संसद के बजट सत्र के पहले मौजूदा सरकार के तेवर बदल से गए हैं। संसदीय कार्य मंत्री का सोनिया गांधी के घर जाना और सरकार को सहयोग करने का आग्रह करना। प्रधानमंत्री ने भी कहा कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है यहां सभी चीजों पर चर्चा होनी चाहिए, मिलजुल कर ही लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है।
पहली बार प्रधानमंत्री ने यह दिखाया कि राज्यसभा में उन्हें विपक्ष की जरूरत है। पिछले सत्र में तो अपने मंत्रियों के विवादित बयान पर राज्यसभा में प्रधानमंत्री बोलने तक नहीं आए, विपक्ष हल्ला करता रहा और सदन नहीं चल पाया। हालांकि सरकार ने यह तय किया है कि जितने भी अध्यादेश सरकार लाई है वो पहले बिल के शक्ल में लोकसभा में लाए जाएंगे। यहां से पारित कराने के बाद ही उसे राज्यसभा में भेजा जाएगा।
प्रधानमंत्री का मुलायम सिंह के भाई के पोते के तिलकोत्सव में सैफई जाना और लालू मुलायम के परिवार के साथ फोटो भी संसद के बजट सत्र में विपक्ष पर डोरे डालने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। सरकार की दिक्कत ये है कि ये बजट सत्र है और यहां आकड़ों के अकड़ से काम नहीं चलेगा।
यदि विपक्ष ने राज्यसभा में किसी वित्तीय बिल को अटका दिया तो सरकार की किरकिरी हो जाएगी। जमीन अधिग्रहण एक ऐसा बिल है जिसे उद्योगपति सर्मथक बिल माना जा रहा है। इस पर सरकार पूरी तरह से फंसी हुई है। दूसरे सरकार इंश्योरेंश बिल को भी वापिस ले रही है क्योंकि उस पर भी आम राय नहीं बन पा रही है। यही वजह से सरकार का बदला-बदला सा रवैया दिख रहा है। वह अब अपना मुलायम रूप पेश कर रही है, मिल जुल कर चलने की बात कर रही है।
मगर ये होगा कैसे? जब आप कांग्रेस अध्यक्ष के घर जा कर सर्मथन मांगते हैं और कुछ दिन पहले कांग्रेस को पार्टी दफ्तर खाली करने का नोटिस देते हैं तो यह थोड़ा अटपटा लगता है। यही वजह है कि अभी तक भारतीय लोकतंत्र में नजरों का लिहाज किया जाता था। राजनैतिक दल नेताओं के परिवारों पर सीधे हमले करने से बचते रहते थे। ये सब अटल बिहारी वाजपेयी के समय तक तो दिखा मगर उसके बाद खत्म होता गया।
मगर लोकतंत्र में आंकड़े काफी कुछ सिखाते हैं और राज्यसभा में बहुमत न होना 2016 के मई तक बीजेपी को भी बहुत कुछ सीखने पर मजबूर कर देगा। आगे-आगे देखिए होता है क्या क्योंकि बदले बदले से लग रहे हैं सरकार।