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This Article is From Sep 19, 2018

मैनहोल में होने वाली मौतों का ज़िम्मेदार कौन?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 19, 2018 00:11 am IST
    • Published On सितंबर 19, 2018 00:11 am IST
    • Last Updated On सितंबर 19, 2018 00:11 am IST
सरफ़राज़, पंकज, राजा, उमेश और विशाल को आप नहीं जानते होंग. 9 सितंबर 2018 को पश्चिम दिल्ली के कैपिटल ग्रीन डीएलएफ अपार्टमेंट में इन पांचों की सीवर की सफाई करते हुए मौत हो गई. क्या आपको दिल्ली के घिटोरनी इलाके के स्वर्ण सिंह, दीपू, अनिल और बलविंदर याद हैं. पिछले साल 14 जुलाई को ये लोग सीवर की सफाई करते वक्त दम घुट जाने से मर गए. 6 अगस्त 2017 को लाजपत नगर के योगेंद्र और अनु की दम घुटने से मौत हो गई. 21 अगस्त 2017 को दिल्ली में ऋषिपाल भी सीवर की सफाई करते हुए मारा गया. 30 सितंबर 2017 को गुड़गांव में रिंकू, राजकुमार और नीना की मौत हो गई थी. आप पंजाब के तरणतारण के अमन कुमार, प्रेम कुमार काका को भी भूल चुके होंगे.

बठिंडा के जगदीश सिंह, रवि हों या फिर पटना के जितेंद्र और दीपू. बंगलुरू के टी नायडू, अंजेया और येरैया को क्यों याद रखना चाहेंगे. शाहदरा के जहांगीर, एजाज़, नोएडा के राजेश, विकास, रवींद्र, मुंबई के विश्वनाथ सिंह, रामनाथ सिंह, सत्यनारायण सिंह, रामेश्वर सिंह ये सब वे लोग हैं जो इस खाई में डुबा कर मार दिए गए. लुधियाना के दीपक और अरमान, मुक्तसर के गंगाधर, पंजाब के बिट्टी कुमार, जगदीश कुमार रवि और सुरेंद्र कुमार. जिस देश में स्वच्छता के नाम पर घंटो टीवी के ईवेंट फूंक दिए जाते हों, जगह जगह दीवारों पर नारे लिखने के लिए करोड़ों फूंक दिए जाते हैं. आखिर हम क्या नहीं कर सके कि सीवर की सफाई करते वक्त किसी की जान न जाए. स्वच्छता के नाम पर साफ सुथरी जगहों पर झाड़ू चलाकर फोटो खिंचा लेने से हमें प्रचार के अलावा क्या मिला अगर हमने सीवर की सफाई करते वक्त होने वाली मौत को काबू नहीं किया.

हर मौत की अलग अलग कहानी है मगर कारण एक है. हम सीवर में उतर कर सफाई करने वालों की राजनीतिक नौटंकी के लिए तो सम्मान करते हैं मगर उनकी सुरक्षा का ख्याल नहीं करते हैं. सीवर में सफाई करने वालों को न तो सुरक्षा के उपकरण मिलते हैं और न उनकी खास ट्रेनिंग. कब तक सीवर में उतर कर सफाई होगी, क्या यही एक तरीका बचा है. कम से कम स्वच्छता के नाम पर जो अभियान चलते हैं उसी के तहत इन्हें उपकरण मिलते और ट्रेनिंग मिलती, और फिर फोटूं खीचता और जिसका री-ट्वीट होता.

दस साल का गौरव अपने पिता की तस्वीर बना रहा है. पत्र लिख रहा है कि नई साइकिल का वादा कैसे पूरा करेंगे. उसके पिता अनिल की मौत द्वारका में सीवर की सफाई करते वक्त दम घुटने से हो गई. जो रस्सी दी गई वो मज़बूत नहीं थी. टूट गई और वह मर गया. वह 20 फीट गहरे सीवर में डूब गया. गौरव की एक बहन भी है.

