यह ख़बर 10 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

तीसरा वन-डे : मनोबल बनाए रखने के लिए जीतना चाहेगा भारत

ट्रॉफी के साथ दोनों टीमों के कप्तान (फाइल चित्र)

सेंचुरियन:

लगातार दो शर्मनाक हार के साथ वन-डे शृंखला गंवाने वाली भारतीय टीम दो टेस्ट मैचों की शृंखला से पहले अपना खोया आत्मविश्वास लौटाने के लिए बुधवार को तीसरा और आखिरी वन-डे मैच जीतने के इरादे से मैदान में उतरेगी।

दरअसल, पहले दोनों मैचों की हार ने दक्षिण अफ्रीका की तेज और उछालभरी पिचों पर भारत के बल्लेबाजी कौशल की कलई खोल दी है। वांडरर्स पर पहले वन-डे में भारत को 141 रनों से पराजय झेलनी पड़ी थी, जबकि किंग्समीड में दूसरे मैच में उसने 136 रन से हार झेली। भारत की गेंदबाजी पर सवालों के साथ शुरू हुई शृंखला में दो मैचों के बाद युवा बल्लेबाजी क्रम पर भी अंगुलियां उठने लगीं।

पहले वन-डे में गेंदबाजों के खराब प्रदर्शन से बल्लेबाजों पर दबाव बना था, लेकिन दूसरे वन-डे में ये बहाने नहीं चल सके, क्योंकि अपेक्षाकृत धीमी पिच पर भी नतीजा समान रहा। दोनों वन-डे मैचों में डेल स्टेन का शुरुआती स्पैल भारत के लिए कहर साबित हुआ और उनके पांच ओवर पूरे होते-होते मैच का नतीजा दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हो गया।

दिलचस्प तथ्य यह है कि इस शृंखला से पहले भारत के शीर्षक्रम के सभी बल्लेबाज फॉर्म में थे और इस साल 1,000 से भी अधिक वन-डे रन बना चुके थे। चाहे वह रोहित शर्मा हों, शिखर धवन हों या विराट कोहली हों, लेकिन दो ही मैचों के बाद स्पष्ट हो गया कि रन बनाने का जिम्मा अब उन्हीं पर होगा, और आखिरी ओवरों में हालात के अनुसार महेंद्र सिंह धोनी की बल्लेबाजी भी अहम होगी।

भारतीय टीम पर तीसरे मैच में काफी दबाव होगा, क्योंकि एक तरफ तो उनका सामना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तेज गेंदबाज से है और दूसरी ओर भारत के मध्यक्रम के बल्लेबाज चल नहीं पा रहे हैं। अभी तक वे नाकाम रहे हैं। कप्तान धोनी ने पिछली हार के बाद यह स्वीकार भी किया था। सुरेश रैना और युवराज सिंह का खराब फॉर्म भी चिंता का सबब बना हुआ है।

इस शृंखला से ठीक पहले भी दोनों का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था। ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज के खिलाफ भारत में नौ वन-डे मैचों में उनका निजी औसत 20 के करीब रहा था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शृंखला में टीम प्रबंधन ने चौथे नंबर पर बल्लेबाजी क्रम में प्रयोग किया। बल्लेबाजी क्रम बदलने से युवराज के फॉर्म पर असर पड़ा, हालांकि खराब प्रदर्शन के लिए इसे बहाना नहीं माना जा सकता।

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वेस्ट इंडीज के खिलाफ फिर चौथे नंबर पर उतरे युवराज सिंह ने कानपुर मैच में 55 रन की पारी खेली थी, लेकिन वांडरर्स पर पहले वन-डे में वह सिर्फ दो गेंद तक टिक सके। युवराज और रैना के पक्ष में यह दलील दी जा सकती है कि अनियमित स्पिन गेंदबाजों के तौर पर वे उपयोगी साबित होते हैं। दूसरे वन-डे में जब दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज सभी भारतीय गेंदबाजों की धुनाई कर रहे थे, तब रैना और विराट कोहली के नौ ओवर किफायती साबित हुए।