अमित शाह ने नागरिकता कानून के बचाव में गांधी का गलत इस्तेमाल क्यों किया?

जब से नागरिकता संशोधन कानून का विरोध तेज़ हुआ है, इसके समर्थन में गांधी जी का उदाहरण दिया जाने लगा है. गांधी जी उदाहरण इस तरह से दिया जा रहा है जैसे सारा काम गांधी जी के बताए रास्ते पर ही चलकर करते हों.

राजनीति बिना इतिहास के नहीं हो सकती है, लेकिन जब राजनेता इस भरोसे इतिहास का इस्तेमाल करने लगें कि नागरिकों के पास कहां वक्त होगा चेक करने का, मोटी मोटी किताबों को पढ़ने और समझने का तब इतिहास के उस इस्तेमाल को लेकर हमेशा सतर्क रहना चाहिए. जब से नागरिकता संशोधन कानून का विरोध तेज़ हुआ है, इसके समर्थन में गांधी जी का उदाहरण दिया जाने लगा है. गांधी जी उदाहरण इस तरह से दिया जा रहा है जैसे सारा काम गांधी जी के बताए रास्ते पर ही चलकर करते हों. अब गांधी जी ने तो नहीं कहा था कि गोडसे को देशभक्त बताने वाले को टिकट देनी है और सांसद बनाना है. तो फिर नागरिकता कानून का बचाव गांधी जी के नाम पर क्यों किया जा रहा है? क्या गांधी जी ने बिल्कुल वैसा ही कहा था जैसे इस कानून के समर्थन में प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह गांधी जी को कोट कर रहे हैं? क्या गांधी जी को भी कोई अपने राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गलत, या आधा अधूरा कोट कर सकता है?

बिहार के वैशाली जिले में गृहमंत्री अमित शाह ने नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में एक सभा की. कायदे से उन्हें यह सभा असम में करनी चाहिए जहां एक महीने से इस कानून का पुरज़ोर विरोध हो रहा है, लेकिन यह पूरी तरह से गृहमंत्री का अधिकार है कि वे कौन सी जगह रैली करें. बहरहाल वैशाली की इस रैली में अमित शाह ने कहा कि मानवाधिकार की चिंता करने वालों ने उनके मानवाधिकार की चिंता क्यों नहीं की? लाखों की संख्या में धर्मस्थान उजाड़ दिए गए, तब आपको क्यों नहीं उनके मानवाधिकार की चिंता क्यों नहीं की? इसके बाद यहां अमित शाह ने एक बार गांधी को कोट किया और कहा कि पाकिस्तान में रहने वाला हिन्दू और सिख हर नज़रिए से भारत आ सकता है.

गृहमंत्री अमित शाह ने तारीख भी बताई 26 सितंबर 1947. अमित शाह गांधी की बात का यह हिस्सा लिखकर लाए थे. प्रधानमंत्री के भाषण में भी ठीक इसी बात का ज़िक्र होता है. दिल्ली के रामलीला मैदान में जब उनकी रैली हुई थी उसमें भी उन्होंने गांधी जी का ज़िक्र किया था. इसी मैदान में दिए भाषण में उन्होंने गलत बोला कि देश में एक भी डिटेंशन सेंटर नहीं है. रैली खत्म नहीं हुई थी कि संसद में उनकी ही सरकार के कई जवाब सामने आ गए कि भारत में 6 डिटेंशन सेंटर हैं.

क्या वाकई पूज्य महात्मा गांधी ऐसा कह रहे थे? शायद यह भरोसा होगा कि लोग न तो इतिहास पढ़ते हैं और न ही इतिहास की मोटी-मोटी किताबें पढ़ने का वक्त भी है. इसलिए मैं आपका बहुत सारा समय बचा देता हूं. मेरे हाथ में ये प्रार्थना प्रवचन है. 1 अप्रैल 1947 से लेकर 29 जनवरी 1948 के बीच गांधी जी की सारी प्रार्थना सभाओं के प्रवचन का संकलन है, जिसे अशोक वाजपेयी ने संपादित किया है. इसे रज़ा फाउंडेशन और राजमकल ने छापा है. हिन्दी में है तो आप पढ़ सकते हैं. मैं 5 जुलाई 1947 के गांधी जी के प्रवचन का एक हिस्सा आपको पढ़ कर सुनाना चाहता हूं.

मगर पाकिस्तान की असली परीक्षा तो यह होगी कि वह अपने यहां रहने वाले राष्ट्रवादी मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों और हिन्दुओं आदि के साथ कैसा बर्ताव करते हैं. इसके अलावा मुसलमानों में भी तो अनेक फिरके हैं. शिया और सुन्नी तो प्रसिद्ध हैं और भी कई फिरके हैं जिनके साथ देखते हैं कैसा सलूक होता है. हिन्दुओं के साथ वे लड़ाई करेंगे या दोस्ती के साथ चलेंगे?

