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This Article is From Dec 25, 2014

रवीश रंजन की कलम से : आखिर क्यों न मिले मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न

Ravish Ranjan Shukla, Vivek Rastogi
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 25, 2014 13:35 pm IST
    • Published On दिसंबर 25, 2014 13:32 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 25, 2014 13:35 pm IST

सोशल मीडिया पर कुछ लोग पंडित मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की आलोचना महज इसलिए कर रहे हैं कि वह ब्राहमण थे। अब तक महामना और अटल बिहारी वाजपेयी सहित 45 लोगों को भारत रत्न से नवाज़ा जा चुका है, और हो सकता है, उनमें अधिकतर ब्राह्मण अथवा उच्च जाति के ही हों, लेकिन याद रखना चाहिए कि जातीय और धार्मिक कट्टरता से लिपटी सोच किसी के भी अच्छे कामों पर पर्दा डाल सकती है।

मैंने मदन मोहन मालवीय के बारे में ज्यादा नहीं पढ़ रखा है, लेकिन बीएचयू बनाने के संघर्ष के बारे में एक कहानी मेरे शिक्षक ने सुनाई थी कि जब विश्वविद्यालय बनाने के लिए वह जगह-जगह जाकर लोगों से दान ले रहे थे... उसी क्रम में एक राजा के पास गए... मदन मोहन मालवीय बोले, महाराज, मैं बनारस में एक बड़ा शैक्षिक संस्थान बना रहा हूं, जहां हज़ारों बच्चे शिक्षा ग्रहण करेंगे... उसके लिए आपके पास दान के लिए आया हूं... राजा ने ऊपर से नीचे तक मदन मोहन मालवीय की दीन-हीन हालत देखी और कहा, तू शैक्षिक संस्थान बनाएगा... पहले अपनी हालत तो सुधार ले... मेरे पास पैसे नहीं हैं, मेरा जूता लेगा क्या... और पंडित जी जूता ही लेकर चले आए...

जिस तरह ज्योतिबा फूले ने महिलाओं के उत्थान के लिए काम किया, उसी तरह मदन मोहन मालवीय ने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया, जहां हर जाति और धर्म के 35,000 से भी ज़्यादा विद्यार्थी उच्चस्तरीय शिक्षा हासिल कर रहे हैं। यही वे लोग हैं, जिन्होंने शिक्षा का चिराग रोशन कर जातिवाद और धार्मिक कट्टरता मिटाने की कोशिश की थी... समाज में बहुतों ने अच्छे काम किए हैं... सर सैयद अहमद ने भी, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींव रखी। उन हजारों सेठों ने भी, जिन्होंने कॉलेजों-अस्पतालों के लिए जगह और पैसे दान दिए, लेकिन किसी पर लांछन महज जाति या धर्म के आधार पर लगाया जाए, उचित नहीं है...

मदन मोहन मालवीय ने यह सोचकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की नींव नहीं रखी थी कि उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा... हो सकता है, मुझ पर भी कुछ लोग आरोप लगाएं कि मैं ब्राह्मणवादी सोच से ग्रस्त हूं, लेकिन मैं समाज में हो रहे सकारात्मक काम को किसी जाति और धर्म के नज़रिये से नहीं देखता... उनके बारे में एनी बेसेंट ने कहा था कि वह भारत की एकता की मूर्ति हैं... कांग्रेस के 1909 में हुए लाहौर अधिवेशन में वह नरम और गरम दल के बीच मुख्य संवाद सूत्र थे। तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके मदन मोहन मालवीय की जिंदगी को दोबारा पढ़ने का इससे अच्छा मौका कोई और नहीं हो सकता है...

हालांकि इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भी कहा कि मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न देने का कोई औचित्य नहीं है... इस पर चर्चा हो सकती है कि भारत रत्न जिंदा रहने पर दिया जाए या मृतकों को भी, लेकिन मदन मोहन मालवीय के सामाजिक योगदान को कमतर आंकना, और वह भी इस दौर में, जहां ज्यादातर लोग अपने परिवार को आगे बढ़ाने, पैसों, चापलूसी और नफरत की राजनीतिक दलदल में दबे हों... आज जो लोग उनके भारत रत्न को जाति से जोड़ रहे हैं, उन्हें मदन मोहन मालवीय के दलितों को मंदिरों में प्रवेश को लेकर चलाए गए आंदोलन को नहीं भूलना चाहिए... मदन मोहन मालवीय ही वह शख्स थे, जिन्होंने भारत के विभाजन की शर्त पर स्वतंत्रता लेने का विरोध किया था... जब सचिन तेंदुलकर और वीवी गिरी को भारत रत्न मिल सकता है, तो मदन मोहन मालवीय की आलोचना सिर्फ उनके ब्राह्मण होने के कारण करना इतिहास से मुंह मोड़ने जैसा है...

रामधारी सिंह दिनकर की रचना है, "समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र..."

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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