पहले भारत के बजट को हिंदू विरोधी कहा गया था...
नई दिल्ली:
आज वित्त मंत्री अरुण जेटली मोदी सरकार का आखिरी पूर्णाकालिक बजट पेश करेंगे. इस बजट को लेकर काफी उम्मीदे हैं. भारत में बजट की कहानी 19वीं सदी के उत्तारार्द्ध से आरंभ हो जाती है. अंग्रेजों के शासन में कुछ अंग्रेजों ने भारत के लिए बजट पेश किया था. लेकिन उस समय के पहले हिंदुस्तानी जिन्होंने भारत के लिए पहला बजट पेश किया था वह थे लियाकत अली खान. उनका नाम भारतीय इतिहास के जानकारों के लिए नया नहीं है. यह अलग बात है कि पाकिस्तान में यह नाम ज्यादा लोकप्रिय है क्योंकि लियाकत अली खान वहां के पहले प्रधानमंत्री थे. लियाकत ने अलग पाकिस्तान के लिए आंदोलन के दौरान मुहम्मद अली जिन्ना जिन्हें पाकिस्तान का जनक कहा जाता है, के साथ कई दौरे किए.
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यह कम लोग ही जानते होंगे कि भारत के प्रथम वाणिज्य मंत्री भी लियाकत अली खान थे. वे आजादी से पहले भारतीयों की बनी अंतरिम सरकार में मंत्री थे. इसी दौरान उन्होंने भारत के लिए पहला बजट पेश किया था. इस बजट को कुछ लोगों द्वारा हिंदू विरोधी बजट भी करार दिया गया था. वहीं, लियाकत खान ने अपने बजट प्रस्तावों को 'सोशलिस्ट बजट' बताया था पर उनके बजट से देश के उद्योग जगत ने काफी नाराजगी जतायी थी. लियाकत अली खान पर आरोप लगा कि उन्होंने कर प्रस्ताव बहुत ही कठोर रखे, जिससे कारोबारियों के हितों को चोट पहुंची.
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बीबीसी की खबर के अनुसार सोशलिस्ट बजट पेश करने का दावा करने के बाद लियाकत अली पर यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने एक प्रकार से 'हिंदू विरोधी बजट' पेश किया है. उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपए के कुल मुनाफे पर 25 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था और कॉरपोरेट टैक्स को दोगुना कर दिया था. अपने विवादास्पद बजट प्रस्तावों में लियाकत अली खान ने टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के इरादे से एक आयोग बनाने का भी वादा किया. कांग्रेस में सोशलिस्ट मन के नेताओं ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया. लेकिन, सरदार पटेल की राय थी कि लियाकत अली खान घनश्याम दास बिड़ला, जमनालाल बजाज और वालचंद जैसे हिंदू व्यापारियों के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं. ये सभी उद्योगपति कांग्रेस से जुड़े थे.
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जानकारी के लिए बता दें कि लियाकत अली खान का परिवार अंग्रेजों से अच्छे संबंध रखता था. सन् 1951 में रावलपिंडी में इनका क़त्ल हो गया था. इनके कत्ल की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है. ये अलग बात है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी के डिक्लासीफाइड दस्तावेज यह बताते हैं कि इनके कत्ल के पीछे अमेरिका का हाथ था. पुलिस ने लियाकत अली खान के हत्यारे को तुरंत ही गोली मार दी थी. उसका नाम साद अकबर बाबर था. यह एक अफ़ग़ान था.
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लियाकत के परिवार ने की थी अंग्रेजों की मदद, मिली थी जागीर
लियाकत अली खान को पाकिस्तान का जवाहरलाल नेहरु कहा जा सकता है. उनके व मोहम्मद अली जिन्ना के बीच वही संबंध थे जो कि महात्मा गांधी व नेहरु के बीच थे. वे मूलतः शेरवानी पठान थे. 18 अक्टूबर 1895 को करनाल में उनका जन्म हुआ था. उनके नाम के आगे नवाबजादा लगाया जाता था. उनके बाबा नवाब अहमद अली खान ने 1857 के गदर के समय ब्रिटिश सरकार की बहुत मदद की थी. उन्हें इसके बदले में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर व करनाल में जागीरें दी गईं थीं. वे 360 गांवों के मालिक बने थे. जब उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री लेने के बाद आगे पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहा तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वजीफा देकर आक्सफोर्ड भिजवा दिया. पढ़ाई पूरी करके लौटने पर उन्हें आइसीएस (तत्कालीन प्रशासनिक सेवा) में भर्ती करने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. वे जिन्ना के अंतरिया सरकार में वित्तमंत्री बनाए गए. कश्मीर में घुसपैठ के बाद उनके द्वारा किया गया नेहरु-लियाकत समझौता काफी चर्चित रहा.