दो बातें नोटिस करने लायक है. नागरिकता विधेयक पर चर्चा के समय पाकिस्तान में शियाओं और अहमदिया मुसलमानों के साथ होने वाली ज़्यादती को लेकर भी सवाल उठे जिसे सरकार ने नज़रअंदाज़ कर दिया, लेकिन गांधी इनकी चिंता अपनी प्रार्थना सभाओं में कर रहे थे. गांधी का सुविधा से इस्तेमाल हो रहा है, जो काम गांधी को पसंद न होती उसे भी उन्हीं के नाम पर किया जा रहा है. 5 जुलाई 1947 के प्रवचन में गांधी जी नए पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों के साथ राष्ट्रवादी मुसलमान का ज़िक्र करते हैं. पाकिस्तान में रहने वाला राष्ट्रवादी मुसलमान कौन है, हम इस पर बात करने जा रहे हैं. 10 जुलाई 1947 की प्रार्थना सभा गांधी फिर से राष्ट्रवादी मुसलमान का ज़िक्र करते हैं.

लेकिन यदि सिंध या और जगहों से लोग डरके मारे अपने घर बार छोड़ कर यहां आ जाते हैं तो क्या हम उनको भगा दें? यदि हम ऐसा करें तो अपने को हिन्दुस्तानी किस मुंह से कहेंगे? हम कैसे जय हिन्द का नारा लगाएंगे? यह कहते हुए उनका स्वागत करें कि आइये यह भी आपका मुल्क है और वह भी आपका मुल्क है. इस तरह से उन्हें रखना चाहिए. यदि राष्ट्रीय  मुसलमानों को भी पाकिस्तान छोड़कर आना पड़ा तो वे भी यहीं रहेंगे. हम हिन्दुस्तानी की हैसियत से सब एक ही है. यदि यह नहीं बनता तो हिन्दुस्तान बन नहीं सकता.

सवाल है कि जिस प्रार्थना प्रवचन में गांधी हिन्दू की बात करते हैं उसी में किस राष्ट्रवादी मुसलमान की बात कर रहे हैं और उसका ज़िक्र प्रधानमंत्री मोदी या गृहमंत्री अमित शाह क्यों नहीं करते हैं? 12 जुलाई 1947 की प्रार्थना सभा में गांधी जी कहते हैं कि मेरे पास इन दिनों काफी मुसलमान मिलने आते हैं. वे भी पाकिस्तान से कांपते हैं. ईसाई, पारसी और दूसरे ग़ैर मुसलमान डरे यह तो समझ में आ सकता है, मगर मुसलमान क्यों डरे? वे कहते हैं कि हमें देशद्रोही क्वीसलिंग माना जाता है. पाकिस्तान में हिन्दुओं को जो तकलीफ होगी उससे ज्यादा हमें होगी. पूरी सत्ता मिलते ही हमारा कांग्रेस के साथ रहना शरियत से गुनाह माना जाएगा. इस्लाम के ये मानी है तो इसे मैं नहीं मानता. राष्ट्रीय मुसलमानों को कैसे क्विसलिंग कहा जा सकता है? मुझे आशा है कि जिन्ना साहब जहां ग़ैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की रक्षा करेंगे, वहां इन मुसलमानों को भी पूरा संरक्षण देंगे.

तो फिर गांधी जी किस राष्ट्रवादी मुसलान की बात कर रहे हैं? किस राष्ट्रवादी मुसलमानों को जिन्ना के पाकिस्तान से डर लगता है? उन्हें वहां क्विसलिंग यानी गद्दार कहा जाता है. कई बार गांधी जी पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं के साथ राष्ट्रवादी मुसलमान का ज़िक्र करते हैं. हमने तीन उदाहरण दिए. फिर अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी गांधी को आधा अधूरा क्यों कोट करते हैं, उनकी पूरी बात क्यों नहीं बताते हैं? हमने हिलाल अहमद से पूछा कि ये राष्ट्रवादी मुसलान क्या है? कौन हैं जिनके बारे में गांधी बार बार बात करते हैं. कहते हैं कि पाकिस्तान में अगर राष्ट्रवादी मुसलमान सताए गए तो हिन्दुस्तान आकर बस सकते हैं. अपनी हत्या के पहले के एक साल के प्रार्थना प्रवचनों को आप ज़रूर पढ़िए. आपको दिखेगा कि कैसे एक शख्स जिसने अपने जीवन का तीस साल अहिंसा को दिया, हिन्दू मुस्लिम नफ़रत की राजनीति में ख़ुद को अकेला पाता है. उस अकेलेपन से हारता नहीं है. गांधी अकेले खड़े होते हैं और हिंसा और नफ़रत के बीच खुद को ले जाते हैं, अपनी अहिंसा को ले जाते हैं. हत्या से पहले का एक साल गांधी का शानदार दौर है. किसी के यकीन की परीक्षा तभी होती है जब वह अकेला होता है. जब सारे छोड़ जाते हैं. उस दौरान गांधी हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दोनों से बार-बार कहते हैं कि नए मुल्क को परीक्षा देनी होगी वे अपने यहां के अल्पसंख्यक मुसलमान और अल्पसंख्यक हिन्दू के साथ कैसा बर्ताव करते हैं.

