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This Article is From Dec 05, 2015

लखन भैया एनकाउंटर : क्या आजीवन कारावास की सजा रुक भी सकती है?

लखन भैया एनकाउंटर : क्या आजीवन कारावास की सजा रुक भी सकती है?
प्रतीकात्मक फोटो
मुंबई: मुंबई के लखन भैया एनकाउंटर मामले में दोषी पुलिस वाले जेल से 6 महीने के लिए रिहा हुए हैं। इसके बाद से यह सवाल उठा रहा है कि, सजायाफ्ता गुनाहगार की सजा बीच में ही कैसे रुक सकती है?

मुख्य आरोपी प्रदीप शर्मा रिहा
मुंबई में 11 नवम्बर 2006 में लखन भैया की एनकाउंटर में मौत हुई। इस मौत को हत्या बताकर परिवार ने कानून की लड़ाई लड़ी। इस पर 12 जुलाई 2013 को 13 पुलिस वालों को दोषी करार दिया गया। फैसले की अहम बात यह रही कि मामले के मुख्य आरोपी और पूर्व एनकाउंटर विशेषज्ञ प्रदीप शर्मा रिहा हुए।

इसके बाद से ही दोषी साबित हुए पुलिस वालों ने अपने इंसाफ की लड़ाई लड़ने के लिए एक तरफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो दूसरी तरफ विभाग ने सरकार का। आपराधिक कानून संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 के तहत राज्य के मुख्यमंत्री को यह विशेषाधिकार होता है कि वे सजायाफ्ता मुजरिम की सजा को स्थगित करने की विभाग की सिफारिश मंजूर कर सकते हैं।

पुलिस और जेल प्रशासन की राय पर सरकार का फैसला
लखनभैया के मामले में दोषी करार दिए गए पुलिस वालों ने इसी का आधार लेते हुए सरकार के पास अपनी अर्जी की। इस पर राज्य सरकार ने 6 महीने तक गहन बहस की। राज्य गृहविभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी डॉ विजय सतबीर सिंघ ने NDTV को बताया कि सजा सुनाने वाले जज के अलावा मुंबई के पुलिस कमिश्नर और जेल प्रशासन के एडीजी की इस अर्जी पर राय ली गई। उनसे सकारात्मक टिप्पणी आने के बाद सजा स्थगित करने का फैसला लिया गया।

मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट बनी आधार
सरकार को सजा स्थगित करने के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की उस रिपोर्ट की मदद मिली जिसमें लखन भैया एनकाउंटर को असली बताया गया है। सजा स्थगित किए जाने के बाद पुलिस वाले 6 महीने के लिए जेल से रिहा हुए हैं। इस दौरान उन्हें पुलिस स्टेशन में हाजिरी लगानी होगी। इस के अलावा उनके बर्ताव पर सरकार कड़ी नजर रखेगी।

जब आदेश देने वाला रिहा, तो उसके मातहत क्यों जेल में
इस बीच पूर्व आईपीएस डॉ वाईपी सिंह ने NDTV इंडिया से कहा है कि फैसला एक लिहाज से सही है और एक लिहाज से गलत भी। जब इस मामले के मुख्य अभियुक्त को रिहा किया गया तो उसका आदेश मानने वाले पुलिसकर्मी जेल में क्यों रहें? इससे पुलिस बल का मनोबल बढ़ेगा। लेकिन दूसरी तरफ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि कहीं यह परम्परा न कायम हो जाए।

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