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This Article is From May 28, 2015

प्रियदर्शन की बात पते की : घायल कश्मीर और कानून का नश्तर

Priyadarshan
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  • Updated:
    मई 28, 2015 21:53 pm IST
    • Published On मई 28, 2015 21:46 pm IST
    • Last Updated On मई 28, 2015 21:53 pm IST
कश्मीर एक दुखती हुई कहानी का नाम है- एक उदास सुंदरता का अफ़साना जो न जाने कब से बंदूकों के साये में बहती बोझिल हवा में सांस लेने को मजबूर है।

यह उदासी कभी-कभी ऐसे वहशी गुस्से में बदल जाती है जो सबकुछ जला डालने पर, सबकुछ तहस-नहस कर डालने पर आमादा दिखता है, वो हर किसी पर पत्थर चलाती है, ख़ून का बदला खून से लेने की कसम खाती है, लेकिन आख़िरकार पाती है कि वहशत ने उसे बीमार कर दिया है, नफ़रत ने उसे अलगाववादी बना दिया है, सियासत ने उसे बारूद की गंध और फौजी बूटों की सौगात दी है।

ये कश्मीर एक हांफता हुआ कश्मीर है जिसे अपनों से बेईमानी की और ज़ुल्म की शिकायत है। ये एक डरा हुआ कश्मीर है जो राहत के लिए बाहर देखता है और उम्मीद करता है कि सरहद पार से कोई मदद चली आएगी। ये एक ज़ख़्मी कश्मीर है जिसे असल में मरहम चाहिए, अपनेपन का भरोसा चाहिए, आज़ादी का वह एहसास चाहिए जो उसके लिए महज एक नारा बन गया है।

इस कश्मीर में हर कोई दहशत से लेकर सियासत तक के कारोबार में लगा है, लेकिन वो दवा नहीं ला रहा जिससे उसके टीसते बदन की तकलीफ़ कुछ कम हो। अफ़स्पा नाम का जो नश्तर हम कश्मीर की जर्राही के लिए बरसों से इस्तेमाल कर रहे हैं, उसने इलाज कम दिए हैं, बदन में घाव ज्यादा किए हैं- ये एहसास भी सबको है।

मगर ऐसे नश्तर इस्तेमाल करना जितना आसान होता है, उन्हें बाहर निकालना उतना ही मुश्किल। कश्मीर की मुश्किल भी यही है। लेकिन इस मुश्किल के पार पाने का रास्ता भी हमें ही निकालना होगा और कुछ इस तरह निकालना होगा कि हमारा जम्हूरियत का इक़बाल बुलंद हो, उसमें कश्मीर का भरोसा लौटे। उसकी सूखी हुई आंखें दोस्ती की आस में कुछ छलछला सकें।

फिलहाल तो अपने-आप से और अपनों से जूझते कश्मीर के लिए ये बात किसी यूटोपिया से कम नहीं, लेकिन ऐसे यूटोपिया पर हम यक़ीन करें- यह कश्मीर के भविष्य के लिए ज़रूरी है।

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