वैशाली ज़िले में गृहमंत्री अमित शाह ने गांधी को कोट करते हुए तारीख भी बताई कि उन्होंने 26 सितंबर 1947 को कहा था. 26 सितंबर 1947 का प्रार्थना प्रवचन भी इस किताब में है. इस प्रवचन में गांधी जी से एक वैध गुरुदत्त पाकिस्तान से मिलने आए हैं. वे कहते हैं कि मैंने आपकी बात नहीं मानी, मैं चला आया. वहां की हुकूमत पर असर नहीं होता है. हम हिन्दू मुसलमान कल तक दोस्त थे, आज किसी पर भरोसा ही नहीं करते हैं. गांधी एक शब्द का ज़िक्र करते हैं पंचम स्तंभ. पंचम स्तंभ उन लोगों को कहा जाता है जो दुश्मन की मदद करते हैं. गांधी जी 26 सितंबर 1947 की सभा में कहते हैं कि अगर पाकिस्तान में हिन्दू को और भारत में मुसलमानों को पंचम स्तंभ यानी गद्दार समझा जाए, भरोसे के काबिल न समझा जाए तो यह चलने वाली बात नहीं हैं.

अगर वे पाकिस्तान में रहकर पाकिस्तान से बेवफाई करते हैं तो हम एक तरफ से बात नहीं कर सकते. अगर हम यहां जितने मुसलमान रहते हैं उनको पंचम स्तंभ बना देते हैं तो वहां पाकिस्तान में जो हिन्दू, सिख रहते हैं क्या उन सबको भी पंचम स्तंभ बनाने वाले हैं? यह चलनेवाली बात नहीं है. जो वहां रहते हैं अगर वे वहां नहीं रहना चाहते तो यहां खुशी से आ जाएं. उनको काम देना उनको आराम से रखना हमारी यूनियन सरकार का परम धर्म हो जाता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि वे वहां बैठे रहें, और छोटे जासूस बनें, काम पाकिस्तान का नहीं, हमारा करें. यह बननेवाली बात नहीं है और इसमें मैं शरीक नहीं हो सकता.

गांधी ने वहां रहने वाले सभी से यही कहा कि पाकिस्तान में रहें और पाकिस्तान का काम करें. छोटे जासूस न बनें. नहीं रहना है तो सीधे आ जाएं. गांधी एक और जगह पर कहते हैं कि वहां से आने की ज़रूरत नहीं है, वहां रहकर इंसाफ की लड़ाई लड़ी जानी चाहिए. इन बातों को नेता आपको नहीं बताते हैं. गांधी अपने 26 सितंबर 1947 के प्रवचन के आखिर में जो भी हिन्दू हों, सिख हों, पारसी हों, क्रिस्टी हों अगर हिन्दुस्तान में बसना चाहें तो उनको हिन्दुस्तान के लिए लड़ना है, मरना है. लेकिन अमित शाह 5 जुलाई, 10 जुलाई और 12 जुलाई के भाषणों का ज़िक्र नहीं करते हैं जिसमें गांधी पाकिस्तान में रहने वाले राष्ट्रवादी मुसलमान के भारत में स्वागत की बात कर रहे हैं. वैसे गांधी ने 26 सितंबर 1947 के प्रवचन के अंत में एक और बात कही है. सत्यमेव जयते. सत्य की जय होती है. नानृतम अर्थात झूठ की कभी जीत नहीं होती है. अमित शाह को बताया जाना चाहिए 15 सितंबर 1947 को गांधी जी ने अपनी दिल्ली डायरी में लिखा था. 'हिंदू और सिख सही कदम उठाएं और उन मुसलमानों को लौटने के लिए आमंत्रित करें जिन्हें अपने घरों से भागना पड़ा था. अगर वो ये साहसिक कदम उठा पाते हैं जो कि हर तरह से सही है, तो उसी समय वो शरणार्थी समस्या के हल की ओर बढ़ जाएंगे. उन्हें सिर्फ़ पाकिस्तान ही नहीं, पूरी दुनिया से मान्यता मिलेगी. वो दिल्ली और भारत को बदनामी और बर्बादी से बचाएंगे.

