
लगभग दो महीने से दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन जारी है. लोगों का प्रदर्शन में आना जारी है. वहीं प्रदर्शन स्थल पर मौजूद शाहीन बाग़ बस स्टैंड में चल रही लाइब्रेरी आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. 17 जनवरी 2020 को रोहित वेमुला की चौथी बरसी पर इस लाइब्रेरी का नाम फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले रखा गया. लाइब्रेरी में लोग आकर घंटों बैठकर किताबों का अध्ययन करते हैं. ये सिलसिला सुबह से लेकर देर रात चलता है. इस प्रदर्शन के समाप्त होने के बाद शाहीन बाग़ में इस लाइब्रेरी को स्थाई करने की योजना है. इसके लिए सहयोगियों की तलाश है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास्टर ऑफ एजुकेशन के छात्र मोहम्मद नूर आलम, एएमयू के मोहम्मद आसिफ, जामिया मिललिया इसलामिया के छात्र सत्य प्रकाश, अंबेडकर यूनिवर्सिटी के मोहम्मद काशिफ ने अपने और साथियों के साथ मिलकर 50-60 किताबों से यह लाइब्रेरी क़ायम की. इन लोगों ने लाइब्रेरी क़ायम तो कर ली लेकिन उसको धीरे-धीरे आगे बढ़ाने में रोज़ाना के खर्चों में कटौती करनी शुरू कर दी, जिससे किताबों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई. वहीं फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर फातिमा शेख सावित्रीबाई फुले लाइब्रेरी का एक पेज भी शुरू किया. वहां अपील की गई कि लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में पुस्तकें दान करें ताकि किताबों से दूर होते लोग करीब आ सकें. उनकी पहल को देश ही नहीं विदेशों से भी सराहा जाने लगा.
मोहम्मद नूर आलम कहते हैं कि कुछ लोग लगातार एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन पर हमला कर रहे हैं. लाइब्रेरी को तोड़ा जा रहा है. उनकी विचारधारा को तो मैं नहीं जानता लेकिन कहीं ना कहीं उनको यह डर है कि एजुकेशन के जरिए वो समानता की बात करने लगेंगे. उनके इस विचार से लड़ने के साथ लाइब्रेरी कायम करके किताब और जनता के बीच समन्वय क़ायम करने की कोशिश की गई. उनका कहना है कि पुस्तकालय मैं अलग-अलग प्रकार की किताबें इस लाइब्रेरी में मिलती हैं. किताबों के प्रति बढ़ते लगाव को देखते हुए हम लोगों की शाहीन बाग़ बस स्टैंड में चल रहे लाइब्रेरी को प्रदर्शन समाप्त होने के बाद इलाक़े में शिफ़्ट करने कि योजना है.
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