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रक्षाबंधन के त्‍योहार पर बाजारों में रिकॉर्ड बिक्री, अकेले 12 हजार करोड़ की राखियां बिकने का अनुमान

रक्षाबंधन के मौके पर इस बार रिकॉर्ड बिक्री हुई है. CAIT ने बताया कि साल 2018 में 3 हजार करोड़ रुपये का राखी का व्यापार हुआ था, जो 6 सालों में 12 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है.

रक्षाबंधन के त्‍योहार पर बाजारों में रिकॉर्ड बिक्री, अकेले 12 हजार करोड़ की राखियां बिकने का अनुमान
नई दिल्‍ली:

देश भर के व्‍यापारियों ने रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2024) का त्‍योहार बड़े उत्‍साह से मनाया. इस बार का रक्षाबंधन का त्‍योहार व्‍यापारियों के लिए बेहद खास रहा और बिक्री पिछले सालों के मुकाबले रिकॉर्ड स्‍तर पर रही. पिछले कई वर्षों की तरह इस वर्ष भी चीन से न तो राखियां खरीदी गईं और न ही राखियों का सामान ही आयात किया गया. कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (Confederation of All India Traders) के अनुसार, देश भर के बाजारों में उपभोक्ता राखियों की खरीदी के लिए उमड़े, जिसके चलते पिछले सालों के राखी बिक्री के सभी रिकॉर्ड टूट गए.

CAIT ने बताया कि रक्षाबंधन के त्‍योहार के दौरान करीब 12 हजार करोड़ रुपये की राखियों के व्यापार का आकलन किया गया है. इसके साथ ही उपहार देने के लिए मिठाई, गिफ्ट आइटम्स और कपडे जैसे सामान आदि का कारोबार भी करीब 5 हजार करोड़ रुपये का आंका गया. 

ये राखियां विशेष आकर्षण का रहीं केंद्र 

CAIT के राष्ट्रीय महामंत्री और चांदनी चौक से सांसद प्रवीन खंडेलवाल को प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय संगठन की बहनों ने उनके निवास पर जाकर राखी बांधी. खंडेलवाल और कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीसी भरतिया ने बताया कि इस साल 'तिरंगा राखी' और 'वसुधैव कुटुंबकम' राखियां विशेष आकर्षण का केंद्र रहीं. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की कोसा राखी, कोलकाता  की जूट राखी, मुंबई की रेशम राखी, नागपुर की खादी राखी, जयपुर की सांगानेरी कला राखी, पुणे की बीज राखी, मध्य प्रदेश के सतना की ऊनी राखी, झारखण्ड में आदिवासी वस्तुओं से बनी बांस की राखी, असम की चाय पत्ती राखी, केरल की खजूर राखी, कानपुर की मोती राखी, वाराणसी की बनारसी कपड़ों की राखी, बिहार की मधुबनी और मैथिली कला राखी, पांडिचेरी की सॉफ्ट पत्थर की राखी, बेंगलुरु की फूल राखी आदि शामिल हैं. 

2018 के मुकाबले राखियों की चार गुना बिक्री 

उन्‍होंने बताया कि साल 2018 में 3 हजार करोड़ रुपये के राखी व्यापार से शुरू होकर केवल 6 वर्षों में यह आंकड़ा 12 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जिसमें से केवल 7 प्रतिशत व्यापार ही ऑनलाइन के जरिए हुआ है. उन्‍होंने कहा कि राखियों के साथ भावनात्मक संबंध होने के कारण लोग स्वयं देख-परखकर राखियां खरीदते हैं और यही वजह है की इस साल राखियों का व्यापार अच्छा हुआ है. 

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