उदय फाउंडेशन से उनकी यह हालत नहीं देखी गई. अनिल के परिवार के पास अत्येष्टि के भी पैसे नहीं थे. इस खबर को देखने के बाद राहुल वर्मा ने क्राउड फंडिंग के ज़रिए लोगों से मदद मांगी. सरकार और सिस्टम से ज़्यादा आम लोग तेज़ी से सामने आ गए. वे गौरव के पिता को नहीं लौटा सके, मगर पिता का वादा ज़रूर पूरा कर दिया. गौरव के पास नई साइकिल पहुंच गई. चंद घंटों के भीतर लोगों ने अपनी जेब से 30 लाख से अधिक पैसे जमा कर दिए. राहुल वर्मा ने ट्वीट किया है कि सारे पैसे को फिक्स डिपोज़िट किया जाएगा, इसके इंटरेस्ट से जो पैसा आएगा उससे गौरव की पढ़ाई होगी. 18 साल होने पर उसे वो सारा पैसा मिल जाएगा जिससे वो आगे की ज़िंदगी का फैसला कर सके. राहुल वर्मा ने कहा कि अगर लोगों ने यह काम नहीं किया होता तो हो सकता था कि गरीबी गौरव को अपने पिता के काम की ओर ले जाती. काश सिस्टम राहुल वर्मा की तरह सक्रिय होता तो यह नौबत ही नहीं आती.

मेसेज यही है कि लोग तो मिलकर मदद कर देंगे, वे पीछे नहीं हटते हैं लेकिन जब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा, व्यवस्था नहीं होगा हम भावुकता से दम घुटने से होने वाली मौतों को रोक नहीं पाएंगे. सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी है कि सीवर की सफाई करते वक्त किसी की मौत होगी तो सरकार 10 लाख देगी. क्या हर किसी को दस लाख की यह राशि मिल जाती है. जबकि 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था और कहा था कि 1993 से जितने लोग मरे हैं उन सबको दस दस लाख दिए जाएं. क्या दिए गए, यह भी एक सवाल है. इन्हीं सब संदेश को लेकर सफाई कर्मचारी आंदोलन के बेज़वाड़ा विल्सन और उनके साथियों ने आईटीओ पर प्रदर्शन किया.

बकायदा सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि कितनी भी आपात स्थिति हो, बिना सुरक्षा उपाय, उपकरणों और वस्त्रों के सीवर में जाना अपराध है. कोई मजबूर नहीं कर सकता है. इसके बाद भी ऐसी घटनाएं कम नहीं हुई हैं. मगर सबके आंकड़े अलग अलग हैं.

सफाई कर्मचारी आंदोलन का कहना है कि दिल्ली में 2016 से 2018 के बीच सीवर में काम करने से 429 लोगों की मौत हुई है. इसी साल अब तक 83 लोगों की सीवर में काम करने से मौत हुई जिनमें से छह ने बीते एक हफ़्ते में ही जान गंवाई. उधर राष्ट्रीय सफ़ाई कर्मचारी आयोग (NCSK) के मुताबिक जनवरी 2017 से अब तक देश भर में सिर्फ़ 123 सफ़ाई मज़दूरों ने अपनी जान गंवाई है. इसके आंकड़े ज़्यादातर अख़बारों की रिपोर्ट्स के आधार पर हैं. इसके मुताबिक 2017 में 96 लोगों और 2018 में 13 लोगों की सीवर की सफ़ाई की वजह से मौत हुई.

2017 से अब तक के आंकड़े बताते हैं कि हर पांच दिन में एक आदमी की मौत होती है. इंडियन एक्सप्रेस की शालिनी नायर की रिपोर्ट छपी है जिन्हें लाडली मीडिया अवार्ड भी मिला है. समस्या यह है कि मैनहोल साफ करने के लिए ठेके पर ही लोग क्यों रखे जाते हैं. क्यों नगरपालिकाएं इनका रिकॉर्ड रखती हैं. कितने कर्मचारी हैं और कितनों की मौत हुई है. जनवरी 2015 में बृहनमुंबई नगरपालिका ने बताया था कि पिछले छह साल में यानी 2009 से 2015 के बीच 1386 सफाई कर्मियों की मौत हो गई है और यह संख्या बढ़ती ही जा रही है.

प्रैक्सिस नाम की संस्था ने एक रिपोर्ट बनाई थी 'डाउन दि ड्रेन'. इस रिपोर्ट में 200 सीवर साफ करने वालों का अध्ययन कर डॉ. आशीष मित्तल ने बताया था कि अगर हाईड्रोजन सल्फाइड की मात्रा अधिक है तो एक बार सांस लेने से ही मौत हो जाएगी. मरने वालों का पैटर्न ऐसा है कि एक साथ तीन मरते हैं. एक जब नहीं आता है तो दूसरा जाता है उसे देखने तीसरा जाता है. दिल्ली में एक जूनियर इंजीनियर की भी मौत हो चुकी है. 80 फीसदी सीवर साफ करने वाले रिटायरमेंट एज तक नहीं पहुंच पाते हैं. उन्हें कई तरह की बीमारियां घेर लेती हैं और समय से पहले मर जाते हैं. इसीलिए आप देखते हैं कि एक साथ चार या पांच लोग मार जाते हैं.

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