महेंद्र सिंह धोनी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
"गिरते हैं शह-सवार ही मैदान-ए-जंग में
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले"
शायद महेंद्र सिंह धोनी का ये ही फ़लसफ़ा रहा है। जिद्दी हैं। जोखिम लेने से भी नहीं डरते। और सबसे बड़ी बात खुद पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं। "सिक्स्थ सेंस" और "मिडास टच" ने उन्हें भारत का सबसे कामयाब कप्तान बनाया है। इंदौर वनडे में अमित मिश्रा की जगह अक्षर पटेल को मौक़ा दिया। मिश्रा को नहीं खेलाने के कारण धोनी पहले भी आलोचना झेल रहे हैं। पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर तो गुजरात के 21 साल के स्लो लेफ़्ट आर्म ऑर्थोडॉक्स गेंदबाज़ को स्पिनर तक नहीं मानते। लेकिन सीरीज़ में 0-1 से पिछड़ने के बाद भी उन्होंने अक्षर पटेल को प्लेइंग इलेवन में शामिल किया। पटेल ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 39 रन देकर 3 शिकार बनाए। तीनों विकेट बेहद अहम और बड़े बल्लेबाज़ों के थे - हाशिम आमला, फ़ैफ़ डू प्लेसी और जेपी ड्यूमिनी।
2007 में टी-20 वर्ल्ड कप
लीक से हटकर फ़ैसले लेने की धोनी की आदत पहले 2007 वर्ल्ड टी-20 में ही दीख गई थी। कप्तान बनने के बाद ये महेंद्र सिंह धोनी का पहला ही टूर्नामेंट था। लेकिन तब भी इस जोख़िम भरे फ़ैसले को लेने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हुई। फ़ाइनल के आख़िरी ओवर में पाकिस्तान को 13 रन बनाने थे। धोनी ने अनुभवी हरभजन सिंह और यूसुफ़ पठान की बजाए आखिरी ओवर एक ऐसे गेंदबाज़ को दे दिया जो पहला टूर्नामेंट खेल रहा था। हरियाणा के जोगिन्दर शर्मा। तीसरी ही गेंद पर जोगिन्दर ने मिसबाह-उल-हक को श्रीसंत के हाथों कैच करा दिया। इतिहास गवाह है। कामयाबी उन्हीं के कदम चूमती है जो साहसिक निर्णय लेते हैं। धोनी के एक फ़ैसले ने भारत को टी-20 का वर्ल्ड चैंपियन बना दिया।
2011 में वर्ल्ड कप
2011 में भारत 28 साल बाद दुबारा वर्ल्ड चैंपियन बना तो इसमें भी धोनी के लीक से हट कर हैरान करने वाले फ़ैसलों का अहम योगदान रहा।
धोनी ने वही किया जो उन्हें ठीक लगा। यूसुफ़ पठान और सुरेश रैना के बीच जब फैसले की बारी आई तो माही ने रिकॉर्ड्स की बजाए अपने आप पर भरोसा किया। क्वार्टरफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ और उसके बाद सेमीफ़ाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध भी सुरेश रैना ही खेले। नतीज़ा सबके सामने था।
नेहरा पर विश्वास
द. अफ्रीका के खिलाफ आशीष नेहरा का प्रदर्शन फीका रहा। लगा कि उनका करियर यहीं खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में धोनी ने फ़िर ज़ोख़िम लिया और आशीष नेहरा पर ही भरोसा किया। नेहरा ने कप्तान की उम्मीदें नहीं तोड़ीं। उनका बॉलिंग फ़िगर रहा 10 ओवर, शून्य मेडन, 33 रन और 2 विकेट।
युवराज से पहले आए धोनी
कप्तान का मास्टर स्ट्रोक 2011 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में इनफ़ॉर्म बल्लेबाज़ युवराज सिंह से पहले बल्लेबाज़ी करने आना। हालांकि धोनी ने इसका सेहरा कोच गैरी कर्स्टन को दिया। लेकिन धोनी के इस फ़ैसले और उनके आखिरी गेंद पर छक्के से भारत वर्ल्ड चैंपियन बन गया।
चेन्नई को जिताया आईपीएल, दो बार
चेन्नई सुपरकिंग्स अगर लगातार दो साल आईपीएल चैंपियन बनी तो उसमें भी धोनी की कप्तानी और उनके अहम फ़ैसलों का सबसे बड़ा योगदान है। आईपीएल 2011 में धोनी ने 5 बार अश्विन के हाथों में नई गेंद दी और लगभह हर बार अश्विन कप्तान के भरोसे पर खरे उतरे। पूरे टूर्नामेंट में अश्विन को ख़ुद पर यकीन हो ना हो लेकिन धोनी का उनपर पूरा यकीन था।
महेंद्र सिंह धोनी की सबसे बड़ी बात है दबाव और विपरीत हालात में भी खुद को शांत और संयमित रखना। कैप्टन कूल नाम उन पर सटीक बैठता है।
कहते हैं कि मिडास की तरह माही जिस चीज को छू लें वो सोना हो जाता है। उनकी किस्मत पर रश्क करने वालों को ये भी जान लेना चाहिए कि किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जिसमें हौसला और हिम्मत हो। धोनी जब भी अलविदा कहें शायद दीवार का ये डॉयलॉग कहते हुए जाएं -
