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This Article is From May 05, 2019

1999 के सुपर साइक्लोन से मेरा सामना और इस साइक्लोन से क्या सीखा ओडिशा सरकार ने

Sushil Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 05, 2019 00:30 am IST
    • Published On मई 05, 2019 00:09 am IST
    • Last Updated On मई 05, 2019 00:30 am IST

1999 की बात है. उस समय मैं कटक में पढ़ाई कर रहा था. होस्टल में रहता था. 28 अक्टूबर को मैं गांव आया था. गांव में लक्ष्मी पूजा चल रही थी और लक्ष्मी पूजा के लिए सभी बच्चे मिलकर गांव में नाटक करने वाले थे. मुझे भी एक रोल मिला था. शाम को थिएटर के लिए गांव के सब बच्चे रिहर्सल कर रहे थे. साइक्लोन के बारे में थोड़ा बहुत पता था लेकिन किसी को पता नहीं था कि इसका असर क्या होगा. गांव के स्कूल में नाटक के लिए रिहर्सल चल रही थी तब धीरे-धीरे बारिश और हवा बहना शुरू हुई. धीरे-धीरे बारिश और हवा की रफ्तार बढ़ती चली गई. रिहर्सल बंद हुआ और सभी बच्चे घर चले गए. सब का लगा था धीरे-धीरे हवा कम हो जाएगी तो अगले दिन रिहर्सल शुरू होगी. हम जितने भी बच्चे थे किसी को भी सुपर साइक्लोन के बारे में कोई आईडिया नहीं था. सुपर साइक्लोन क्या होता है वो भी पता नहीं था क्योंकि ऐसे साइक्लोन के साथ हम लोगों का कभी टकराव नहीं हुआ था.

सुबह सुबह साइक्लोन की रफ्तार बढ़ती चली गई और फिर भयंकर रूप धारण कर लिया. उस समय गांव में मेरा पक्का घर था लेकिन मुझे याद है हवा की रफ्तार इतनी तेज थी कि घर के मुख्य दरवाज़े को मेरे परिवार के कई लोग पकड़कर रखे थे. ऐसा लग रहा था जैसे हवा दरवाज़े को उखाड़कर ले जाएगी. हवा की गति 300 किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा थी. कितने घंटों तक हवा का तांडव चलता रहा मुझे याद नहीं लेकिन तीन दिन तक लगातार बारिश हुई थी. धीरे-धीरे जब हवा की रफ्तार कम हुई तो लोग घर से बाहर निकलने लगे, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था. मेरा गांव नहीं था, कहीं भी एक पेड़ नहीं थी. गांव का भुगोल पूरी तरह बदल चुका था. गांव में जिन लोगों के कच्‍चे मकान थे सब टूट गए थे. छत के ऊपर से सब कुछ अलग लग रहा था. चारो तरफ पानी ही पानी था. लोग अपने गांव को पहचान नहीं पा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे हम कहीं दूसरी जगह आ गए हैं.

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मेरा गांव जगतसिंहपुर ज़िले में है जिस ज़िले में उस समय सबसे ज्यादा क्षति हुई थी. लैंडफॉल पारादीप के आसपास एर्षमा और बालिकुद के बीच हुआ था. पारादीप से मेरा घर करीब 40 किलोमीटर दूरी पर है. इस साइक्लोन के तांडव ने कई हज़ार लोगों की जान ली थी. सबसे ज्यादा लोग जगतसिंहपुर ज़िले से मरे थे. एर्षमा और बालिकुडा से कई हज़ार लोगों की मौत हुई. मेरे गांव और आसपास के गांव खुश-नसीब थे, इस साइक्लोन से किसी की जान नहीं गई थी. पारादीप पोर्ट के आसपास जि‍तने भी इलाक़े थे उन सबका ज्यादा नुकसान हुआ था. समुद्र का पानी करीब 7 से 9 मीटर की ऊंचाई तक लगभग 20 किलोमीटर तक ज़मीन पर आ गया था. लोगों को इसके बारे में पता नहीं था. लोगों के घर के अंदर पानी घुस गया था. बहुत कम लोगों की दो माले की इमारत थी. लोगों को लगा कि कुछ सामान न ले पाएं तो पैसा लेकर भाग जाएं लेकिन हवा और पानी के सामने यह लोग कमज़ोर पड़ गए थे. जब लोगों की डेड बॉडी मिली तो उनके हथों में पैसे थे. स्थिति इतनी खराब थी कि हर कहीं डेड बॉडी पड़ी हुई थी. सरकारी आंकड़े के हिसाब से दस हज़ार लोग मरे थे लेकिन 50000 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.

