंग्लिश क्रिकेट का नया अंदाज है, जो बताता है कि टीम अब दुनिया की दूसरी टीमों के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार है. दूसरी ओर हार के बावजूद कीवी टीम ने इस सीरीज़ में जोरदार प्रदर्शन किया. लेकिन सीरीज़ के असली हीरो इंग्लैंड के युवा धुरंधर ही साबित हुए, जो अपने कंधों पर बड़ी चुनौती संभालने को तैयार दिख रहे हैं।
अब इंग्लैंड और न्यूज़लैंड के बीच पांच मैचों की वनडे सीरीज़ को लीजिए। इसमें एक ओर मेजबान इंग्लैंड की टीम थी, जिसके सामने वर्ल्ड कप के पहले ही दौर में बाहर हो जाने का अपमान से उबरने की चुनौती थी तो दूसरी ओर पिछले कुछ महीनों में जोरदार क्रिकेट का प्रदर्शन कर रही कीवी टीम के युवा धुरंधर थे।
इंग्लैंड की टीम के मनोबल का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि टीम इससे पहले अपने घरेलू मैदान पर लगातार पांच वनडे सीरीज़ जीतने में नाकाम रही थी। पिछले साल भारत और श्रीलंका के हाथों जबकि 2013 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने इंग्लैंड को इंग्लैंड में हराया था। 2012 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज ड्रॉ रही थी।
लेकिन इंग्लैंड की युवा टीम ने इस सीरीज़ के पांचों मैच में जोरदार प्रदर्शन करने के साथ ये सीरीज 3-2 से जीत ली।
ओइन मोर्गन की कप्तानी में बदली हुई इस टीम ने पहले ही मैच में 408 रन ठोककर अपने इरादे जतला दिए, कि ये इंग्लैंड की नई टीम है। इतना ही नहीं सीरीज के पहले चार मैच में इंग्लैंड ने 300 से ज्यादा रन का स्कोर बनाकर ये दिखाया कि पहले वनडे में 408 रन कोई तुक्के में नहीं बने थे। सीरीज के चौथे मैच में तो जीत के लिए दूसरी पारी में टीम ने 350 रन बना दिए।
टीम में इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह खुद कप्तान ओइन मोर्गन ही रहे। उन्होंने पांच मैचों में एक शतक और तीन शतक की मदद से 322 रन ठोके। उन्हें युवा आलराउंडर जोए रूट का बखूबी साथ मिला, जिन्होंने दो शतक और एक अर्धशतक जमाते हुए टूर्नामेंट में 274 रन बनाए।
इन दोनों के अलावा सलामी बल्लेबाज़ एलेक्स हेल्स और विकेटकीपर बल्लेबाज़ जोस बटलर ने इंग्लैंड की बल्लेबाज़ी को मजबूती दी। वहीं बेन स्टोक्स और आदिल राशिद के तौर पर टीम में दो उपयोगी ऑलराउंडर ने अपनी जगह मज़बूत की। स्टोक्स ने सीरीज में 142 रन बनाने के साथ इंग्लैंड की ओर से सबसे ज्यादा 9 विकेट चटकाए। जबकि आदिल राशिद के रुप में टीम को भरोसेमंद ऑलराउंडर मिला है।
युवा खिलाड़ियों के बीच इस वक्त अपनी काबिलियत दर्शाने की भूख ऐसी है कि जॉनी बैरिस्टो को एक मैच में मौका मिला और वे सुपरस्टार बन गए। सीरीज़ के दौरान ये भी साफ दिखा कि टीम किसी सुपर स्टार पर निर्भर नहीं है, बल्कि जरूरत के मुताबिक टीम की जिम्मेदारी संभालने के लिए खिलाड़ी सामने आ जाते हैं।
इस पूरे टूर्नामेंट में इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों ने पहले 15 ओवरों में तेजी से रन बटोरे और बाद में रन गति को कायम रखा। यही वजह है कि वनडे क्रिकेट इतिहास में पहली बार किसी सीरीज़ के दौरान प्रति ओवर रनों का औसत 7 के पार पहुंच गया।
ये वनडे में इंग्लिश क्रिकेट का नया अंदाज है, जो बताता है कि टीम अब दुनिया की दूसरी टीमों के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार है. दूसरी ओर हार के बावजूद कीवी टीम ने इस सीरीज़ में जोरदार प्रदर्शन किया. लेकिन सीरीज़ के असली हीरो इंग्लैंड के युवा धुरंधर ही साबित हुए, जो अपने कंधों पर बड़ी चुनौती संभालने को तैयार दिख रहे हैं।
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