महात्मा गांधी डॉट ओआरजी पर ये हिस्सा आपको मिल जाएगा. गांधी ने 18 सितंबर 1947 को एक बात कही थी. अगर मान लिया जाए कि पाकिस्तान में सब मुसलमान गंदे हैं तो उससे हमको क्या? मैं तो आपको कहूंगा कि हिन्दुस्तान को समुंदर ही रखें, जिससे सारी गंदगी बह जाए. हमारा यह काम नहीं हो सकता कि कोई गंदा करे तो हम भी गंदा करें. इसलिए अफसोस होता है जब देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री गांधी को पूज्य भी कहते हैं और उनकी बातों को सही-सही नहीं बताते. इसलिए कहता हूं कि नेता जब इतिहास की बात करें तो उनका भी इतिहास देखा करें. आपने इसी नागरिकता संशोधन कानून के संदर्भ में अमित शाह को कहते सुना होगा कि कांग्रेस ने देश का बंटवारा कर दिया, लेकिन जिस कमेटी ने बंटवारे पर सहमति दी उसमें कौन-कौन थे, यह अमित शाह नहीं बताते. एक तरफ आप सरदार पटेल को भारत को जोड़ने वाले एकता पुरुष के रूप में महिमामंडित करते हैं दूसरी तरफ उसी सरदार पटेल को कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में उस कमेटी में पाते हैं जिसने माउंटबेटन के सामने बंटवारे को स्वीकार किया था. आप नागरिकों के साथ इतिहास के साथ क्या-क्या मज़ाक हो रहा है मुझे उसकी चिन्ता तो है, इतिहास के साथ जिस तरह से मज़ाक हो रहा है, उसका भी दुख है.

2 जून 1947 को वायसराय हाउस में माउंटबेटन प्लान को लेकर बैठक हुई थी. इस बैठक में जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, आचार्य कृपलानी, सरदार बलदेव सिंह, अब्दुल रब निस्तार, मोहम्मद अली जिन्ना और लियाक़त अली ख़ान ने मांउटबेटन के बंटवारे के प्लान को मंजूरी दी थी. इस प्लान की घोषणा 3 जून 1947 को ऑल इंडिया रेडियो पर की गई थी. माउंटबेटन ने पहले इसकी घोषणा की थी. उस दिन नेहरू ने भी ऑल इंडिया रेडियो पर कहा था कि मुझे यह कहते हुए कोई खुशी नहीं हो रही है. उस दिन जिन्ना और सरदार बलवेद सिंह ने भी भाषण दिया था.

इतिहास की थाली में बहुत से तथ्य होते हैं. नेता अपने हिसाब से अलग-अलग समय में इसका इस्तेमाल करते हैं. बीजेपी के नेता अमिताभ सिन्हा इंडिया टुडे चैनल की बहस में कहते हैं कि वे गोडसे की निंदा नहीं करेंगे. बीजेपी गोडसे को देशभक्त कहने वाली प्रज्ञा ठाकुर को टिकट देकर सांसद बनाती है, लेकिन जब नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती दी जाती है तो बंटवारे के समय गांधी के बयानों का सहारा लिया जाता. कोई उनकी हत्या करने वालों के साथ खड़ा है तो कोई उन्हीं से अपनी जीवन रक्षा कर रहा है. अमित शाह और अमिताभ सिन्हा दोनों एक ही पार्टी के हैं. तो आपने देखा कि गांधी ने पाकिस्तान के राष्ट्रवादी मुसलमानों को भी भारत में बसाने की बात की थी. उस पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों चुप हैं. विपक्ष के नेता जो इन दिनों फुर्सत में हैं, जिनके पास कोई काम नहीं हैं, वो भी किताबें नहीं पढ़ते हैं. इस हद तक अमित शाह कांग्रेस को ठीक सुनाते हैं कि उसने गांधी को छोड़ दिया.