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साइक्लोन के बाद की कहानी और भयावह थी. रास्‍ते सब टूट गए थे. हर तरफ उखड़े हुए पेड़ पड़े थे. उस समय लोगों के पास ज्यादा मोबाइल फ़ोन नहीं हुआ करते थे. ऐसे भी किसी का भी फ़ोन नहीं लग रहा था. फोन लाइन, बिजली पूरी तरह ठप हो गई थी. किसी के साथ कोई बातचीत नहीं हो पा रही थी. ओडिशा के बाहर रहने वाले लोग अपने परिवारों को लेकर चिंतित थे लेकिन उन्हें कुछ पता चल नहीं पा रहा था कि उनकी परिवार है या नहीं. जो लोग बाहर थे और अपने परिवार से मिलने आये थे तो कई किलोमीटर तक चलने के बाद अपने गांव पहुंच पाए थे. उनमें कुछ लोग अपने परिवार से मिल पाए थे तो कुछ लोगों के लिए सब कुछ खत्म हो गया था. सड़क के रास्‍ते राहत पहुंचने में कई दिन लग गए. रास्ता साफ करने में समय लगा.

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मुझे याद है हेलीकॉप्टर से ऊपर से राहत सामग्री गिराई जा रही थी. जब भी हेलीकॉप्टर हवा में उड़ते हुए दिखाई देता तब लोग घर से बाहर आ जाते और हेलीकॉप्टर की पीछा करते थे. कई बार हेलीकॉप्टर सामान गिराता था तो कई बार बिना गिराए चला जाता था. एक बार हेलीकॉप्टर से गिराया हुआ एक सामान मेरे पास भी आकर गिरा था. जब मैंने इसे उठाया तो मेरी आंखों में आंसू थे. अपने गांव के लोगों का हाल देखकर मैं खुद टूट गया था. मुझे जो रिलीफ पैकेट मिला था उस मे चूड़ा और गुड़ था. मेरे गांव और आसपास के लोग काफी समझदार थे. जो भी रिलिफ का सामान मिलता था सब एक जगह इकट्ठा करते थे, फिर यह सब को बांटा जाता था. यह नहीं था कि कोई एक रिलिफ का सामान लेकर भाग जाए. कुछ घंटों के सुपर साइक्लोन ने सब कुछ बदल दिया था. लाइट और फ़ोन कनेक्शन के लिए कई दिन लग गए.

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इस साइक्लोन से ओडिशा सरकार ने काफी कुछ सीखा. इस के बाद सरकार ने किसी भी साइक्लोन को हल्के में नहीं लिया. 1999 साइक्लोन के बाद कई देश ओडिशा की मदद करने के लिए सामने आए. ओडिशा सरकार ने लोगों को पक्का घर बनाने के लिए पैसे दिए और लोगों ने पक्‍के घर बनाए. अगर उस साइक्लोन को सरकार ने गंभीरता से लिया होता तो जानें बच सकती थीं. लेकिन सरकार को पता नहीं था कि हवा की रफ्तार 300 किलोमीटर से ज्यादा होगी. कई बार IMD के अनुमान भी गलत हो जाते हैं. इस साइक्लोन के बाद सरकार ने कई रिलिफ सेंटर बनाया. जब भी साइक्लोन की भविष्यवाणी होती है सरकार लोगों को रिलिफ सेन्टर ले जाती है. शुक्रवार को ओडिशा में आए सुपर साइक्लोन फोनी के समय ओडिशा सरकार ने 11 लाख से भी ज्यादा लोगों रिलिफ सेन्टर में जगह दी थी. यह कोई छोटी बात नहीं. 2018 में आए साइक्लोन के समय ओडिशा सरकार ने तीन लाख से भी ज्यादा लोगों को रिलिफ सेंटर पहुंचाया था जिस के वजह से ज्यादा लोगों की जान नहीं गई थी.

सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं

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