उस रात 'मस्तानी' से ज़्यादा पापा प्यारे लगे

उस रात 'मस्तानी' से ज़्यादा पापा प्यारे लगे

                                          एक बेटी बोल रही थी लेकिन शब्द उसके नहीं थे।'

                                             एक पापा सुन रहा था। शब्द भी उसके ही थे।'


दरअसल एक बेटी अपने पापा का खत पढ़ रही थी। समारोह में मौज़ूद हस्तियों की आंखें नम हुए जा रही थी। पूरे 5 मिनट तक वो रोती और पढ़ती रही। बीच-बीच में तालियां बजती रहीं। एक पल के लिए भी हाथ रिमोट पर नहीं गया। शायद आप भी चैनल बदल नहीं पाए होंगे। फ़िल्मफेयर अवॉर्ड की वो शाम खास बन गई थी। शाम खास बनी तो बॉलीवुड की किसी हस्ती की वजह से नहीं। बल्कि एक खिलाड़ी के खत ने सबको रुला दिया।

पापा प्रकाश पादुकोण की बेटी दीपिका को लिखी चिट्ठी ने एक बार फिर भारत के पहले ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन का मुरीद बना दिया। ऐसा लगा कि प्रकाश पादुकोण ने सिर्फ़ दीपिका को नहीं लिखा है, बल्कि मानो देश के हर बच्चे और युवा के लिए उन्होंने खुला खत लिखा हो।

चैंपियन तो कई होते हैं, लेकिन हर चैंपियन के पास अपनी सोच नहीं होती है। जज़्बात तो होते हैं लेकिन उन भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं होते। खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण को हम सब जानते रहे हैं। 1980 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतकर दुनिया में भारतीय बैडमिंटन का चेहरा बने। लेकिन उनकी शख्सियत के दूसरे पहलू से कम ही लोग परिचित होंगे।

फ़िल्मफेयर अवॉर्ड की शाम दुनिया ने प्रकाश पादुकोण की सोच देखी। बातें पुरानी थी। सदियों से हम पढ़ते और सुनते आ रहे हैं। हैरानी सिर्फ़ ये हो रही थी कि आज के पाश्चात्य सभ्यता और कथित आधुनिकता के दौर में भी पुरातन जीवन मूल्यों को कोई इतनी अहमियत दे रहा है। उससे भी ज़्यादा अचरज ये जानकर हुई कि उन रास्तों पर चल कर दौलत और शोहरत के शिखर पर पहुंचा जा सकता है।

प्रकाश पादुकोण की सबसे अच्छी और सीखने वाली बात ये लगी कि उन्होने ज़िंदगी से कभी कोई शिकायत नहीं की। उनके जमाने में बैडमिंटन के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं थी। वे कैनरा बैंक के शादी के हॉल में अभ्यास किया करते। वो हॉल भी हमेशा खाली नहीं रहता था, लेकिन जब भी मौक़ा मिलता जमकर अभ्यास करते।

'मेरे बचपन और किशोरावस्था की सबसे अहम बात ये थी कि मैंने जान लिया था कि मुझे किसी बात की शिकायत नहीं करनी है।'

कमियों का रोना रोने वाला कभी कामयाब नहीं हो पाता। शिकायत करने के पहले उन 900 जवानों के बारे में सोच लेना चाहिए जो शून्य से 50 डिग्री नीचे तापमान में सियाचीन में हमारी सीमा की रक्षा करते हुए शहीद तक हो चुके हैं। किसके लिए? ज़ाहिर है खुद के लिए नहीं। सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तान के लिए।

प्रकाश ने उस खत में अपनी बेटियों को लिखा, 'दृढ़ता, मेहनत, संकल्प और जुनून का कोई विकल्प नहीं है। अगर आपको अपने काम से प्यार है तो इससे बड़ी बात कुछ हो ही नहीं सकती। न कोई पुरस्कार, न पैसा और न ही टेलीविजन और समाचारपत्रों में अपना चेहरा देखना।'

इस ज़माने में इन बातों पर यकीन कहां हो पाता है। लेकिन पादुकोण परिवार इस पर चला और सच कर दिखाया है। सबसे बड़ी बात पादुकोण ने कामयाबियों को सर चढ़ कर नहीं बोलने दिया, हमेशा पांव जमीन पर रखे हैं। वरना हमने देखा है कि सफलता लोगों को रातोंरात बदल देती है।

करीब 8 साल पहले भारतीय क्रिकेट टीम ने अंडर-19 वर्ल्ड कप जीता था। टीम के घर लौटते समय विमान में मेरा एक रिपोर्टर साथी भी था। उसने विजेता टीम के कई खिलाड़ियां से इंटरव्यू किए और उनके जश्न के शॉट्स अपने कैमरे में कैद किए। एक खास खिलाड़ी बार-बार मिन्नतें कर रहा था- 'भईया इंटरव्यू दिखला ज़रूर देना।' बहुत जल्द वो खिलाड़ी टीम इंडिया में शामिल हो गया। अब उसे देखकर अनायस 1977 की फ़िल्म 'अमानत' का गाना जुबां पर आ जाता है- 'मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं...'

सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के भगवान बन गए तो इसमें उनकी विनम्रता का अहम योगदान रहा है। ज़मीन से जुड़े रहने की यही सीख प्रकाश पादुकोण ने अपनी बेटियों को दी। सपनों को उड़ान भरने की स्वतंत्रता दी।

ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठते रहे हैं। लेकिन प्रकाश पादुकोण आस्था और प्रार्थना को नई ऊर्जा का स्रोत मानते हैं।

'अपने दिन से कुछ मिनट निकालें। आंखें बंद कीजिए और ध्यान लगाइए। इससे आपको नई शक्ति और ऊर्जा की अनुभूति होगी।'

प्रकाश पादुकोण ने अपनी बातों से लाखों दिल जीते होंगे। उस रात दीपिका से ज़्यादा उनके पापा प्यारे लगे।

संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...

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