अमित शाह यहां पर नेहरू-लियाकत समझौते का ज़िक्र कर रहे हैं. नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में वे अक्सर इस समझौते का ज़िक्र कर विपक्ष को घेरते हैं. नेहरू-लियाकत समझौता 8 अप्रैल 1950 को हुआ था कि दोनों अपने-अपने मुल्क में अल्पसंख्यों को बराबर मानेंगे...उनका सम्मान करेंगे, सुरक्षा करेंगे, स्वतंत्रता देंगे. इसमें यह भी लिखा है कि जिस देश में जो अल्पसंख्य रहता है, अगर उसे कोई शिकायकत है तो वह अपनी सरकार से कहे. उनकी निष्ठा और वफादारी उसी देश के लिए होना चाहिए जिसके वो नागरिक हैं. क्या ये बात आपको बताई गई है?

आज के दौर को मीडिया युग कहा जाता है मगर इसी मीडिया युग में आप नागरिकों तक झूठ ज्यादा मात्रा में पहुंचने लगा. जब भारत के प्रधानमंत्री ही गांधी का गलत इस्तेमाल करें तो क्या कहा जा सकता है. पर क्या आपने प्रधानमंत्री और अमित शाह की रैलियों से लौटकर चेक किया कि उन्होंने जो कहा वो सही था या नहीं. आगे से कर लिया कीजिए. अब मानवाधिकार को लेकर वैशाली की रैली में अमित शाह का दिया बयान देखिए.

क्या वाकई मानवाधिकार के चैंपियन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली हिंसा और भेदभाव का सवाल नहीं उठाते हैं? क्या यह सही तथ्य है? एमनेस्टी इंटरनेशनल एक मानवाधिकार संस्था है. दुनिया के कई देशो में यह संस्था काम करती है. आप एमनेस्टी इंटरनेशनल साउथ एशिया के ट्विटर टाइम लाइन पर जाइये. एमनेस्टी की टाइम लाइन पर आप देखेंगे कि कैसे पाकिस्तान और अफगानिस्तान में हिन्दुओं के साथ होने वाले भेदभाव के मसले को उठाया गया है. 16 सितंबर 2019 को ही एमनेस्टी ने ट्वीट किया है कि पाकिस्तान की सरकार इस बात पर ध्यान दें कि घोटकी में हिन्दुओं के पूजा स्थल और पूजा करने के अधिकार की रक्षा हो. इस ट्वीट में कहा गया है कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक को बिना डर और भेदभाव के अपने धार्मिक व्यवहार करने की छूट है और अधिकार है. घोटकी मंदिर पर हमला करने वालों को सज़ा मिलनी चाहिए.

2016 में संयुक्त राष्ट्र की कमेटी ऑन राइट्स ऑफ दि चाइल्ड ने भी अपने एक सम्मेलन में पाकिस्तान से जवाब मांगा था कि दलित समुदायों के बच्चों के साथ भेदभाव क्यों होता है? इन्हें रोकने के लिए पाकिस्तान सरकार ने क्या कदम उठाए है. इसी सम्मेलन में पाकिस्तान से यह भी पूछा गया था कि 1951 का जो नागिरकता कानून है उसके तहत बंगाली, बिहारी और रोहिंग्या समुदाय के जो बच्चे हैं उनपर किस तरह से लागू हुआ है, इसका जवाब दें. 2017-18 के एमनेस्टी ने बाग्लादेश को लेकर अपनी रिपोर्ट में बांग्लादेश में 2016 में Neeladri Neeloy, Abheejeet Roy, Mehboob Rabi, की हत्या हुई थी. किसी को सज़ा नहीं हुई थी. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इनकी भी आवाज़ उठाई थी. एमनेस्टी ने अपनी रिपोर्ट में दर्ज किया है कि किस तरह से 1996 में मानवाधिकार कार्यकर्ता कल्पना चकमा को गायब कर दिया गया. इस सवाल को भी उठाया है कि कैसे मिथुन चकमा जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बांग्लादेश में रोका जाता है. परेशान किया जाता है.

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जब यही मानवाधिकार कार्यकर्ता कश्मीर को लेकर सवाल उठाते हैं तो गृहमंत्री अमित शाह को पसंद नहीं आते. उसी तरह मानवाधिकार के चैंपियनों को हर देश में मुसीबत का सामना करना पड़ता है. मीडिया उन्हें खलनायक बनाता है, लेकिन जब अपनी बात साबित करनी है तो अमित शाह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को खोज रहे हैं कि वो पाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ होने वाले अत्याचार को लेकर चुप क्यों हैं? जबकि वो बोल रहे हैं. सभी को पता है कि जो मंत्री जी कहेंगे वही छपेगा. कोई इतनी मेहनत नहीं करेगा कि सत्य का पता लगाए. तभी कहता हूं कि टीवी देखने और अखबार पढ़ने का तरीका बदल लीजिए. वर्ना नेता लोग आपको हमेशा के लिए बदल देंगे. आप खुद को पहचान नहीं पाएंगे.