मेरे पीछे तो सिर्फ़ मेरी किस्मत होगी डावर साहब।
वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चले"
शायद महेंद्र सिंह धोनी का ये ही फ़लसफ़ा रहा है। जिद्दी हैं। जोखिम लेने से भी नहीं डरते। और सबसे बड़ी बात खुद पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं। "सिक्स्थ सेंस" और "मिडास टच" ने उन्हें भारत का सबसे कामयाब कप्तान बनाया है। इंदौर वनडे में अमित मिश्रा की जगह अक्षर पटेल को मौक़ा दिया। मिश्रा को नहीं खेलाने के कारण धोनी पहले भी आलोचना झेल रहे हैं। पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर तो गुजरात के 21 साल के स्लो लेफ़्ट आर्म ऑर्थोडॉक्स गेंदबाज़ को स्पिनर तक नहीं मानते। लेकिन सीरीज़ में 0-1 से पिछड़ने के बाद भी उन्होंने अक्षर पटेल को प्लेइंग इलेवन में शामिल किया। पटेल ने अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 39 रन देकर 3 शिकार बनाए। तीनों विकेट बेहद अहम और बड़े बल्लेबाज़ों के थे - हाशिम आमला, फ़ैफ़ डू प्लेसी और जेपी ड्यूमिनी।
2007 में टी-20 वर्ल्ड कप
लीक से हटकर फ़ैसले लेने की धोनी की आदत पहले 2007 वर्ल्ड टी-20 में ही दीख गई थी। कप्तान बनने के बाद ये महेंद्र सिंह धोनी का पहला ही टूर्नामेंट था। लेकिन तब भी इस जोख़िम भरे फ़ैसले को लेने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हुई। फ़ाइनल के आख़िरी ओवर में पाकिस्तान को 13 रन बनाने थे। धोनी ने अनुभवी हरभजन सिंह और यूसुफ़ पठान की बजाए आखिरी ओवर एक ऐसे गेंदबाज़ को दे दिया जो पहला टूर्नामेंट खेल रहा था। हरियाणा के जोगिन्दर शर्मा। तीसरी ही गेंद पर जोगिन्दर ने मिसबाह-उल-हक को श्रीसंत के हाथों कैच करा दिया। इतिहास गवाह है। कामयाबी उन्हीं के कदम चूमती है जो साहसिक निर्णय लेते हैं। धोनी के एक फ़ैसले ने भारत को टी-20 का वर्ल्ड चैंपियन बना दिया।
2011 में वर्ल्ड कप
2011 में भारत 28 साल बाद दुबारा वर्ल्ड चैंपियन बना तो इसमें भी धोनी के लीक से हट कर हैरान करने वाले फ़ैसलों का अहम योगदान रहा।
धोनी ने वही किया जो उन्हें ठीक लगा। यूसुफ़ पठान और सुरेश रैना के बीच जब फैसले की बारी आई तो माही ने रिकॉर्ड्स की बजाए अपने आप पर भरोसा किया। क्वार्टरफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ और उसके बाद सेमीफ़ाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध भी सुरेश रैना ही खेले। नतीज़ा सबके सामने था।
नेहरा पर विश्वास
द. अफ्रीका के खिलाफ आशीष नेहरा का प्रदर्शन फीका रहा। लगा कि उनका करियर यहीं खत्म हो जाना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में धोनी ने फ़िर ज़ोख़िम लिया और आशीष नेहरा पर ही भरोसा किया। नेहरा ने कप्तान की उम्मीदें नहीं तोड़ीं। उनका बॉलिंग फ़िगर रहा 10 ओवर, शून्य मेडन, 33 रन और 2 विकेट।
युवराज से पहले आए धोनी
कप्तान का मास्टर स्ट्रोक 2011 वर्ल्ड कप फ़ाइनल में इनफ़ॉर्म बल्लेबाज़ युवराज सिंह से पहले बल्लेबाज़ी करने आना। हालांकि धोनी ने इसका सेहरा कोच गैरी कर्स्टन को दिया। लेकिन धोनी के इस फ़ैसले और उनके आखिरी गेंद पर छक्के से भारत वर्ल्ड चैंपियन बन गया।
चेन्नई को जिताया आईपीएल, दो बार
चेन्नई सुपरकिंग्स अगर लगातार दो साल आईपीएल चैंपियन बनी तो उसमें भी धोनी की कप्तानी और उनके अहम फ़ैसलों का सबसे बड़ा योगदान है। आईपीएल 2011 में धोनी ने 5 बार अश्विन के हाथों में नई गेंद दी और लगभह हर बार अश्विन कप्तान के भरोसे पर खरे उतरे। पूरे टूर्नामेंट में अश्विन को ख़ुद पर यकीन हो ना हो लेकिन धोनी का उनपर पूरा यकीन था।
महेंद्र सिंह धोनी की सबसे बड़ी बात है दबाव और विपरीत हालात में भी खुद को शांत और संयमित रखना। कैप्टन कूल नाम उन पर सटीक बैठता है।
कहते हैं कि मिडास की तरह माही जिस चीज को छू लें वो सोना हो जाता है। उनकी किस्मत पर रश्क करने वालों को ये भी जान लेना चाहिए कि किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जिसमें हौसला और हिम्मत हो। धोनी जब भी अलविदा कहें शायद दीवार का ये डॉयलॉग कहते हुए जाएं -
मेरे पीछे तो सिर्फ़ मेरी किस्मत होगी डावर साहब।
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