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वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होने के साथ साथ उसके रक्षा मंत्री व कश्मीर मामलों के भी मंत्री थे. अमेरिका 1950 के दशक में ईरान के साथ तेल का व्यापार करना चाहता था जिसके पाकिस्तान के साथ बहुत अच्छे संबंध थे. उसने पाकिस्तान से कहा कि वह ईरान पर इसके लिए दबाव बनाए. उन्होंने ऐसा करने से मना करने के साथ ही अमेरिका को पाकिस्तान स्थित अपनी वायुसेना के ठिकानों को बंद करने का आदेश दे दिया.
तब अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमेन ने नाराज होकर अफगानिस्तान के शासक जहीर शाह की मदद ली. उस समय तक अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को मान्यता नहीं दी थी. उसे भरोसा दिलाया गया कि लियाकत अली को निपटाने के एवज में उसे पख्तूनिस्तान पर कब्जा दिलवा दिया जाएगा. जब 16 अक्टूबर 1951 को वे रावलपिंडी में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
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बीबीसी की खबर के अनुसार सोशलिस्ट बजट पेश करने का दावा करने के बाद लियाकत अली पर यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने एक प्रकार से 'हिंदू विरोधी बजट' पेश किया है. उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपए के कुल मुनाफे पर 25 फीसदी टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा था और कॉरपोरेट टैक्स को दोगुना कर दिया था. अपने विवादास्पद बजट प्रस्तावों में लियाकत अली खान ने टैक्स चोरी करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के इरादे से एक आयोग बनाने का भी वादा किया. कांग्रेस में सोशलिस्ट मन के नेताओं ने इन प्रस्तावों का समर्थन किया. लेकिन, सरदार पटेल की राय थी कि लियाकत अली खान घनश्याम दास बिड़ला, जमनालाल बजाज और वालचंद जैसे हिंदू व्यापारियों के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं. ये सभी उद्योगपति कांग्रेस से जुड़े थे.
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पाकिस्तान में हो गई थी पीएम लियाकत अली खान की हत्या
जानकारी के लिए बता दें कि लियाकत अली खान का परिवार अंग्रेजों से अच्छे संबंध रखता था. सन् 1951 में रावलपिंडी में इनका क़त्ल हो गया था. इनके कत्ल की गुत्थी अभी तक नहीं सुलझी है. ये अलग बात है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसी के डिक्लासीफाइड दस्तावेज यह बताते हैं कि इनके कत्ल के पीछे अमेरिका का हाथ था. पुलिस ने लियाकत अली खान के हत्यारे को तुरंत ही गोली मार दी थी. उसका नाम साद अकबर बाबर था. यह एक अफ़ग़ान था.
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लियाकत अली खान को पाकिस्तान का जवाहरलाल नेहरु कहा जा सकता है. उनके व मोहम्मद अली जिन्ना के बीच वही संबंध थे जो कि महात्मा गांधी व नेहरु के बीच थे. वे मूलतः शेरवानी पठान थे. 18 अक्टूबर 1895 को करनाल में उनका जन्म हुआ था. उनके नाम के आगे नवाबजादा लगाया जाता था. उनके बाबा नवाब अहमद अली खान ने 1857 के गदर के समय ब्रिटिश सरकार की बहुत मदद की थी. उन्हें इसके बदले में उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर व करनाल में जागीरें दी गईं थीं. वे 360 गांवों के मालिक बने थे. जब उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री लेने के बाद आगे पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहा तो ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वजीफा देकर आक्सफोर्ड भिजवा दिया. पढ़ाई पूरी करके लौटने पर उन्हें आइसीएस (तत्कालीन प्रशासनिक सेवा) में भर्ती करने का प्रस्ताव दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. वे जिन्ना के अंतरिया सरकार में वित्तमंत्री बनाए गए. कश्मीर में घुसपैठ के बाद उनके द्वारा किया गया नेहरु-लियाकत समझौता काफी चर्चित रहा.
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वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री होने के साथ साथ उसके रक्षा मंत्री व कश्मीर मामलों के भी मंत्री थे. अमेरिका 1950 के दशक में ईरान के साथ तेल का व्यापार करना चाहता था जिसके पाकिस्तान के साथ बहुत अच्छे संबंध थे. उसने पाकिस्तान से कहा कि वह ईरान पर इसके लिए दबाव बनाए. उन्होंने ऐसा करने से मना करने के साथ ही अमेरिका को पाकिस्तान स्थित अपनी वायुसेना के ठिकानों को बंद करने का आदेश दे दिया.
तब अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमेन ने नाराज होकर अफगानिस्तान के शासक जहीर शाह की मदद ली. उस समय तक अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को मान्यता नहीं दी थी. उसे भरोसा दिलाया गया कि लियाकत अली को निपटाने के एवज में उसे पख्तूनिस्तान पर कब्जा दिलवा दिया जाएगा. जब 16 अक्टूबर 1951 को वे रावलपिंडी में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे तो उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.
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