मनीष शर्मा की नजर से : बिहार में किसकी सरकार ?

मनीष शर्मा की नजर से : बिहार में किसकी सरकार ?

प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली:

दिवाली से ठीक तीन दिन पहले 8 नवंबर को  बिहार को उसका मुख्यमंत्री मिल जाएगा। चुनाव से पहले कई गठबंधन बन चुके हैं। महागठबंधन, एनडीए, समाजवादी पार्टी का तीसरा मोर्चा, लेफ्ट की 6 पार्टियों के बीच मुकाबला चल रहा है। बिहार की जातीय राजनीति में धर्म का तड़का लेकर असद्दोदीन ओवैसी भी पहुंच गए हैं।

जानकारों का मानना है कि मुकाबला सिर्फ महागठबंधन और एनडीए के बीच है और अगर ज्यादा विस्तार से बात करें तो चुनाव में सिर्फ दो ही प्रमुख पार्टी हैं जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी। बाकी पार्टियां वोट काटने का काम करेंगी।

महागठबंधन :
इसमें तीन पार्टियां हैं - जदयू, राजद और कांग्रेस। जदयू और राजद 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं और कांग्रेस को 41 सीटें मिली हैं।

पक्ष में हालात :
1.  नीतीश कुमार की लोकप्रियता अभी भी बरकरार।
2. नीतीश कुमार की स्वच्छ, सुशासन और विकास पुरुष की छवि।  
3. मौजूदा सरकार के खिलाफ लहर नहीं।
4. नीतीश महिला वोटरों की पहली पसंद।
5. अति पिछड़े , महादलितों, मुसलमानों के उत्थान के लिए कई कदम उठाए।

कमजोरियां :
1. नीतीश का लालू यादव से हाथ मिलाना उनके समर्थकों को रास नहीं आ रहा है । 2005 में लालू विरोधी वोट के कारण ही नीतीश सत्ता में आए थे।
2. लालू यादव के परिवारवाद के कारण बड़े यादव नेताओं ने राष्ट्रीय जनता दल छोड़ दिया है। या तो वे एनडीए में शामिल हो गए हैं या फिर अपनी पार्टी बना ली है। यह नेता भी यादव वोट बैंक में सेंध मारकर लालू यादव को नुकसान पहुंचाएंगे, जिससे लालू यादव की स्थिति इस चुनाव में कमजोर होगी।
3. पिछले कई चुनावों में राजद का प्रदर्शन गिरता जा रहा है। 2010 के विधानसभा में राजद का प्रदर्शन सबसे बुरा रहा। पार्टी सिर्फ 22 सीटें ही जीत पाई और राबड़ी देवी को दोनों सीटें राघोपुर और सोनपुर गवांनी पड़ीं। 2014 के लोक सभा चुनावों में भी राबड़ी देवी और मीसा भारती को मुंह की खानी पड़ी।
4. नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव से यादवों में नाराजगी है। अधिकांश यादव लालू के कुशासन के साथ उनके समुदाय को जोड़ने का जिम्मेदार नीतीश कुमार को मानते हैं।  
5. राज्य में पूरी तरह समाप्त हो चुकी कांग्रेस को 41 सीटों का तोहफा देना एनडीए को फायदा पहुंचा सकता है।
6. कम सीटों पर चुनाव लड़ना भी नीतीश को भारी पड़ सकता है। अगर जदयू  160 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती तो एनडीए के लिए मुश्किलें बढ़ जातीं।

एनडीए :
इसमें चार पार्टियां हैं - बीजेपी, रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा। बीजेपी 160 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, लोक जनशक्ति पार्टी को 40 सीटें मिली हैं। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी 23 पर और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।

पक्ष में हालात -
1. मोदी की लोकप्रियता का फायदा मिल सकता है।
2.  एनडीए में समाज के सभी वर्गों के नेताओं को प्रमुख स्थान मिला है। अश्विनी चौबे, मंगल पांडे (दोनों ब्राह्मण), गिरिराज सिंह और सीपी ठाकुर (दोनों भूमिहार), रवि शंकर प्रसाद (कायस्थ), राधा मोहन सिंह, राजीव प्रताप रूडी (राजपूत), नंद किशोर यादव, राम कृपाल यादव, भूपेंद्र यादव (यादव), रामविलास पासवान (दलित), उपेंद्र कुशवाहा (ओबीसी), जीतन राम मांझी (महादलित) और शाहनवाज हुसैन (मुस्लिम)।
3. एनडीए को अब सवर्ण जाति के साथ-साथ दलित,महादलित और ओबीसी के वोट मिल सकते हैं।
4. ओवैसी के आने से सीमांचल के इलाकों में ध्रुवीकरण हो सकता है। महागठबंधन के मुस्लिम वोट कट सकते हैं, जिसका फायदा एनडीए को होगा।
5. एनडीए के खिलाफ कई पार्टियों ने अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं जो महागठबंधन के वोट काटने का काम करेंगे।

कमजोरियां -
1. नीतीश के मुकाबले का कोई चेहरा नहीं है।
2. बीजेपी के अंदर ही काफी गुट हैं जिनके चलते बीजेपी होने वाले मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है।
3. बीजेपी के नेताओ ने घोषणा की है कि उनका मुख्यमंत्री सवर्ण जाति से नहीं होगा जबकि सबसे ज्यादा टिकट सवर्ण उम्मीदवारों को दिए हैं। इससे  सवर्ण जातियों के लोग नाराज हो सकते हैं।
4. मोहन भागवत के आरक्षण सम्बंधित  बयान को भले ही बीजेपी ने नकार दिया हो लेकिन लालू यादव चुनाव में इसे भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। इसका नुकसान एनडीए को हो सकता है।
5. देश में बढ़ रही महंगाई का नकारात्मक असर बिहार के चुनाव में बीजेपी को झेलना पड़ सकता है।

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कौन सा गठबंधन सरकार बनाएगा यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन हवा एनडीए के पक्ष में बहती जरूर दिख रही है। अगर एनडीए बिहार में सरकार बनाती है तो उसका श्रेय नीतीश कुमार द्वारा लिए गए निर्णयों को जा सकता है।