दिल्ली के कुतुबगढ़ गांव में कोरोना से दर्जनों मौतें, चार साल पहले बने अस्पताल में स्टाफ नहीं

बंद पड़े अस्पताल में 50 अस्थाई कोविड बेड का इंतज़ाम हो जाता तो कोरोना से मरने वाले दर्जन भर से ज्यादा लोग बचाए जा सकते थे

दिल्ली के कुतुबगढ़ गांव में कोरोना से दर्जनों मौतें, चार साल पहले बने अस्पताल में स्टाफ नहीं

प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस (Coronavirus) संक्रमण के चलते अस्थाई कोविड अस्पताल टेंट और बैंक्वेट हॉल में बनाए जा रहे हैं, लेकिन दिल्ली (Delhi) के कुतुबगढ़ (Qutubgarh) गांव में चार साल पहले बनकर तैयार अस्पताल आज तक नहीं चल सका, जबकि कुतुबगढ़ गांव में कोरोना संक्रमण से दर्जन भर से ज्यादा मौतें हुई हैं. दिल्ली के कुतुबगढ़ गांव की आलीशान डिस्पेंसरी सफेद हाथी साबित हो रही है. करीब 15 करोड़ की लागत से इसकी इमारत बनाई गई थी. चार साल पहले इस डिस्पेंसरी का उद्घाटन भी हुआ. उदघाटन के दो शिलापट्टों पर पार्षद से लेकर इंजीनियर तक के नाम भी लिखे गए लेकिन डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ आज तक नहीं पहुंचा.

कुतुबगढ़ गांव के बुजुर्ग पदम सिंह कोरोना संक्रमण में अपने दो करीबियों को खो चुके है. वे कहते हैं कि अगर इस बंद पड़े अस्पताल में 50 अस्थाई कोविड बेड का इंतज़ाम हो जाता तो कोरोना से मरने वाले दर्जन भर से ज्यादा लोग बचाए जा सकते थे. पदम सिंह ने कहा कि ''मेरे गांव में कोरोना से 25 मौतें हुईं. लोगों को 15 से 20 किलोमीटर दूर नजदीकी सरकारी अस्पताल में ले गए लेकिन बेड तक नहीं मिला. यह अस्पताल अगर चलता तो आसपास के गांव वालों की जान बच जाती.''

चार मंजिल की इस इमारत में पॉली क्लिनिक खोला जाना था और डॉक्टर, नर्सिंग स्टॉफ के रहने के लिए फ्लैट भी बनाए गए थे. लेकिन अब एक फ्लैट में मलेरिया का दफ्तर खुला है. कर दाताओं के पैसों के दुरुपयोग की कहानी ये अस्पताल कह रहा है. अस्पताल के पीछ बनी एक इमारत डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के रहने के लिए बनाई गई थी लेकिन सब बंद पड़ा है. अब दो महीना पहले जब हो हल्ला मचा तो इस अस्पताल के एक फ्लैट के कमरे में सर्दी, खांसी, बुखार की दवा दी जाने लगी.

यह कहानी अकेले कुतुबगढ़ गांव की नहीं है, दिल्ली के कई गांवों की स्वास्थ्य सेवाएं चरमराई हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में एक हजार लोगों पर केवल दो बेड हैं. बाहरी दिल्ली के मोलरबंद और जटिकरा गांव में 100 बेड का अस्पताल बनना था लेकिन आज तक नहीं बन पाया.

सेंटर फॉर यूथ कल्चर लॉ एंड एनवायरनमेंट के सह संस्थापक पारस त्यागी ने कहा कि ''सन 2010 में दिल्ली देहात में अस्पताल बनना था, पास भी कर दिया था लेकिन आज तक नहीं बना.''

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कोरोना वायरस संक्रमण में जब आम आदमी पैसे की वजह से प्राइवेट अस्पताल में भर्ती न हो सका और सरकारी अस्पताल में बेड न मिल पा रहे हों तो आप समझ सकते हैं कि इस महाामारी में आम आदमी पर क्या बीती होगी.